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हेल्लो दोस्तों विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) का महापर्व प्रत्येक साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। जगन्नाथ मंदिर ओडिशा के पुरी शहर में स्थित है। यह वैष्णव मंदिर श्रीहरि के पूर्ण अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। पूरे साल इनकी पूजा मंदिर के गर्भगृह में होती है, लेकिन आषाढ़ माह में तीन किलोमीटर की अलौकिक रथ यात्रा के जरिए इन्हें गुंडिचा मंदिर लाया जाता है।
कहा जाता जाता है कि गुंडिचा भगवान श्रीकृष्ण की सच्ची भक्त थीं, और उनकी इसी भक्ति का सम्मान करते हुए ये इन तीनों उनसे हर वर्ष मिलने जाते हैं। इस साल जगन्नाथ यात्रा 1 जुलाई से शुरू होगी और इसका समापन 10 जुलाई को होगा। बता दें पिछले दो साल कोरोना के चलते भक्तगण इस पावन यात्रा में शामिल नहीं हो पाए थे लेकिन इस साल पूरे धूमधाम के साथ रथ यात्रा का महोत्सव मनाया जाएगा.
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भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ तीन दिव्य रथों पर सवार होते हैं। तीनों भाई-बहन के रथ अलग-अलग होते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ जी अपने धाम से निकलकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जिसे उनकी मौसी का घर कहा जाता है। वहां पर भगवान जगन्नाथ सात दिनों तक रहते हैं।
हिन्दू धर्म में वर्णित चार धाम में एक धाम पुरी (Puri) का जगन्नाथ मंदिर है। यहाँ हर साल ‘जगन्नाथ रथ यात्रा’ धूमधाम से निकाली जाती है जिसमें शामिल होने देश-दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं। ऐसा माना जाता है इस रथयात्रा में शामिल होने मात्र से उन्हें सभी तीर्थों के पुण्य का फल मिल जाता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा 2022 की तारीख व मुहूर्त
Jagannath Puri Rath Yatra 2022 Date
पंचांग के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा का प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से होता है। इस साल 2022 में पंचांग के मुताबिक जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा 01 जुलाई से शुरू होगी तथा 10 जुलाई को खत्म होगी। संयोग वश 08 जुलाई को देवशयनी एकादशी भी है। इस यात्रा के पहले दिन भगवान जगन्नाथ प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं। साल 2023 में जगन्नाथ रथ यात्रा 20 जून, 2023 (मंगलवार) को होगी।
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि का प्रारंभ – 30 जून, गुरुवार को सुबह 10 बजकर 49 मिनट से।
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि का समाप्त – 01 जुलाई, शुक्रवार को दोपहर 01 बजकर 09 मिनट पर।
क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा?
Kyo Nikaali Jati Hai Rath Yatra
पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर (द्वारका दर्शन) देखने की इच्छा जताई। जिसके फलस्वरूप भगवान जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े। इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां सात दिन ठहरे, तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है। नारद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी इसका जिक्र है। जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा में बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। भगवान जगन्नाथ जी को भगवान श्रीकृष्ण और राधा की युगल मूर्ति का रूप माना जाता है।
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रथ यात्रा का कार्यक्रम
Jagannath Rath Yatra Program
- 01 जुलाई 2022, शुक्रवार – रथ यात्रा प्रारंभ (गुंडिचा मौसी के घर जाने की परंपरा)।
- 05 जुलाई 2022, मंगलवार – हेरा पंचमी (पहले पांच दिन भगवान गुंडिचा मंदिर में वास करते हैं)।
- 08 जुलाई 2022, शुक्रवार – संध्या दर्शन (इस दिन जगन्नाथ के दर्शन करने से 10 साल तक श्रीहरि की पूजा के समान पुण्य मिलता है)।
- 09 जुलाई 2022, शनिवार – बहुदा यात्रा (भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा की घर वापसी)।
- 10 जुलाई 2022, रविवार – सुनाबेसा (जगन्नाथ मंदिर लौटने के बाद भगवान अपने भाई-बहन के साथ शाही रूप लेते हैं)।
- 11 जुलाई 2022, सोमवार – आधर पना (आषाढ़ शुक्ल द्वादशी पर दिव्य रथों पर एक विशेष पेय चढ़ाया जाता है. इसे पना कहते हैं, जो दूध, पनीर, चीनी और मेवा से बनता है)
- 12 जुलाई 2022, मंगलवार – नीलाद्री बीजे (जगन्नाथ रथ यात्रा के सबसे दिलचस्प अनुष्ठानों में एक है नीलाद्री बीजे)।

तीनों रथों की विशेषता
Jagannath Rath Specification
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए तीन रथ तैयार किये जाते हैं, जिसमें भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र व बहिन सुभद्रा के साथ निकलते हैं। रथ यात्रा में सबसे आगे श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का रथ रहता है, जिसे इसे तालध्वज कहते हैं। इस रथ में 14 पहिये रहते हैं और उसका रंग लाल एवम हरा होता है। यह रथ 13.2 मीटर ऊँचा होता है। यह लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मतानी होते हैं।
उसके बाद देवी सुभद्रा का रथ होता है, जिसमें 12 पहिये रहते हैं और इसे दर्पदलन या पद्मरथ कहा जाता है। यह 12.9 मीटर ऊँचा होता है और इस रथ में लाल काले कपडे के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का उपयोग किया जाता है। रथ के रक्षक जयदुर्गा और सारथी अर्जुन होते हैं। सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ का 16 पहिये वाला रथ रहता है जिसे नंदीघोष या गरूणध्वज नाम से जाना जाता है। इनके रथ का रंग लाल और पीला होता है। यह रथ 13.5 मीटर ऊँचा होता है। विष्णु का वाहक गरुड़ इसकी रक्षा करता है।
ऐसा कहा जाता है कि इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ साल में एक बार प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा के भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के लाखों श्रद्धालु साक्षी बनते हैं। रथ यात्रा से एक दिन पहले श्रद्धालुओं के द्वारा गुंडीचा मंदिर को धुला जाता है। इस परंपरा को गुंडीचा मार्जन कहा जाता है। इस रथयात्रा को गुण्डीचा यात्रा, घोषयात्रा, दशावतार यात्रा आदि के नाम से भी जाना जाता है।
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रथ यात्रा में सुदर्शन चक्र
रथ यात्रा के समय रथों में प्रतिमाएं स्थापित करने से पहले तीनों रथों को पवित्र किया जाता है फिर सुदर्शन चक्र लाया जाता है। यहाँ सुदर्शन चक्र गोलाकार न होकर खम्बाकार होता है। इससे जुडी एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सुदर्शन चक्र को इस बात पर घमंड हो जाता है कि वह ही प्रभु के सबसे प्रिय सेवक है। इस बात का पता चलने पर प्रभु ने उसके घमंड को तोडना चाहा। इसके लिए एक दिन उन्होनें सुदर्शन चक्र से कहा कि वह उनके प्रिय सेवक हनुमान को बुलाकर लाये।
यह सुनकर सुदर्शन को आश्चर्य हुआ कि क्या उनसे ऊपर प्रभु का कोई प्रिय सेवक हो सकता है। उन्होंने हनुमान को प्रभु का समाचार तो दे दिया, पर अपनी शक्ति से सभी द्वार बंद कर दिए। हनुमान रुक तो नहीं सकते थे इसलिए उन्होनें सुदर्शन चक्र को अपनी कांख के नीचे दबाया और प्रभु से मिलने पहुँच गए। इस तरह सुदर्शन चक्र का घमंड चूर हो गया इसलिए यहाँ पर सुदर्शन चक्र को खम्बाकार रूप में ही लाया जाता है। यहाँ पर सुदर्शन चक्र को रक्षा के लिए बहन सुभद्रा के रथ पर रखा जाता है।
जगन्नाथ मंदिर किसने बनवाया
Who Made Jagannath Temple
एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा इंद्रदयुम्न भगवान जगन्नाथ को शबर राजा से यहाँ लेकर आये थे और उन्होनें ही मूल मंदिर का निर्माण कराया था जो बाद में नष्ट हो गया। ऐसा कहा जाता है पूरी में भगवान जगन्नाथ जी का मुख्य मंदिर 12वी शताब्दी में राजा अनंतवर्मन के शासनकाल के समय बनाया गया। उसके बाद जगन्नाथ जी के 120 मंदिर बनाये गए हैं। यह लगभग 10.7 एकड़ वर्ग भूमि में निर्मित जगन्नाथ के मंदिर का शिखर 192 फ़ीट ऊँचा और चक्र तथा ध्वज से सुशोभित रहता है। जगन्नाथ मंदिर का निर्माण एक छोटी सी पहाड़ी पर किया गया है जिसे नीलगिरि कहकर सम्मानित किया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर बीस फ़ीट ऊँची दीवार के परखोटे के भीतर है जिसमें अनेक छोटे-छोटे मंदिर हैं। जगन्नाथ के विशाल मंदिर के भीतर चार खंड हैं- पहला भोग मंदिर जिसमें भगवान को भोग लगाया जाता है। दूसरा रण मंदिर- इसमें नृत्य गान आदि का आयोजन किया जाता है। तीसरा भाग है सभा मंडप- इसमें तीर्थ यात्री आदि बैठते हैं और चौथा और अंतिम भाग अंतराल है।

ऐसे होती है रथ यात्रा की तैयारी
Jagannath Rath Prepration
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भले ही एक दिन की होती है लेकिन इस महापर्व की शुरुआत वैशाख मास की अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर आषाढ़ मास की त्रयोदशी तक चलती है। इसमें प्रयोग में लाए जाने वाले रथों का निर्माण भी कई महीने पहले से शुरू हो जाता है। भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के लिए नीम के चुनिंदा पेड़ की लकड़ियों से रथ तैयार किया जाता है। रथ की लकड़ी के लिए अच्छे और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है जिसमे कील आदि न ठुके हों और रथ के निर्माण में किसी प्रकार की धातु का उपयोग नहीं किया जाता है। हर साल रथयात्रा के लिए नए रथों का निर्माण होता है और पुराने रथों को तोड़ दिया जाता है।
कैसे बनाई जाती है प्रतिमाएं
जगन्नाथ (Jagannath Rath Yatra) सहित बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से बनाई जाती है। इसमें रंगों की भी खास ध्यान दिया जाता है। जगन्नाथ का रंग सांवला होने की वजह से नीम की उसी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता जो सांवले रंग की हो। तो वहीं भाई-बहन का रंग गोरा होने की वजह से मूर्तियों पर हल्के रंग की नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।
भगवान भी रहे थे 14 दिन क्वारंटीन
पौराणिक कथाओं के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ का जन्म हुआ था। उस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा को रत्नसिंहासन से उतार कर भगवान जगन्नाथ के मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है। वहां भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहिन सुभद्रा को स्नान पूर्णिमा के दिन 108 घड़े के पवित्र जल से शाही स्नान कराया गया था। इतना स्नान कराने से उन तीनों को बुखार हो गया था। यह संक्रमण और अधिक लोगों में न फैले, इसके लिए तीनों देवी देवताओं को अनासर (ओसर) घर ले जाया गया और वहीँ रखा गया था। अनासर घर में ही उनका इलाज किया गया। तब जाकर 14वें दिन तीनों देवी देवता ठीक हुए थे और भक्तों को दर्शन देते हैं. इसे नवयौवन नेत्र उत्सव भी कहते हैं।
इसके बाद आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है। हर साल रथ यात्रा से 14 दिन पहले भगवान क्वारंटीन हो जाते हैं और स्वस्थ होने पर बाहर निकलते हैं। इस क्वारंटीन रूम को अनासर या ओसर घर कहा जाता था।
जगन्नाथ रथ यात्रा पौराणिक कथा
Jagannath Rath Yatra Story
वैसे तो जगन्नाथ रथ यात्रा के संदर्भ में कई धार्मिक-पौराणिक मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं जिनमें से एक कथा का वर्णन कुछ इस प्रकार है – एक बार गोपियों ने माता रोहिणी से कान्हा की रास लीला के बारे में जानने का आग्रह किया। उस समय सुभद्रा भी वहाँ उपस्थित थीं। तब माँ रोहिणी ने सुभद्रा के सामने भगवान कृष्ण की गोपियों के साथ रास लीला का बखान करना उचित नहीं समझा, इसलिए उन्होंने सुभद्रा को बाहर भेज दिया और उनसे कहा कि अंदर कोई न आए इस बात का ध्यान रखना। इसी दौरान कृष्ण जी और बलराम सुभद्रा के पास पधार गए और उसके दाएँ-बाएँ खड़े होकर माँ रोहिणी की बातें सुनने लगे। इस बीच देव ऋषि नारद वहाँ उपस्थित हुए। उन्होंने तीनों भाई-बहन को एक साथ इस रूप में देख लिया। तब नारद जी ने तीनों से उनके उसी रूप में उन्हें दैवीय दर्शन देने का आग्रह किया। फिर तीनों ने नारद की इस मुराद को पूरा किया। अतः जगन्नाथ पुरी के मंदिर में इन तीनों (बलभद्र, सुभद्रा एवं कृष्ण जी) के इसी रूप में दर्शन होते हैं।

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का महत्त्व
Jagannath Puri Rath Yatra mahatva
यह हिंदुओं के चार धामों में से एक है। इस मंदिर की स्थापना करीब 800 साल पहले हुई थी। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा मूर्तियाँ हैं। इनके दर्शन से भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती है। धार्मिक मान्यता है कि इस रथ यात्रा के दर्शनमात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। देश-विदेश के शैलानियों के लिए भी यह यात्रा आकर्षण का केन्द्र मानी जाती है। इस यात्रा को पुरी कार फ़ेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है। ये सब बातें इस यात्रा के सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं।
जगन्नाथ से यहाँ आशय ‘जगत के नाथ’ यानी भगवान विष्णु से है। उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। हिन्दू मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में एकबार जगन्नाथ मंदिर के दर्शन के लिए अवश्य जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस यात्रा में शामिल होने मात्र से भक्तों पर भगवान जगन्नाथ की कृपा बरसती है और उसे 100 यज्ञों के बराबर पुण्यफल प्राप्त होता है।
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