कब है आषाढ़ माह की कालाष्टमी, जानिए शुभ मुहूर्त पूजन विधि, कथा और महत्त्व | Masik Kalashtami Vrat

कालाष्टमी, कब है कालाष्टमी व्रत, कालाष्टमी व्रत पूजन विधि, Masik Kalashtami Vrat, Kalashtami Shubh Muhurt, Kalashtami Vrat, Kalashtami Vrat Poojan Vidhi, Kalashtami Vrat Tithi 2022, Kalashtami Vrat Katha, Kalashtami Par Karen Ye Upay, Kalashtami Vrat Ka Mahatv

हेल्लो दोस्तों कालाष्टमी या काला अष्टमी का हिंदू त्योहार भगवान शिव के उग्र रूप भगवान भैरव को समर्पित है। प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कालाष्टमी (Masik Kalashtami Vrat) मनाई जाती है। काला अष्टमी हर चंद्र मास में कृष्ण पक्ष या चंद्रमा के घटते चरण के दौरान अष्टमी तिथि (8 वें दिन) को मनाई जाती है। इस बार कालाष्टमी का व्रत 21 जून 2022, दिन मंगलवार को किया जाएगा। यदि कालाष्टमी रविवार या मंगलवार को पड़ती है, तो इसे पवित्र माना जाता है क्योंकि ये दिन भगवान भैरव की पूजा के लिए समर्पित होते हैं। देश भर में भक्त कालाष्टमी को बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाते हैं। इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। भगवान काल भैरव की पूजा से भक्तों को भय से मुक्ति प्राप्त होती है।

कालाष्टमी एक वर्ष के दौरान 12 बार आती है और इसे मासिक कालाष्टमी के रूप में जाना जाता है. काल भैरव के 8 स्वरूप माने गए हैं। इनमें से बटुक भैरव स्वरुप को सौम्य माना गया है। गृहस्थ व अन्य सभी साधारणजन को भगवान भैरव के बटुक भैरव स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। कालाष्टमी के दिन इनकी पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। जानते हैं कालाष्टमी पर भगवान भैरव को प्रसन्न करने हेतु क्या करें और क्या है व्रत महत्व, शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि।

कालाष्टमी शुभ मुहूर्त (Kalashtami Shubh Muhurt)

  • आषाढ़ मास कालाष्टमी तिथि – 21 जून 2022, दिन मंगलवार ।  
  • आषाढ़ कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ – 20 जून 2022, सुबह 09 बजकर 01 मिनट।  
  • आषाढ़ कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्त – 21 जून 2022, रात्रि 08 बजकर 30 मिनट।
Masik Kalashtami Vrat1
Masik Kalashtami Vrat

कालाष्टमी पूजा विधि (Kalashtami Vrat Poojan Vidhi)

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • अब एक शांत पवित्र स्थान पर। आसन लगाकर भगवान भैरव की तस्वीर विराजमान करें और उपवास का संकल्प लें।
  • यदि संभव हो तो काल भैरव के मंदिर में जा सकते हैं अन्यथा लकड़ी के स्टूल पर भगवान शिव और देवी पार्वती के साथ काल भैरव की मूर्ति या चित्र स्थापित कर सकते हैं।
  • यदि भगवान भैरव की तस्वीर न हो तो शिव जी की तस्वीर रखकर पूजा कर सकते हैैं।
  • अब उस पूरे स्थान पर गंगाजल छिड़के।
  • काल भैरव को भक्त नारियल, इमरती, शराब, पान, गेरू आदि चढ़ाया जाता है।
  • अब चौमुखा दीपक जलाकर भगवान भैरव को पुष्प, नारियल, इमरती, पान आदि चीजें अर्पित करें।
  • रात के समय काल भैरव की पूजा करते समय काले चने और सरसों के तेल का भी प्रसाद चढ़ाया जाता है।
  • इसके बाद शिव चालीसा और भैरव चालीसा मंत्र और बटुक भैरव पंजर कवच का पाठ करें और आरती करें।
  • काल भैरव की पूजा करते हुए भैरव मंत्र का 108 बार जाप करें।
  • काल भैरव की पूजा के बाद काले कुत्ते को दूध या मिठाई खिलाएं और दिन के अंत में कुत्ते की पूजा करें।

2022 में कालाष्टमी व्रत तिथियां (Kalashtami Vrat Tithi 2022)

कालाष्टमी हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दौरान मनाई जाती है। 2022 में मनाई जाने वाली कालाष्टमी तिथियां नीचे दी गई हैं।

तिथि दिवस समय
25 जनवरी मंगलवार माघ कालाष्टमी
प्रारंभ – 25 जनवरी सुबह 07:48 बजे
समाप्त – 26 जनवरी सुबह 06:25 बजे

23 फरवरी बुधवार फाल्गुन कालाष्टमी
शुरू – 23 फरवरी को शाम 04:56 बजे
समाप्त – फरवरी 24 अपराह्न 03:03 बजे

25 मार्च शुक्रवार चैत्र कालाष्टमी
प्रारंभ – 25 मार्च दोपहर 12:09 बजे
समाप्त – 25 मार्च को रात 10:04 बजे

23 अप्रैल शनिवार वैशाख, कालाष्टमी
शुरू – 23 अप्रैल सुबह 06:27 बजे
समाप्त – 24 अप्रैल सुबह 04:29 बजे

22 मई रविवार ज्येष्ठ, कालाष्टमी
प्रारंभ – 22 मई दोपहर 12:59 बजे
समाप्त – 23 मई पूर्वाह्न 11:34 बजे

21 जून मंगलवार आषाढ़, कालाष्टमी
प्रारंभ – जून 20 पर 09:01 अपराह्न
समाप्त – 21 जून रात 08:30 बजे

20 जुलाई बुधवार श्रावण, कालाष्टमी
प्रारंभ – 20 जुलाई सुबह 07:35 बजे
समाप्त – 21 जुलाई सुबह 08:11 बजे

19 अगस्त शुक्रवार भाद्रपद, कालाष्टमी
प्रारंभ – अगस्त 18 पर 09:20 अपराह्न
समाप्त – अगस्त 19 पर 10:59 अपराह्न

17 सितंबर शनिवार अश्विना, कालाष्टमी
शुरू होता है – 17 सितंबर को दोपहर 02:14 बजे
समाप्त – 18 सितंबर को शाम 04:32 बजे,

17 अक्टूबर सोमवार कार्तिका, कालाष्टमी
प्रारंभ – 17 अक्टूबर को सुबह 09:29 बजे
समाप्त – अक्टूबर 18 पूर्वाह्न 11:57 बजे

16 नवंबर बुधवार मार्गशीर्ष, कालाष्टमी, काल भैरव जयंती
प्रारंभ – 16 नवंबर सुबह 05:49 बजे
समाप्त – नवम्बर 17 पूर्वाह्न 07:57 बजे

16 दिसंबर शुक्रवार पौष, कालाष्टमी
प्रारंभ – 16 दिसंबर पूर्वाह्न 01:39 बजे
समाप्त – 17 दिसंबर को सुबह 03:02 बजे

Masik Kalashtami Vrat
Masik Kalashtami Vrat

पौराणिक कथा (Kalashtami Vrat Katha)

कालाष्टमी की एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली। इस बात पर बहस बढ़ गई, तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई। सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा।

शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है। इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है। शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए।

भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं। इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए।

भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है। इसका एक नाम ‘दंडपाणी’ पड़ा था।

कालाष्टमी पूजा मंत्र (Kalashtami Pooja Mantra)

||अतिक्रुरामहाकायाकल्पंतदहनोपम
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञादातुर्मरहसि ||
||ओम भयहरनं चा भैरव:||
||ओम कालभैरवई नमः||
||ओम ह्रीं बम बटुकाया आप्दुद्धरणय कुरुकुरु बटुकायाह्रिं ||
||ओम भ्रम काल भैरवय फैट||

करें भैरव देव से जुड़े ये उपाय (Kalashtami Par Karen Ye Upay)

  • इस दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ‘ॐ नम: शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। ऐसा करने से आपकी मनोकामनाएं पूरी हो जाएगी।
  • कालाष्टमी के दिन कुत्ते को रोटी जरूर डालें। ऐसा करने से भैरव बाबा प्रसन्न हो जाते हैं और सभी मनोकामनाओं को पूरा कर देते हैं।
  • इस दिन भैरव बाबा के साथ-साथ मां दुर्गा की पूजा करने से भी विशेष लाभ मिलता है। और इस दिन दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
  • जिन लोगों को कोई भी रोग है वो लोग कालाष्टमी के दिन पूजा करें और भैरव देव को तेल जरूर अर्पित करें। सरसों का तेल अर्पित करने से रोगों से मुक्ति मिल जाती है.

काल भैरवी के आठ रूप (Kaal Bhairav Roop)

काल भैरव का मंदिर अक्सर देवी सती के मंदिरों (शक्तिपीठों) में पाया जाता है, क्योंकि काल भैरव को देवी सती के सभी शक्तिपीठों के अंगरक्षक के रूप में जाना जाता है। काल भैरव की पूजा बटुक भैरव और काल भैरव के सबसे प्रचलित रूप में की जाती है। हालांकि, तंत्र साधना भैरव के आठ रूपों का वर्णन करती है, जिनके नामों में भीशन भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, रुद्र भैरव, असितंग भैरव, समारा भैरव, कपाली भैरव और उन्मथ भैरव शामिल हैं। भैरव को भक्त चावल, गुड़, खिचड़ी आदि चढ़ाते हैं। कालाष्टमी का व्रत करने से दुखों, रोगों और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है

कालाष्टमी का महत्व (Kalashtami Ka Mahatv)

आदित्य पुराण काल ​​भैरव की पूजा में कालाष्टमी के महत्व का वर्णन करता है, जिसे भगवान शिव की अभिव्यक्ति के रूप में जाना जाता है। ‘काल’ का अर्थ है समय, और ‘भैरव’ भगवान शिव के रूप को दर्शाता है। इसलिए काल भैरव को ‘समय के देवता’ के रूप में भी जाना जाता है। भगवान शिव के कट्टर भक्त काल भैरव की भी पूजा करते हैं। काल भैरव को महाकालेश्वर या दंडधिपति के नाम से भी जाना जाता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भगवान भैरव के भक्तों का अनिष्ट करता है, उसे तीनों लोकों में कहीं भी शरण प्राप्त नहीं होती है। कालाष्टमी के दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजन करने से जातक को भय और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति प्राप्त होती है। भगवान भैरव अपने भक्तों की हर संकट से रक्षा करते हैं। इनकी पूजा से शत्रु बाधा और रोगों से भी मुक्ति मिलती है। जो लोग आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं उनके लिए भगवान भैरव दंडनायक हैं और अपने भक्तों के लिए वे सौम्य और रक्षा करने वाले हैं। 

रिलेटेड पोस्ट (Related Post)

ऐसी ही अन्य जानकारी के लिए कृप्या आप हमारे फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम और यूट्यूब चैनल से जुड़िये ! इसके साथ ही गूगल न्यूज़ पर भी फॉलो करें !

Leave a Comment