नवरात्रि के पांचवे दिन होती है माँ स्कंदमाता का पूजन, जानिए पूजन विधि, कथा और आरती | Maa Skandmata Vrat Katha

Navratri Skandmata Vrat Katha : नवरात्रि के पांचवें दिन नव दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। मां स्कंदमाता (Navratri Skandmata) की आराधना करने से मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है। मां स्कंदमाता सांसारिक जीवो में नव चेतना का निर्माण करने वाली माता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। शास्त्रों में बताया गया है कि मां स्कंदमाता की आराधना करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। देवी स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं इसी कारण जो साधक इनकी भक्ति करता है वह भी आलौकिक तेज और कांतिमय से पूर्ण हो जाता है। देवी की भक्ति करने से जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयों का नाश हो जाता है और साधक भवसागर को पार कर जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि कालिदास द्वारा रचित रघुवंश महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं भी मां स्कंदमाता की कृपा से ही पूर्ण हुई। स्कंदमाता की पूजा से शत्रुओं और कठिन परिस्थितियों को दूर किया जा सकता है और निःसंतान दंपतियों को संतान सुख प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी साधक स्कंद माता की कृपा प्राप्त करता है उसके मन और शरीर में असाधारण ज्ञान प्राप्त होता है। मां स्कंदमाता को जौ और बाजरा दिया जाता है और शारीरिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए मां को केला भी अर्पित किया जाता है।

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माँ स्कंदमाता तिथि (Devi Skandmata Tithi)

तारीख 30 सितम्बर 2022
दिन शुक्रवार
देवी माँ स्कंदमाता
मंत्र ॐ स्कन्दमातृयै नमः
फूल नीला कमल
रंग नीला

स्कंदमाता का स्वरूप (Maa Skandmata ka Swaroop)

स्कंदमाता दो शब्दों से मिलकर बना है स्कन्द और माता. स्कन्द का अर्थ भगवान कार्तिकेय से है जिनका एक नाम स्कन्द कुमार भी है और माता का अर्थ है माँ . स्कंदमाता माँ पार्वती का ही एक रूप है. देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं, एक हाथ में यह स्कंद कुमार कार्तिकेय को गोद में पकड़े हुए हैं। दूसरी और तीसरी भुजा में में कमल का पुष्प धारण किये हुए हैं। और चौथी भुजा में माता वर मुद्रा में है. मां स्कंदमाता का वाहन शेर है और यह कमल के आसन पर भी विराजमान रहती हैं इसलिए इनका दूसरा नाम पद्मासना भी है। माता का यह रूप हमें सिखाता है कि जब हम भक्ति के मार्ग पर चलते हैं तो हमें अपने क्रोध को नियंत्रित रखना चाहिए। मां स्कंदमाता की भक्ति करने से और इनकी कथा सुनने या पढ़ने से संतान सुख और सुख-संपत्ति प्राप्त होती है। मां को नीला रंग बेहद पसंद है तो इस दिन मां का आसन भी नीले रंग का होना चाहिए और उन्हें वस्त्र भी नीले रंग का ही अर्पित करें। मां को प्रसाद के रूप में केसर की खीर का भोग लगाना अत्यंत शुभ होता है।

Maa Skandmata Vrat Katha
Maa Skandmata Vrat Katha

स्कंदमाता की कथा (Maa Skandmata Vrat Katha)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सती द्वारा स्वयं को यज्ञ में भस्म करने के बाद भगवान शिव सांसारिक संसार से अलग होकर कठिन तपस्या में लीन हो गए. उसी समय देवतागण ताड़कासुर नमक असुर के अत्याचारों से कष्ट भोग रहे थे , ताड़कासुर को यह वरदान था कि वह केवल शिवपुत्र के हाथों ही मारा जा सकता था। कथा के अनुसार ताड़कासुर ने एक बार घोर तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न किया। उसने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा। किंतु ब्रह्मा जी ने कहा कि इस पृथ्वी पर जिसका भी जन्म हुआ है उसका मरना तय है। इस पृथ्वी पर कोई भी जीव अमर नहीं है। तब उसने ब्रह्मा जी से वरदान माँगा की इस धरती पर कोई भी उसे मार नहीं सकता केवल शिव की संतान ही उसका वध करेगी। तारकासुर का मानना ​​​​था कि सती के भस्म होने के बाद भोलेनाथ कभी शादी नहीं करेंगे और उनका कोई पुत्र नहीं होगा।

सभी देवताओं की ओर से महर्षि नारद पार्वती जी के पास जाते हैं और उनसे तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए आग्रह करते है. हजारों सालों की तपस्या के बाद भगवान शिव माता पार्वती से विवाह करते हैं. भगवान शिव और पार्वती की उर्जा मिलकर एक अत्यंत ज्वलनशील बीज को पैदा करते हैं और भगवान कार्तिकेय का जन्म होता है. वह बड़े होकर सुन्दर बुद्धिमान और शक्तिशाली कुमार बने.

ब्रह्मा जी से शिक्षा प्राप्त करने के बाद देवताओं के सेनापति के रूप में सभी देवताओं ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया और ताड़कासुर के खिलाफ युद्ध के लिए विशेष हथयार प्रदान किये, देवी स्कंदमाता ने ही कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया। भगवान कार्तिकेय ने एक भयंकर युद्ध में ताद्कसुर को मार डाला. इसप्रकार माँ स्कंदमाता को स्कन्द कुमार यानि कार्तिकेय की माता के रूप में पूजा जाता है. स्कंदमाता की पूजा करने से भगवान कार्तिकेय की पूजा अपने आप ही हो जाती है क्युकी वे अपनी माता की गोद में विराजे हैं.

देवी स्कंदमाता की पूजा विधि (Maa Skandmata Puja Vidhi)

  • जो भी व्यक्ति संतान सुख से वंचित है उन्हें स्कंदमाता की अराधना अवश्य करनी चाहिए।
  • नवरात्रि के पांचवे दिन नियम अनुसार सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद देवी स्कंदमाता का स्मरण करें और व्रत लेने का संकल्प करें।
  • इसके बाद चौकी पर स्कंदमाता की प्रतिमा स्थापित करें। और गंगाजल से मां को स्नान कराएं।
  • उसके बाद मां को सुहाग की सामग्री भेंट करें। मां को नीला रंग बेहद पसंद है तो इस दिन मां का आसन भी नीले रंग का होना चाहिए और उन्हें वस्त्र भी नीले रंग का ही अर्पित करें।
  • इसके बाद मां को चंदन रोली हल्दी सिन्दूर बिल्वपत्र आदि अर्पित करें। फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और स्कंद माता के मंत्र का जाप करें।
  • अंत में घी का दीपक और धूप से माता की आरती करें और उन्हें भोग लगाएं। मां को प्रसाद के रूप में केसर की खीर का भोग लगाना अत्यंत शुभ होता है।

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देवी स्कंदमाता मंत्र (Devi Skandmata Mantra)

वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्विनीम्॥
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पञ्चम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

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देवी स्कंदमाता कवच (Maa Skandmata Kavach)

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयम् पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री ह्रीं हुं ऐं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वाङ्ग में सदा पातु स्कन्दमाता पुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृते हुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्ने च वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासिताङ्गी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥

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देवी स्कंदमाता आरती (Devi Skandmata Aarti)

जय तेरी हो स्कन्द माता। पांचवां नाम तुम्हारा आता॥
सबके मन की जानन हारी। जग जननी सबकी महतारी॥
तेरी जोत जलाता रहूं मैं। हरदम तुझे ध्याता रहूं मै॥
कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा॥
कही पहाड़ों पर है डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा॥
हर मन्दिर में तेरे नजारे। गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥
भक्ति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥
इन्द्र आदि देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए। तू ही खण्ड हाथ उठाए॥
दासों को सदा बचाने आयी। भक्त की आस पुजाने आयी॥

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