पहले दिन होती है मां शैलपुत्री की आराधना, जानिए पूजा विधि, कथा, मंत्र और आरती | Maa Shailputri vrat katha

Maa Shailputri vrat katha : नवरात्रि का पावन पर्व भक्ति और साधना के लिए बहुत अच्छा समय है। नवरात्र के 9 दिन तक नौ देवियों की पूजा की जाती है। नवरात्र के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है, मां शैलपुत्री (maa shailputri) हिमालय की पुत्री हैं। हिमालय पर्वतों के राजा है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री मां शैलपुत्री को भवानी, पार्वती, और हेमावती के नाम से भी जाना जाता है।

नवरात्रि के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की उपासना होती है। देवी शैलपुत्री महादेव की अर्धांगिनी मां पार्वती हैं। देवी पार्वती पूर्व जन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थी और अपने पिता के यज्ञ में महादेव का अपमान सहन नहीं होने के कारण उन्होंने स्वंय को योगाग्नि में भस्म कर दिया था। तब उन्होंने राजा हिमावन के घर जन्म लिया और पार्वती बनकर अवतरित हुई। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।

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माँ शैलपुत्री की तिथि (Maa Shailputri Tithi)

तारीख 22 मार्च 2023
दिन बुधवार
देवी माँ शैलपुत्री
मंत्र ‘ओम देवी शैलपुत्रायै नमः’
फूलसफ़ेद गुड़हल का फूल
रंगधूसर (ग्रे)

माता शैलपुत्री की कथा (Maa Shailputri vrat katha)

माता शैलपुत्री को सती के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला लिया। प्रजापति दक्ष ने उस यज्ञ में सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजा लेकिन भगवान शिव और देवी पार्वती को नहीं बुलाया।

देवी सती जानती थी कि उनके पिता निमंत्रण जरूर भेजेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह उस यज्ञ में जाने के लिए अत्यंत बेचैन थी लेकिन महादेव ने मना कर दिया। हट करके देवी सती उस यज्ञ में पहुंच गई उन्होंने देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बातचीत नहीं कर रहा है। वहां सभी लोग देवी सती के पति यानी महादेव का तिरस्कार कर रहे हैं और उनका अपमान कर रहे हैं।

राजा दक्ष ने भी भगवान शिव का बहुत अपमान किया। अपने पति का अपमान नहीं सह पाने के कारण देवी सती ने यज्ञ की अग्नि में खुद को स्वाहा कर अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव ने जैसे ही यह सब देखा तो वे अत्यंत दुखी हुए। दुख और गुस्से की ज्वाला में महादेव ने उस यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। देवी सती ने पुनः हिमावन यानी पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लिया और शैलपुत्री कहलाई।

Maa Shailputri vrat katha
Maa Shailputri vrat katha

मां शैलपुत्री का निवास (Maa Shailputri ka nivas)

मां शैलपुत्री का वास काशी नगरी वाराणसी में माना जाता है। वहां देवी शैलपुत्री का एक विशाल प्राचीन मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि देवी शैलपुत्री के दर्शन से ही लोगों के मन्नत पूरी हो जाती हैं।

यह भी कहा जाता है कि यदि कोई दंपत्ति वैवाहिक जीवन में कष्ट भोग रहे हैं तो नवरात्र के पहले दिन जो भी मां शैलपुत्री के दर्शन करता है और उनकी आराधना करता है उसके वैवाहिक जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। मां शैलपुत्री (maa shailputri swaroop) वृषक वाहन पर सवार है, इनके बाएं हाथ में कमल है और दाएं हाथ में त्रिशूल रहता है।

मां शैलपुत्री की पूजा विधि (Maa Shailputri puja vidhi)

  • चैत्र नवरात्र के पहले दिन सूर्योदय में उठकर स्नानादि करने के पश्चात साफ कपड़े पहने।
  • इसके बाद मंदिर की चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें और घट स्थापना करें।
  • यदि आप व्रत करना चाहते हैं तो मां शैलपुत्री का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें और उनकी अराधना करें।
  • मां को रोली चावल लगाएं और सफेद फूलों की माला चढ़ाएं। शैलपुत्री माता को सफेद रंग अति प्रिय है इसलिए उन्हें सफेद फूलों की माला चढ़ाई जाती है। मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र अर्पित करें।
  • अब धूप दीप जलाएं और मां की आरती उतारे। मां को सफेद मिष्ठान्न का भोग लगाया जाता है।
  • मां शैलपुत्री की स्तुति करें, दुर्गा चालीसा का पाठ करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
  • नवरात्रि के पूरे 9 दिनों तक हर रोज घर में कपूर जलाना चाहिए और कपूर से ही मां की आरती करना चाहिए।

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माँ शैलपुत्री का मंत्र (Maa Shailputri mantra)

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।
ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।

माँ शैलपुत्री कवच (Maa Shailputri kavach)

ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।

माँ शैलपुत्री की आरती (Maa Shailputri aarti)

शैलपुत्री माँ बैल असवार।करें देवता जय जय कार॥
शिव-शंकर की प्रिय भवानी।तेरी महिमा किसी ने न जानी॥
पार्वती तू उमा कहलावें।जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें॥
रिद्धि सिद्धि परवान करें तू।दया करें धनवान करें तू॥
सोमवार को शिव संग प्यारी।आरती जिसने तेरी उतारी॥
उसकी सगरी आस पुजा दो।सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो॥
घी का सुन्दर दीप जला के।गोला गरी का भोग लगा के॥
श्रद्धा भाव से मन्त्र जपायें।प्रेम सहित फिर शीश झुकायें॥
जय गिरराज किशोरी अम्बे।शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे॥
मनोकामना पूर्ण कर दो।चमन सदा सुख सम्पत्ति भर दो॥

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