हेल्लो दोस्तों भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को कुशोत्पाटिनी/कुशाग्रहणी अमावस्या (Kushotpatini Amavasya 2021) कहा जाता है। भाद्रपद माह भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का महीना होता है, इसलिए भाद्रपद अमावस्या (Bhadrapad Amavasya) का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है. इस दिन वर्ष भर कर्मकांड कराने के लिए पुरोहित नदी पोखर आदि से कुशा नामक घांस उखाड़ कर घर लाते हैं। इस अमावस्या पर पितृ (Pitr Devta) देवताओं के लिए श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और स्नान के बाद दान करना चाहिए। इससे पुण्य फलों की प्राप्ति होती है।
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इस वर्ष कुशोत्पाटिनी अमावस्या सोमवार, 6 सितंबर को पड़ रही है. कुशोत्पाटिनी अमावस्या (kab hai Kushotpatini amavasya) मुख्यत: पूर्वान्ह में मानी जाती है. कुशोत्पाटिनी अमावस्या को कुशाग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन आटा गूंथ करके मां दुर्गा सहित 64 देवियों की आटे से मूर्ति बनाते हैं. महिलाएं व्रत रखती हैं और उनकी पूजा करती हैं. आज के दिन आटे से बनी देवियों की पूजा होती है.
विषयसूची :
कुशोत्पाटिनी अमावस्या शुभ मुहूर्त (Kushotpatini Amavasya Shubh Muhurat) :
तिथि का प्रारंभ- 06 सितंबर को सुबह 07 बजकर 38 मिनट से
तिथि का समापन- 07 सितंबर को प्रात: 06 बजकर 21 मिनट पर
कुशा की उत्पत्ति कैसे हुई :-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक समय हिरण्यकश्यप (Hiranykashyap) के भाई हिरण्याक्ष ने धरती का अपहरण कर लिया। वह धरती को पताल लोक ले गया वह इतना शक्तिशाली था कि उससे कोई भिड़ना नहीं चाहता था। तब धरती को मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार (varah avtaar) लिया व हिरण्याक्ष का वध कर धरती को पताल लोक से मुक्त कराया। वह पुनः धरती की अपनी जगह पर स्थापना करते हैं।
इसकी स्थापना करने के बाद भगवान वाराह बहुत भीग गए थे जिसके कारण उन्होंने अपने शरीर को बहुत तेज झटका झटकने से उनके रोए टूटकर धरती पर जा गिरे जिससे कुशा की उत्पत्ति हुई। कुशा की जड़ में भगवान ब्रह्मा (brahma), मध्य भाग में विष्णु (vishnu), तथा शीर्ष भाव में शिवजी (shiv) विराजित हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुशा को किसी जल या पोखर जो साफ सुथरा हो वहां से प्राप्त करें। आपको पूर्व की दिशा की तरफ मुंह करना है वह अपने हाथ से धीरे-धीरे उखाडना है। ध्यान रहे यह साबूत रहे ऊपर की नोक ना टूटे। उखाड़ दे वक्त इस मंत्र का जाप करना है- ॐ हूं फट् ।
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कुशोत्पाटिनी अमावस्या पूजन विधि (Kushotpatini Amavasya pooja vidhi) :
यह व्रत रखना खासतौर से शादी-शुदा महिलाओं के लिए जिनके बच्चे हों बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस दिन व्रती महिलाएं सुबह उठकर स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ देती हैं। इसके बाद पितरों की पूजा की जाती है।
हिन्दू धर्म में अमावस्या को मुख्य रूप से पितरों (pitron) का दिन माना जाता है इसलिए इस दिन खासतौर से पिंडदान और तर्पण को विशेष महत्व दिया जाता है।
गरीबों को भोजन और कपड़े दान करने से विशेष लाभ मिलता है।
पूजन में विशेष रूप से ज्यादा से ज्यादा देवी देवताओं की पूजा अर्चना कर उनसे अपने परिवार और बच्चों की सुरक्षा का कामना करें।
इस दिन दुर्गा माता को सोने के आभूषण चढ़ाना ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है।
पूजा स्थल को फूलों से सजायें और दुर्गा माता सहित अन्य देवी देवताओं की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करें।
इस दिन शाम के वक़्त विशेष रूप से देवी माँ (devi maa) को व्रती महिलाएं सुहाग का सामान चढ़ायें।
कुशा के कुछ चमत्कारी प्रयोग :
कुंडली (kundli) में केतु (ketu) की महादशा चल रही है व केतु शुभ फल नहीं दे रहा है तो जो कुशा आप इस दिन उखाड़ कर लाए हैं उसका आसन बना ले व आसन पर बैठकर केतु के मंत्रों (mantron) का माला से जाप करें या शिवजी के मंत्रों का जाप करें ऐसा करने से आपके अशुभ केतु शांत होंगे।
अगर ग्रहण सूतक (sootak) में अपने घर के वस्तुओं में अगर इस कुशा को डाल देंगे तो वह सामान खराब नहीं होगा।
यदि आप बीमार हैं या आपके आसपास कोई बीमार हो गया है, बीमारी नहीं जा रही है, तो कुशा को रात भर जल में भिगोकर रख दें वह इसका शरबत बना कर बीमार व्यक्ति को पिलाएं इससे उसके स्वास्थ्य में जल्द से सुधार होगा।
बीमारी में कुशा की जड़ को रोज पानी में डालकर शिवजी का अभिषेक करें इससे भी स्वास्थ्य में लाभ होगा।
कुशा को हाथ में लेकर दान (daan) पुण्य करने से दान का संपूर्ण लाभ प्राप्त होता है।
इस दिन पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान (pind) आदि के लिए इस कुशा का प्रयोग किया जाता है।
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अमावस्या पर करें ये शुभ काम :
इस तिथि पर देवी लक्ष्मी के साथ ही भगवान विष्णु की विशेष पूजा करें। पूजा में दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें।
हनुमान (hanuman) मंदिर में सरसों के तेल का दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा (hanuman chalisa) का पाठ करें।
पीपल को जल चढ़ाकर सात परिक्रमा करें।
शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें।
इस अमावस्या पर किसी गौशाला में धन और हरी घास का दान भी करना चाहिए।
इस दिन पितरों के लिए धूप-ध्यान करना चाहिए।
मछलियों के लिए नदी या तालाब में आटे की गोलियां बनाकर डालें।
कुशोत्पाटिनी अमावस्या का महत्व (Kushotpatini Amavasya Mahatv) :
माना जाता है कि इस दिन कुशा नामक घास को उखाड़ने से यह वर्ष भर कार्य करती है मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ कर्म कांड सभी शुभ कार्यों में आचमन में या जाप आदि करने के लिए कुशा इसी अमावस्या (amavasya) के दिन उखाड़ कर लाई जाती है। हिन्दू धर्म में कुश के बिना किसी भी पूजा को सफल नहीं माना जाता है. भाद्रपद अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के लिए कुशा एकत्रित की जाती है, इसलिए इसे कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है. वहीं पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है. यदि भाद्रपद अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इस कुशा का उपयोग 12 सालों तक किया जा सकता है. किसी भी पूजन के अवसर पर पुरोहित यजमान को अनामिका उंगली में कुश की बनी पवित्री पहनाते हैं.