हेल्लो दोस्तों गोवर्धन (गिरीराज भगवान) पूजन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होती है। कथाओं के अनुसार गोवर्धन पूजा द्वापर युग से चली आ रही है। कृष्ण जी ने ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए 7 दिनों तक अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा कर रखा था। गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर पूजन किया जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व माना जाता है। Importance Of Goverdhan Parikrama
गोवर्धन भगवान और कृष्ण जी की विशेष कृपा पाने के लिए लोग इस दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। लोग गोवर्धन की परिक्रमा के समय कुछ गलतियां कर देते हैं, जिससे उन्हें पूरी कृपा नहीं मिल पाती है। परिक्रमा करते समय की गई कुछ गलतियों के कारण लोग पाप के भागीदार भी बनते हैं, इसलिए गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हुए नियमों का पालन करना बहुत आवश्यक माना गया है। आइए जानते हैं :
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ऐसे होती है गोवर्धन परिक्रमा
श्री गिरिराज जी की पूरी और संपूर्ण परिक्रमा में दो दिन लगते हैं। इसके तहत एक छोटी परिक्रमा होती है और दूसरी बड़ी परिक्रमा। जब भक्त गाजे बाजे के साथ गोवर्धन पर्वत का चक्कर लगाते हैं तो इस बीच गोवर्धन नामक गांव भी आता है। पर्वत के उत्तर में राधाकुंड और दक्षिण में पुछारी गांव पड़ता है।
छोटी परिक्रमा में भक्त राधाकुंड गांव तक जाकर वहां से लौटते हैं जो 6 किलोमीटर का फासला है। जबकि बड़ी परिक्रमा में पूरे सात कोस यानी 21 किलोमीटर तक गोवर्धन पर्वत का चक्कर लगाना होता है जिसमें कई गांव और कुंड पड़ते हैं। आमतौर पर लोग एक ही दिन में सात कोसी परिक्रमा करना पसंद करते हैं क्योंकि इसके बारे में कहा जाता है कि एक दिन में सात कोसी परिक्रमा बड़ा फल देती है।

गोवर्धन पर्वत 4 से 5 मील तक फैला हुआ है। इसके बारे में मान्यता है कि कभी ये तीस हजार मीटर ऊंचा था लेकिन पुलत्सय ऋषि ने इसे श्राप दिया और कहा कि तुम रोज एक मुट्ठी सिकुड़ते रहोगे। तब से यह पर्वत लगातार अपनी ऊंचाई खोता जा रहा है और अब बमुश्किल 30 मीटर ऊंचा रह गया है।
कहा जाता है कि कृष्ण के काल में यह पर्वत बहुत ही हरा भरा और रमणीक था। यहां लता कंदराएं और कई गुफाएं भी थी। यहां से कुछ ही दूरी पर यमुना नदी बहा करती थी। पर्वत के ऊपर श्री गोविंद देव जी का मंदिर है और वहीं पर एक गुफा भी है।
मंदिर के बारे किवदंती है कि यहां आज भी श्रीकृष्ण शयन करने आते हैं। मंदिर में स्थित गुफा के बारे में कहा जाता है कि ये नीचे नीचे ही राजस्थान के श्रीनाथ द्वारा तक जाती है। गोवर्धन पर्वत के बारे में मान्यता है कि इस चमत्कारी पर्वत की परिक्रमा करने वालों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती है उसके जीवन में कभी पैसे की कमी नहीं रहती।
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गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा से जुड़े नियम
- परिक्रमा प्रारंभ करने से पहले गोवर्धन पर्वत को प्रणाम करें और ध्यान रखें कि किस स्थान से आपने परिक्रमा आरंभ की है। गोवर्धन की परिक्रमा जिस स्थान से आरंभ करते हैं, उसी स्थान पर समाप्त करते हैं।
- अगर आपको गोवर्धन परिक्रमा आरंभ करनी है तो पहले मानसी गंगा में स्नान अवश्य कर लेना चाहिए। अगर गंगा में स्नान करना संभव न हो तो हाथ मुंह धोकर भी परिक्रमा आरंभ की जा सकती है।
- अगर आप गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं तो उसे पूरा अवश्य करें। परिक्रमा को बीच में कभी अधूरा छोड़ने की गलती न करें। अगर किसी विशेष कारण से आपको परिक्रमा अधूरी छोड़नी पड़े तो गोवर्धन भगवान और कृष्ण जी से क्षमा प्रार्थना करने के पश्चात ही परिक्रमा छोड़े।

- गोवर्धन पर्वत की पूजा करते समय भगवान के नाम का स्मरण करते हुए परिक्रमा करें। सांसारिक बातों की ओर ध्यान न दें, क्योंकि पवित्र मन से की गई परिक्रमा ही फलदायी होती है।
- अगर आप शादी-शुदा हैं तो अपने जीवनसाथी के साथ ही परिक्रमा करनी चाहिए। इससे आप दोनों को गोवर्धन भगवान का आशीर्वाद मिलता है।
- गोवर्धन की परिक्रमा करते समय पवित्रता का ध्यान रखना आवश्यक होता है, इसलिए भूलकर भी किसी नशीली चीज या फिर धुम्रपान का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से आप पाप के भागीदार बनते हैं।
- गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा इस तरह से आरंभ करें कि परिक्रमा करते समय गोवर्धन पर्वत आपके दाहिनी ओर रहे। शास्त्रों में कहा गया है कि जिसकी भी हम परिक्रमा करते हैं, वह वस्तु हमारी दांयी ओर होनी चाहिए, अन्यथा परिक्रमा उल्टी मानी जाती है।
- महिलाओं को पीरियड्स के दौरान गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। लेकिन परिक्रमा करने समय यदि किसी महिला को मासिक धर्म आ जाए तो वह परिक्रमा अधूरी नहीं पूरी ही मानी जाती है।
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