चिरंजीवी पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है मदन द्वादशी का व्रत, जानें पूजन विधि, कथा और महत्त्व | Madan Dwadashi Vrat

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हेल्लो दोस्तों चैत्र मास शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मदन द्वादशी का व्रत किया जाता है। जो इस बार 13 अप्रैल 2022 को आ रहा है। यह चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) के शुक्ल पक्ष के 12 वें दिन मनाया जाता है। इस व्रत में काम पूजन की प्रधानता होती है मदन कामदेव का ही पर्यायवाची है इसीलिए इसे मदन द्वादशी कहा जाता है। इस दिन काम के देव कामदेव की पूजा की जाती है। इस दौरान भगवान शिव की भी पूजा की जाती है।

इस व्रत का प्रारंभ भले ही चैत्र मास होता है परंतु इसे साल की प्रत्‍येक द्वादशी को करने से पापों का नाश होता है और पुत्र की प्राप्‍ति होती है। बताते हैं प्राचीन काल में दैत्‍य माता दिति ने भी अपने पुत्रों की मृत्‍यु के पश्‍चात् मदन द्वादशी का व्रत कर पुनः पुत्र रत्‍न की प्राप्‍ति की थी। इस व्रत में ताम्रपात्र की पूजा की जाती है। इसलिए इस व्रत में ताम्रपात्र का बहुत महत्व होता है।

मदन द्वादशी की पूजन विधि (Madan Dwadashi Poojan Vidhi)

  • मदन द्वादशी व्रत के दिन सबसे पहले प्रातः उठकर स्नान करना चाहिए।
  • इसके बाद एक चौकी पर भगवान विष्णु जी की प्रतिमा रखकर उनकी भक्तिपूर्वक आराधना करनी चाहिए।
  • अब एक पात्र में गुड़, अन्य खाद्य सामग्री और सोना रखें।
  • अब करते हुए भगवान को फूल, फल, धूप, दीप, गंध आदि चढ़ाना चाहिए।
  • इस दिन व्रती को उपवास रखने के साथ साथ रात को जागरण कीर्तन आदि करवाना चाहिए।
  • इस दिन एक घट में चावल और फलों के साथ जल रखना चाहिए और दूसरे दिन घट का दान करना चाहिए।
  • दूसरे दिन स्नान करने के बाद ब्राह्मणों को फल और भोजन करवाकर उन्हें क्षमता अनुसार दान देना चाहिए, अंत में स्वयं भोजन करना चाहिए।
  • प्राचीनकाल में दिति ने अपने दैत्य पुत्रों की मृत्यु के बाद मदन द्वादशी का व्रत कर पुत्र रत्न को पुनः प्राप्ति की थी।
  • हिंदू इस दिन कामदेव और रति की पूजा करते हैं। शिव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना भी की जाती है।
  • इस दिन तिल का दान और तिल का हवन अवश्य करें।
  • इस व्रत को करने से पापों से मुक्ति हो जाती है और सुख, शांति, ऐश्वर्य और पुत्र एवं धन की प्राप्ति होती है।
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Madan Dwadashi Vrat

मदन द्वादशी कथा (Madan Dwadashi Vrat Katha)

एक बार प्राचीन काल में देवासुर संग्राम में देवताओं द्वारा संपूर्ण दैत्यकुल का संहार कर दिया गया और माता दिति के सभी दैत्य पुत्र मारे गये। इस पर दिति को बहुत कष्ट हुआ और वह दुखी होकर सरस्वती नदी के तट पर अपने पति महर्षि कश्यप की आराधना करते हुए तपस्या करने लगी। लेकिन सौ वर्षों की कठोर तपस्या के बाद भी उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई। तब विफल होकर उन्होंने वसिष्ठ आदि महर्षियों से पुत्र शोक नाशक व्रत अर्थात् जिससे उसके पुत्र की मृत्यु का दुःख कम हो जाये, ऐसे व्रत के विषय में पूछा। तब महर्षि वसिष्ठ ने दिति से मदन द्वादशी व्रत करने का विधान बताया।

मदन द्वादशी व्रत का विधान सुनने के बाद दिति ने महर्षियों के निर्देशानुसार व्रत किया और कामदेव व रति की पूजा की। इसी तरह दिति ने प्रत्येक द्वादशी के दिन व्रत व पूजा की और साल की अंतिम, तेरहवीं द्वादशी के दिन व्रत का अनुष्ठान किया। जैसे ही अनुष्ठान पूरा हुआ महर्षि कश्यप दिति के सामने प्रकट हो गए। तब दिति ने उनसे ऐसे पुत्र का वरदान मांगा जो बहुत पराक्रमी हो और देवताओं का वध कर सके। इस तरह महर्षि ने उन्हें छूकर इच्छित वर देते हुए कहा कि तुम्हें पूरे एक हजार वर्ष तक इसी तपोवन में पवित्रता पूर्वक रहना होगा। ऐसा कहकर महर्षि कश्यप अंतध्र्यान हो गए।

इस बात को जानकर इंद्र दिति के पास आये और उनकी सेवा करने की इच्छा जतायी, लेकिन उनकी असली मंशा तो यह थी कि किसी तरह दिति का गर्भ नष्ट हो जाये और हुआ भी वैसा ही। दिति के गर्भावस्था के आखिरी दिनों में इंद्र का पैर दिति के सर पर लग गया और वह अपवित्र हो गई। पैर लगने के कारण उनके गर्भ के 7 टुकड़े हो गए, हालांकि गर्भ पर प्रहार के बाद भी शिशु बच गए और एक की जगह दिति के सात पुत्र हुए।

इस बात का दिति को आभाष हुआ तब दिति ने कहा कि मेरे गर्भ के ये टुकड़े हमेशा आकाश मे विचरण करेंगे और मरुत नाम से विख्यात होंगे, लेकिन एक मरुत के सात गण होने के कारण ये उन्नचास हो गए और आकाश में अलग-अलग जगह विचरण करने लगे। तब से ये उन्नचास गण मरुतगण के नाम से विख्यात हो गए। इंद्र को इस बात पर बहुत आश्चर्य हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है कि इतना वज्र प्रहार होने के बाद भी शिशु बाख गए तब उन्होंने अपने ध्यान से उन्हें ज्ञात हुआ कि मदन द्वादशी व्रत के प्रभाव के कारण ये बालक अमर हुए हैं। इंद्र अपने किए पर शर्मिंदा हुए, उन्होंने दिति से क्षमा मांगी और दिति के पुत्रों को देवताओं के समान बतलाते हुए यज्ञ में उनके लिए उचित भाग की व्यवस्था की इस तरह मदन द्वादशी के व्रत से दिति को पुत्र की प्राप्ति हुई। इसलिए पुत्र प्राप्ति व सुख-समृद्धि की इच्छा रखने वालों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए। जो भी व्यक्ति इस व्रत को करता है और व्रत कथा को कहता या सुनता है उसे चिरंजीवी और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति होती है।

मदन द्वादशी का महत्व (Madan Dwadashi Ka Mahatv)

मदन द्वादशी के दिन कामदेव के लिए व्रत रखकर उनकी पूजा की जाती है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि इस दिन कामदेव की पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस व्रत के करने से मां को पुत्र के शोक से भी मुक्ति मिलती है और इसके साथ ही पुत्ररत्न की भी प्राप्ति होती है। मदन द्वादशी का व्रत 13 द्वादशी तक रखने का प्रावधान है इससे भक्त के सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। कामदेव की पूजा करते हुए ‘रामय-कामाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए। मान्यता है कि दैत्‍य माता दिति ने अपने पुत्रों की मृत्‍यु के पश्‍चात मदन द्वादशी का व्रत रख कर फिर से पुत्र रत्‍न की प्राप्‍ति की थी। इस दिन द्वादशी पर केवल एक फल खाकर जमीन पर सोना चाहिए।

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