कैसे शुरू हुई भगवान शिव को प्रसन्न करने वाली कांवड़ यात्रा, जानिए इतिहास, महत्व और नियम

हेल्लो दोस्तों हिंदू धर्म में सावन का महीना बहुत महत्वपूर्ण होता है। शिवभक्तों को इस महीने का बेसब्री से इंतजार रहता है। इस पूरे महीने भगवान शिव और माता पार्वती की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। सावन का महीने में शिव भक्त कावड़ यात्रा पर जाते हैं। कावड़ियों के लिए ये यात्रा बहुत महत्वपूर्ण होती है, हालांकि कोरोना की वजह से कांवड़ यात्रा को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। Kanwar Yatra ka itihas

हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं इस यात्रा को कांवड़ यात्रा बोला जाता है। श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है।

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इस दौरान श्रद्धालु कांवड़ को जमीन पर नहीं रखते हैं। कांवड़ चढ़ाने वाले लोगों को कांवड़ियां कहा जाता है। ज्यादातर कांवड़ियां केसरी रंग के कपड़े पहनते हैं। ज्यादातर लोग गौमुख, इलाहबाद, हरिद्वार और गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों से गंगाजल भरते हैं, इसके बाद पैदल यात्रा कर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।

यहां जानिए सदियों से चली आ रही इस कांवड़ यात्रा का इतिहास, ये कितनी तरह की होती है और इसके नियम के बारे में।

ये है कांवड़ का इतिहास

कांवड़ यात्रा का इतिहास परशुराम भगवान के समय से जुड़ा हुआ है। भगवान परशुराम शिव जी के परम भक्त थे। मान्यता है कि एक बार वे कांवड़ लेकर यूपी के बागपत जिले के पास ‘पुरा महादेव’ गए थे। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था, उस समय श्रावण मास चल रहा था। तब से श्रावण के महीने में कांवड़ यात्रा निकालने की परंपरा शुरू हो गई और यूपी, उत्तराखंड समेत तमाम राज्यों में शिव भक्त बड़े स्तर पर हर साल सावन के दिनों में कांवड़ यात्रा निकालते हैं। मान्यता है कि जो लोग सावन के महीने में कांवड़ चढ़ाते उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

Kanwar Yatra ka itihas
Kanwar Yatra ka itihas

वहीं, कुछ लोगों का मानना हैं कि सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार न कांवड़ यात्रा की थी. उनके अंधे माता- पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा जताई थी. श्रवण कुमार ने माता पिता की इच्छा को पूरा करते हुए कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार में स्नान कराया. वापस लौटते समय श्रवण कुमार गंगाजल लेकर आए और उन्होंने शिवलिंग पर चढ़ाया. इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है.

कितनी तरह की होती है कांवड़ यात्रा

परशुराम भगवान के समय में शुरू हुई कांवड़ यात्रा पैदल ही निकाली जाती थी, लेकिन समय और सहूलियत के अनुसार आगे चलकर कांवड़ यात्रा के कई प्रकार और नियम कायदे बन गए. फिलहाल तीन तरह की कांवड़ यात्रा निकालने का चलन है.

खड़ी कांवड़ –

खड़ी कांवड़ यात्रा में भक्त कंधे पर कांवड़ लेकर पैदल यात्रा करते हुए गंगाजल लेने जाते हैं. ये सबसे कठिन यात्रा होती है क्योंकि इसके नियम काफी कठिन होते हैं. इस कांवड़ को न तो जमीन पर रखा जाता है और न ही कहीं टांगा जाता है. यदि कांवड़िये को भोजन करना है या आराम करना है तो वो कांवड़ को या तो स्टैंड में रखेगा या फिर किसी अन्य कांवड़िए को पकड़ा देगा.

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झांकी वाली कांवड़ यात्रा –

समय के अनुसार आजकल लोग झांकी वाली कांवड़ यात्रा भी निकालने लगे हैं. इस यात्रा के दौरान कांवड़िए झांकी लगाकर चलते हैं. वे किसी ट्रक, जीप या खुली गाड़़ी में शिव प्रतिमा रखकर भजन चलाते हुए कांवड़ लेकर जाते हैं. इस दौरान शिव भक्त भगवान शिव की प्रतिमा का श्रंगार करते हैं और गानों पर थिरकते हुए कांवड़ यात्रा निकालते हैं.

डाक कांवड़ –

डाक कांवड़ वैसे तो झांकी वाली कांवड़ जैसी ही होती है. इसमें भी किसी गाड़ी में भोलेनाथ की प्रतिमा को सजाकर रखा जाता है और भक्त शिव भजनों पर झूमते हुए जाते हैं. लेकिन जब मंदिर से दूरी 36 घंटे या 24 घंटे की रह जाती है तो कांवड़िए कांवड़ में जल लेकर दौड़ते हैं. ऐसे में दौड़ते हुए कांवड़ लेकर जाना काफी मुश्किल होता है. इसके लिए कांवड़िए पहले से संकल्प करते हैं.

Kanwar Yatra ka itihas
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कांवड़ यात्रा के नियम

मान्यता है कि कांवड़ यात्रा के नियम बेहद सख्त हैं जो व्यक्ति इन नियमों का पालन नहीं करते हैं उनकी यात्रा अधूरी मानी जाती है. इसके अलावा उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है.

कांवड़ यात्रा के दौरान किसी भी तरह का नशा करना वर्जित माना गया है. इसके अलावा मांसहारी भोजन करने की भी मनाही है.

यात्रा के दौरान कांवड को जमीन पर नहीं रखना चाहिए. अगर आपको कही रुकना हैं तो स्टैंड या पेड़ के ऊंचे स्थल पर रखें. कहते हैं अगर किसी व्यक्ति ने कांवड़ को नीचे रखा तो उसे दोबारा गंगाजल भरकर यात्रा शुरू करनी पड़ती है.

कांवड़ यात्रा के दौरान पैदल चलने का विधान है. अगर आप कोई मन्नत पूरी होने पर यात्रा कर रहे हैं तो उसी मन्नत के हिसाब से यात्रा करें.

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