हेल्लो दोस्तों हिंदू धर्म में कामदा सप्तमी की विशेष महिमा बतायी गई है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कामदा सप्तमी का व्रत भक्त मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु करते हैं. कामदा सप्तमी (Kamda Saptami 2021) का व्रत इस बार 20 मार्च शनिवार को रखा जाएगा. इस व्रत को सालभर तक रखा जाता है. हर शुक्ल सप्तमी के दिन कामदा सप्तमी का व्रत रखा जाता है.
कामदा सप्तमी व्रत की महिमा स्वयं ब्रह्मा जी ने अपने श्रीमुख से भगवान विष्णु को बतायी थी. इस व्रत को करने से संतान सुखी रहती है, धन, संपत्ति में वृद्धि होती है. कामदा सप्तमी का व्रत हर शुक्ल सप्तमी को करना चाहिए और हर चौमासे यानी कि चार माह में व्रत का पारण करना चाहिए. आइए जानते हैं कामदा सप्तमी का महत्व और पूजा विधि…
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विषयसूची :
कामदा सप्तमी पूजा विधि:
कामदा सप्तमी से एक दिन पूर्व यानी किषष्ठी को एक समय भोजन करके सप्तमी को निराहार रहकर, ‘खरखोल्काय नमः ‘ मन्त्र से सूर्य भगवान की पूजा की जाती है और अष्टमी को अर्क (आक ) के पत्तों का सेवन करना चाहिए. प्रातः स्नानादि के बाद सूर्य भगवान् की पूजा की जाती है.
- इस सप्तमी को निराहार व्रत करना होता है.
- प्रातः स्नानादि के बाद सूर्य भगवान् की पूजा की जाती है
सूर्य भगवान् का पूजन करके आज घी , गुड़ इत्यादि का दान किया जाता है - सारा दिन “सूर्याय नमः” मन्त्र से भगवान् का स्मरण किया जाता है..
- मंदिर के पुजारी को भोजन करवाकर दक्षिणा दें.
अष्टमी को स्नान करके सूर्य देव का हवन पूजन किया जाता है.
दूसरे दिन ब्राह्मणों का पूजन करके खीर खिलाने का विधान है.
सूर्य देव के मंत्र :
- खरखोल्काय नमः
- सूर्याय नमः
- ॐ घृणिं सूर्य्य: आदित्य:
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा
- ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:
- ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः
- ॐ सूर्याय नम:
- ॐ घृणि सूर्याय नम:
सूर्य का तंत्रोक्त मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:.
सूर्य का प्रार्थना मंत्र
ग्रहाणामादिरादित्यो लोक लक्षण कारक:।
विषम स्थान संभूतां पीड़ां दहतु मे रवि।।
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कामदा एकादशी की व्रत कथा :
कहा जाता है कि पुण्डरीक नामक नागों का एक राज्य था. यह राज्य बहुत वैभवशाली और संपन्न था. इस राज्य में अप्सराएं, गन्धर्व और किन्नर रहा करते थे. वहां ललिता नाम की एक अतिसुन्दर अपसरा भी रहती थी. उसका पति ललित भी वहीं रहता था. ललित नाग दरबार में गाना गाता था और अपना नृत्य दिखाकर सबका मनोरंजन करता था. इनका आपस में बहुत प्रेम था.
दोनों एक दूसरे की नज़रों में बने रहना चाहते थे. राजा पुण्डरीक ने एक बार ललित को गाना गाने और नृत्य करने का आदेश दिया. ललित नृत्य करते हुए और गाना गाते हुए अपनी अपसरा पत्नी ललिता को याद करने लगा, जिससे उसके नृत्य और गाने में भूल हो गई. सभा में एक कर्कोटक नाम के नाग देवता उपस्थित थे, जिन्होंने पुण्डरीक नामक नाग राजा को ललित की गलती के बारे में बता दिया था. इस बात से राजा पुण्डरीक ने नाराज होकर ललित को राक्षस बन जाने का श्राप दे दिया.
इसके बाद ललित एक अयंत बुरा दिखने वाला राक्षस बन गया. उसकी अप्सरा पत्नी ललिता बहुत दुखी हुई. ललिता अपने पति की मुक्ति के लिए उपाय ढूंढने लगी. तब एक मुनि ने ललिता को कामदा एकादशी व्रत रखने की सलाह दी. ललिता ने मुनि के आश्रम में एकादशी व्रत का पालन किया और इस व्रत का पूण्य लाभ अपने पति को दे दिया. व्रत की शक्ति से ललित को अपने राक्षस रूप से मुक्ति मिल गई और वह फिर से एक सुंदर गायक गन्धर्व बन गया.
कामदा सप्तमी का महत्व:
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जिन जातकों की कुण्डली में सूर्य नीच का होता है उनके जीवन में काफी परेशानियां आती हैं. ऐसे में यदि जातक कामदा सप्तमी का व्रत करता है तो उसे इन परेशानियों से निजात मिलती है. ऐसे जातकों का सूर्य बलवान हो जाता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है.