महालक्ष्मी व्रत हिन्दूओं के महत्त्वपूर्ण व्रत होता है। लक्ष्मी को धन के देवी कहा जाता है। देवी लक्ष्मी जी भगवान श्री विष्णु की धर्म पत्नी हैं। महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल अष्टमी से प्रारम्भ होता है और अगले 16 दिनों तक यह व्रत किया जाता है। इस व्रत का पालन धन व समृद्धि की देवी महालक्ष्मी को प्रसन्न करने तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये किया जाता है। Mahalaxmi Vrat Udyapan Vidhi
यह भी पढ़ें – जानिए महालक्ष्मी व्रत शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, कथा और आरती
महालक्ष्मी व्रत में 16 की संख्या का बहुत महत्त्व है इसमें उद्यापन करते समय, महालक्ष्मी के श्रंगार की 16 वस्तुओं का दान करने से, 16 वरदान मिलते हैं। महालक्ष्मी व्रत की बहुत मान्यता है अगर आप व्रत शुरू में नहीं कर पाए तो आखिरी दिन भी व्रत रखकर, महालक्ष्मी को अपने घर आमंत्रित कर सकते हैं। लेकिन जिन्होंने पूरे 15 दिन व्रत रखा है, उन्हें उद्यापन जरुर करना चाहिए।
राधा अष्टमी से शुरू हुए महालक्ष्मी व्रत में अनाज नहीं खाया जाता है। इसमें दूध और फलाहार किया जाता है। कई लोग 15 वर्ष के लिए महालक्ष्मी व्रत का संकल्प लेते हैं। जो लोग सिर्फ 15 दिन का व्रत करते हैं, उन्हें आश्विन कृष्ण अष्टमी को व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

विषयसूची :
महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन सामग्री
Mahalaxmi Vrat Udyapan Samagri
16 चुनरी, 16 बिंदी, 16 डिब्बी सिन्दूर, 16 रिबन, 16 कंधा, 16 शीशा, 16 मीटर वस्त्र या 16 रुमाल, 16 बिछिया, 16 नाक की नथ, 16 फल, 16 मिठाई, 16 मेवा, 16 लौंग, 16 इलाइची
ये भी पढ़िए : जानिए कैसे बना उल्लू धन-वैभव की देवी लक्ष्मी का वाहन
महालक्ष्मी व्रत उद्यापन विधि
Mahalaxmi Vrat Udyapan Vidhi
- व्रत मे उद्यापन के दिन एक सुपड़ा लेते है. इस सुपड़े मे सोलह श्रंगार के सामान लेकर इसे दूसरे सुपड़े से ढक देते है।
- अब 16 दिये प्रज्वलित करते है. पूजन के बाद इसे देवी जी को स्पर्श कराकर दान करते है।
- व्रत के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देते है और लक्ष्मी जी को अपने घर पधारने का आमंत्रण देते है।
- माता लक्ष्मी को भोग लगाते समय ध्यान रहे माता के भोजन मे लहसुन प्याज से बना भोजन वर्जित है।
- माता के साथ साथ उन सभी को भी भोजन दें जिन्होने व्रत किया है. भोजन मे पूड़ी सब्जी खीर रायता आदि विशेष रूप से होता है।
- पूजन के बाद भगवान को भोग लगी हुई थाली गाय को खिलाते है और माता को चढ़ा हुआ श्रंगार का सामान दान करते है।
ये भी पढ़िए : संतोषी माता व्रत कथा, पूजन विधि, उद्यापन और महत्व
महालक्ष्मी व्रत पूजा विधान
- सबसे पहले सोलह तार का डोरा लेकर उसमें सोलह गाँठ लगा लें। हल्दी की गाँठ घिसकर डोरे को रंग लें। डोरे को हाथ की कलाई में बाँध लें।
- व्रत पूरा हो जाने पर वस्त्र से एक मंडप बनावें। उसमें लक्ष्मीजी की प्रतिमा रखें।
- प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करावें। सोलह प्रकार से पूजा करावें।
- रात्रि में तारागणों को पृथ्वी के प्रति अघ्र्य देवें और लक्ष्मी की प्रार्थना करें। व्रत रखने वाली स्त्रियाँ ब्राह्मणों को भोजन करावें।
- उनसे हवन करायें और खीर की आहुति दें।
- चन्दन, ताल, पत्र, पुष्पमाला, अक्षत, दुर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल तथा नाना प्रकार के पदार्थ नये सूप में सोलह-सोलह की संख्या में रखें।
- इसके बाद चार ब्राह्मण और सोलह ब्राह्मणियों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर विदा करें, फिर घर में बैठकर स्वयं भोजन करें।
- इस प्रकार जो व्रत करते हैं, वे इस लोक मं सुख भोगकर बहुत काल तक लक्ष्मी लोक में सुख भोगते हैं।

महालक्ष्मी व्रत कथा
Mahalaxmi vrat Katha
प्राचीन समय की बात है कि एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था. वह ब्राह्मण नियमित रुप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था। उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिये और ब्राह्मण से अपनी मनोकामना मांगने के लिए कहा –
ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की. यह सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्मण को बता दिया. जिसमें श्री हरि ने बताया कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है जो यहां आकर उपले थापती है. तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना और वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है।
देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जाएगा. यह कहकर श्री विष्णु चले गए. अगले दिन वह सुबह चार बजे ही मंदिर के सामने बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने के लिए आईं तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया।
ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है। लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो, 16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्ध्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा। ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा, लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया। उस दिन से यह व्रत इस दिन विधि-विधान से करने व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है।
ये भी पढ़िए : आखिर बिहार के गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान
महालक्ष्मी व्रत द्वितीय कथा
एक बार हस्तिनापूर मे महालक्ष्मी व्रत के दिन गांधारी ने नगर की सारी स्त्रियो को पूजन के लिए आमंत्रित किया, परंतु उसने कुंती को आमंत्रण नहीं दिया। गांधारी के सभी पुत्रो ने पूजन के लिए अपनी माता को मिट्टी लाकर दी और इसी मिट्टी से एक विशाल हाथी का निर्माण किया गया और उसे महल के बीच मे स्थापित किया गया। नगर की सारी स्त्रियां जब पूजन के लिए जाने लगी, तो कुंती उदास हो गयी। जब कुंती के पुत्रो ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने सारी बात बताई।
इस पर अर्जुन ने कहा माता आप पूजन की तैयारी कीजिये मै आपके लिए हाथी लेकर आता हूँ। ऐसा कहकर अर्जुन इन्द्र के पास गया और अपनी माता के पूजन के लिए ऐरावत को ले आया। इसके बाद कुंती ने सारे विधी विधान से पूजन किया। और जब नगर की अन्य स्त्रियो को पता चला, कि कुंती के यहा इन्द्र के ऐरावत आया है। तो वे भी पूजन के लिए उमड़ पड़ी और सभी ने सविधि पूजन सम्पन्न किया।
ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत की कहानी सोलह बार कही जाती है. और हर चीज या पूजन सामग्री 16 बार चढ़ाई जाती है।

महालक्ष्मी जी की आरती
Mahalaxmi Aarti
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता || जय
डमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही हो जग-माता |
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता || जय
दुर्गा रूप निरंजन, सुख सम्पति दाता |
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता || जय
तू ही है पाताल बसन्ती, तू ही है शुभ दाता |
कर्म प्रभाव प्रकाशक, भवनिधि से त्राता || जय
जिस घर थारो वासो, तेहि में गुण आता |
कर न सके सोई कर ले, मन नहिं धड़काता || जय
तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न कोई पाता |
खान पान को वैभव, सब तुमसे आता || जय
शुभ गुण सुंदर मुक्त्ता, क्षीर निधि जाता |
रत्त्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नही पाता || जय
आरती लक्ष्मी जी की, जो कोई नर गाता |
उर आनन्द अति उपजे, पाप उतर जाता || जय
ऐसी ही अन्य जानकारी के लिए कृप्या आप हमारे फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम और यूट्यूब चैनल से जुड़िये ! इसके साथ ही गूगल न्यूज़ पर भी फॉलो करें !