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हेल्लो दोस्तों मंगला गौरी व्रत का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। यह व्रत विशेष रूप से कुंवारी लड़कियां विवाह में आने वाले परेशानियों का समाप्त करने के लिए करती हैं। यह व्रत सावन मास में आता है, इसी कारण से मंगला गौरी व्रत को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। सुहागन महिलाओं के इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी परेशानियां समाप्त होती है और उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है।
यदि किसी व्यक्ति को मंगल दोष की समस्या है तो इस दिन की पूजा अत्यधिक लाभदायी होती है। मां मंगला गौरी की उपासना करने से भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस साल सावन माह की शुरुआत 14 जुलाई 2022 से हो गई है. मंगला गौरी व्रत को महिलाएं सावन के प्रत्येक मंगलवार को रखती हैं। इस साल 2022 में सावन मास का पहला मंगला गौरी व्रत 19 जुलाई को पड़ रहा है।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंगला गौरी व्रत का उद्यापन सावन महीने के शुक्ल पक्ष में किया जाता है। इस साल सावन के माह में 4 मंगलवार पड़ने के कारण इसे बहुत ही शुभ संयोग माना जा रहा है। सुहागिनों के लिए यह व्रत बहुत ही शुभ माना गया है। उद्यापन के बिना मंगला गौरी व्रत निष्फल माना जाता है।
मंगला गौरी व्रत के दिन सभी पूजन सामग्री 16 की संख्या में (16 मालाएं, इलायची, लॉन्ग, सुपारी, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री तथा 16 चूड़ियां) होनी चाहिए। तो आइए जानते हैं मंगला गौरी व्रत कब है, मंगला गौरी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और व्रत का महत्व।
विषयसूची :
मंगला गौरी 2022 व्रत तिथि
Mangla Gauri Vrat 2022 Date
- पहला मंगला गौरी व्रत- 19 जुलाई 2022, दिन मंगलवार।
- दूसरा मंगला गौरी व्रत- 26 जुलाई 2022, दिन मंगलवार।
- तीसरा मंगला गौरी व्रत- 2 अगस्त 2022, दिन मंगलवार।
- चौथा मंगला गौरी व्रत- 9 अगस्त 2022, दिन मंगलवार।
मंगला गौरी व्रत का शुभ मुहूर्त
Mangla Gauri Vrat Shubh Muhurat
- 19 जुलाई 2022 को –
- सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 05.35 मिनट शुरू दोपहर 12.12 मिनट तक।
- रवि योग सुबह 05.35 से दोपहर 12.12 मिनट तक।
- सुकर्मा योग दोपहर 01.44 मिनट से शुरू, जो कि पूरी रात तक रहेगा।
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मंगला गौरी व्रत सामग्री
Mangla Gauri Vrat Saamagri
मंगला गौरी व्रत की पूजा के दौरान विवाहित महिलाओं (सुहागन) के साथ-साथ 16 चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। अनुष्ठान के दौरान आवश्यक सामग्री से शुरुआत करते हैं। सावन के प्रत्येक मंगलवार को आपको देवी गौरा की पूजा के लिए निम्नलिखित वस्तुओं या सामग्री की आवश्यकता होगी:
- एक चौकी या वेदी।
- सफेद और लाल कपड़ा।
- कलश।
- गेहूँ के आटे से बना एक चौमुखा दीया (दीपक)।
- 16 कपास से बनी चार बत्तियां।
- देवी पार्वती की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी का पात्र।
अभिषेक के लिए सामग्री
- पानी, दूध, पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, चीनी का मिश्रण)।
- देवी गौरी के लिए कपड़े, भगवान गणेश के लिए जनेऊ।
- पवित्र लाल धागा (कलावा / मौली), रोली या सिंदूर, चावल, रंग, गुलाल, हल्दी, मेंहदी, काजल।
- 16 प्रकार के फूल, माला, पत्ते और फल।
- गेहूं, लौंग, इलायची से बने 16 लड्डू।
- सात प्रकार का अनाज।
- 16 पंचमेवा (5 प्रकार के सूखे मेवे)।
- 16 सुपारी, सुपारी, लौंग।
- सुहाग पिटारी (सिंदूर, काजल, मेंहदी, हल्दी, कंघी, तेल, दर्पण, 16 चूड़ियाँ, पैर की अंगुली के छल्ले, पायल, नेल पॉलिश, लिपस्टिक, हेयरपिन, आदि)।
- नैवेघ / प्रसाद।
मंगला गौरी व्रत पूजन विधि
Mangla Gauri Vrat Puja Vidhi
- मंगला गौरी व्रत सावन मास के प्रत्येक मंगलवार को रखा जाता है। इस दिन महिलाओं को स्नान करने के बाद कोरे वस्त्र ही धारण करने चाहिए।
- इसके बाद एक साफ चौकी लेकर पूर्व दिशा की और मुख करके आसन पर बैठें।
- इसके बाद चौकी के आधे भाग में सफेद कपड़ा बिछाकर चावल की नौ छोटी- छोटी ढेरी बनाएं और आधे भाग में लाल कपड़ा बिछाकर गेंहूँ की सोलह ढेरी बनाएं।
- इसके बाद थोड़े से चावल चौकी पर अलग रखकर पान के पत्ते पर स्वस्तिक (सातिया) बनाकर उस पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखें।
- ऐसे ही गेहूं की अलग ढेरी पर कलश स्थापित करके उस पर पांच पान के पत्ते और नारियल रखें।
- अब इस कलश पर चौमुखी दीपक में 16 रूई की बत्ती लगाकर जलाएं।
- दीपक को प्रज्ववलित करने के बाद भगवान गणेश की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं।
- इसके बाद गणेश जी को जनेऊ, रोली -चावल, सिंदूर चढ़ाएं और पूजन कर भोग लगाएं।
- गणेश जी के पूजन के बाद एक साफ थाली में मिट्टी लें और उसमें गंगा जल मिलाकर उससे माता गौरी की प्रतिमा बनाएं।
- माता गौरी की प्रतिमा बनाने के बाद उसे भी पंचामृत से स्नान कराएं और वस्त्र धारण कराएं।
- इसके बाद माता गौरी को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करें।
- अब रोली, चावल, फूल माला, फल, पत्ते, आटे के लड्डू, पान, सुपारी, लोंग, इलायची तथा पांच मेवाओं का प्रसाद रखें।
- इसके बाद माता की कथा, मंत्र जाप करने के बाद आरती उतारें।
इसके बाद इस मंत्र को पढ़ें :
‘कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्..।।
- सावन के प्रत्येक मंगलवार इसी तरह पूजन करें और अंत में प्रतिमा को विसर्जन कर दें।
- जब आपकी मन्नत पूरी हो जाए तब इस व्रत का उद्यापन अवश्य कर दें।
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मंगला गौरी की व्रत कथा
Mangla Gauri Vrat Katha
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय धर्मपाल नाम का एक सेठ हुआ करता था। उसके के पास धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। वह हमेशा सोच में डूबा रहता था कि अगर उसकी कोई संतान नहीं हुई तो उसके बाद उसका वारिस कौन होगा? कौन उसके व्यापार की देख-रेख करेगा? इसी कशमकश में डूबा हुआ रहता था।
तब वह अपने गुरु के पास इस समस्या को लेकर गया। गुरु के परामर्श के अनुसार, सेठ धर्मपाल ने माता पार्वती की श्रद्धापूर्वक पूजा उपासना की। खुश होकर माता पार्वती ने उसे संतान प्राप्ति का वरदान दिया, परंतु उसे यह भी कहा कि संतान अल्पायु होगी। कुछ समय बाद कालांतर में धर्मपाल की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया।
इसके बाद धर्मपाल ने ज्योतिषी को बुलाकर पुत्र का नामांकरण करवाया और उन्हें माता पार्वती की भविष्यवाणी के बारे में बताया। ज्योतिषी ने धर्मपाल को सलाह दी कि वह अपने पुत्र की शादी ऐसी कन्या से कराएं, जो मंगला गौरी व्रत करती हो। मंगला गौरी व्रत के पुण्य प्रताप से आपका पुत्र दीर्घायु होगा।
उन्होंने मंगला गौरी व्रत के बारे में उसे विस्तार से बताया और कहा कि यह व्रत महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र और पुत्र प्राप्ति के लिए करती हैं। सेठ धर्मपाल ने अपने इकलौते पुत्र का विवाह मंगला गौरी व्रत रखने वाली एक कन्या से करवा दिया। मंगला गौरी व्रत और कन्या के पुण्य प्रताप से धर्मपाल का पुत्र मृत्यु पाश से मुक्त हो गया। तभी से मां मंगला गौरी के व्रत करने की प्रथा चली आ रही है।
मंगला गौरी पूजा व्रत उद्यापन विधि
Mangla Gauri Puja Vrat Udyapan Vidhi
- सोलह या बीस मंगलवार के व्रत करने के बाद मंगला गौरी व्रत का उद्यापन मंगलवार के दिन करें।
- सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करके लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
- उद्यापन के दिन उपवास रखें और गठजोड़े से पूजन करें।
- अब एक चौकी के चारों पैरों में केले का खम्बा बांधकर यथाविधि कलश की स्थापना करें तथा कलश के ऊपर मंगला गौरी की मूर्ति की स्थापना करें।
- इसके बाद माँ गौरी को साड़ी, ब्लाउज, ओढ़नी, नथ और सुहाग के सामान चढ़ाकर विधिवत पूजा करें और कथा सुने।
- इसके बाद गणेशादि का स्मरण करके ‘ श्रीमङ्गलागौर्यै नमः ‘ नाम मन्त्र से माँ गौरी की पूजा करें और सोलह दीपकों से आरती करें।
- अब मन्नत के अनुसार किसी पंडित या पुरोहित को तथा सोलह सुहागन स्त्रियों को भोजन कराएं।
- आखिरी मंगलवार को पूरे परिवार के साथ सुहागन स्त्री अपने पति के साथ हवन करें।
- पूर्णाहुति में पूरे परिवार व सगे-संबंधियों को शामिल करें और अंत में आरती करें।
- पीतल के भगोने में चावल और दक्षिणा डालकर ब्राह्मण को दें।
- अंत में अपनी सासू मां के चरण स्पर्शकर उन्हें भी चांदी के एक बर्तन में सोलह लड्डू, आभूषण, वस्त्र तथा सुहाग पिटारी दें।
- इस प्रकार नियमपूर्वक मंगला गौरी व्रत का पालन और उद्यापन करने से सुहागन स्त्रियों को वैधव्य की प्राप्ति नहीं होती।
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मंगला गौरी व्रत का महत्व
Mangla Gauri Vrat Mahatva
हिंदू शास्त्रों में मंगला गौरी व्रत का खास महत्व बताया गया है। इस दिन सुहागन महिलाएं वैवाहिक सुख की सफलता प्राप्ति के लिए ये व्रत करती हैं। माता पार्वती की पूजा अर्चना करना हर स्त्री के लिए सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद होता है। कुंवारी कन्या अगर गौरी व्रत का धारण करती है तो उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। तथा विवाह में हो रही अड़चन भी दूर हो जाती है। सुहागन स्त्रियां इस व्रत को अपने पति की लंबी उम्र अर्थात अखंड सौभाग्यवती होने की लालसा में रखती है।
इस व्रत की खास मान्यता है कि किसी कन्या का विवाह मांगलिक होने की वजह से नहीं हो रहा है। अर्थात कुंडली में मंगल 1, 4, 7, 8 और 12वें घर में उपस्थित हो तो मंगल दोष बनता है। ऐसी स्थिति में कन्या का विवाह नहीं हो पाता। इसलिए मंगला गौरी व्रत रखने की सलाह दी जाती है। मंगलवार के दिन मंगला गौरी के साथ-साथ हनुमानजी के चरण से सिंदूर लेकर उसका टीका माथे पर लगाने से मंगल दोष समाप्त हो जाता है। तथा कन्या को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।
धार्मिक मान्यता है की माता पार्वती ने व्रत के प्रताप से भगवान शिव को प्राप्त किया था और अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद भी प्राप्त किया था। जब माता सीता स्वयंवर के लिए भगवान श्रीराम को मन से पति मान चुकी थी। तब उन्होंने भी माता गौरी की पूजा की थी और उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति हुई थी। ऐसी बहुत धार्मिक मान्यताओं के चलते माता गौरी की पूजा अर्चना बड़े भक्ति भाव से की जाती है। यह व्रत धारण करने पर स्त्रियों तथा कन्याओं को कभी भी व्रत करते समय कष्ट और व्याधि नहीं सताते और उनके समस्त मनोरथ सफल होते हैं।
मंगला गौरी आरती
Mangla Gauri Aarti
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता
ब्रह्मा सनातन देवी शुभ फल दाता। जय मंगला गौरी…।
अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता,
जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता। जय मंगला गौरी…।
सिंह को वाहन साजे कुंडल है,
साथा देव वधु जहं गावत नृत्य करता था। जय मंगला गौरी…।
सतयुग शील सुसुन्दर नाम सटी कहलाता,
हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता। जय मंगला गौरी…।
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता,
सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाता। जय मंगला गौरी…।
सृष्टी रूप तुही जननी शिव संग रंगराताए
नंदी भृंगी बीन लाही सारा मद माता। जय मंगला गौरी…।
देवन अरज करत हम चित को लाता,
गावत दे दे ताली मन में रंगराता। जय मंगला गौरी…।
मंगला गौरी माता की आरती जो कोई गाता
सदा सुख संपति पाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
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