हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्रीकृष्णजी के बड़े भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में बलराम जयंती मनाई जाती है। देश के अलग-अलग हिस्सों में हलषष्ठी (Hal Shashthi Vrat) को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे लह्ही छठ, हरछठ (harchat vrat), हल छठ (hal chhat vrat), पीन्नी छठ या खमर छठ भी कहा जाता है।
बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है एवं उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है। हलषष्ठी के दिन माताओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है।
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संतान प्राप्ती के साथ पुत्र की दीर्घायु के लिए किए जाने वाला हलषष्ठी व्रत या चंदन छठ व्रत पांच सितंबर को मनाया जाएगा। इस बार यह पर्व सर्वार्थ सिद्ध योग में पड़ने से बेहद खास है। दिन के समय सात तरह के अनाज का दान करना उत्तम रहेगा। वहीं, चंद्रमा उदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत का समापन किया जाएगा।
आइये जानें बलराम जयंती या हलषष्ठी व्रत पूजा के लिए शुभ समय, पूजा विधि और महत्व:-
विषयसूची :
हलषष्ठी व्रत के लिए शुभ मुहूर्त
Hal Shashthi Vrat Shubh Muhurt
पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 4 सितंबर 2023 को शाम 04 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 5 सितंबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर समापन होगा.
इस दिन माताएं अपने पुत्र के हिसाब से मिट्टी के छह छोटे बर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या मेवा भरती हैं. हलषष्ठी पर श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम के शस्त्र की पूजा का भी विधान है, इसलिए इस दिन लोग हल से जुती हुई चीजों का सेवन नहीं करते हैं. आप तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसही के चावल खाकर ये व्रत कर सकते हैं.

हलषष्ठी व्रत पूजन विधि
Hal Shashthi Vrat Poojan Vidhi
माताएं हलषष्ठी का व्रत संतान की खुशहाली एवं दीर्घायु की प्राप्ति के लिए रखती हैं और नवविवाहित स्त्रियां भी संतान की प्राप्ति के लिए करती हैं। मान्यता के अनुसार इस व्रत में इस दिन दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है। इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन नहीं करना चाहिए। इस व्रत के दिन घर या बाहर कहीं भी दीवार पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं। उसके बाद भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की जाती है। महिलाएं घर में ही गोबर से प्रतीक रूप में तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं एवं हलषष्ठी की कथा सुनती हैं।
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हल षष्ठी व्रत का महत्व
Hal Shashthi Vrat Mahatv
धर्म ग्रंथों के अनुसार बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है, उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है. इसे हलधर भी कहा जाता है. . इस दिन खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों की पूजा की जाती है. महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. हलषष्ठी के दिन माताओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है
हल षष्ठी व्रत कथा
Hal Shashthi Vrat Katha
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। हल षष्ठी की व्रत कथा यह है। आइए पढ़ें…
प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा। यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया। उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।
इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया। कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है।
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वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।
ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।
बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।

शेषनाग का अवतार है बलदाऊ
बलराम जिन्हें बलदाऊ या हलधर के नाम से भी जाना जाता है, श्रीकृष्ण के बड़े भाई थे। अनेक धर्मग्रंथों में इस बात का वर्णन है कि बलराम शेषनाग के अवतार थे। मान्यता है कि धरती पर धर्म की स्थापना करने के लिए जब-जब श्री नारायण ने अवतार लिया है तब-तब शेषनाग ने भी उनका साथ देने के लिए किसी न किसी रूप में जन्म लिया है। द्वापर युग में विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के बड़े भाई तो त्रेता युग में भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में इनका जन्म हुआ।
इस युग में इनके बड़े भाई होने के पीछे एक प्रसंग है,जिसके अनुसार क्षीर सागर छोड़कर शेषनाग विष्णुजी से गुहार लगाते हैं कि इस बार आप मुझे अपना बड़ा भाई बनाकर सेवा का अवसर प्रदान करें प्रभु। शेषनाग कहते हैं कि रामावतार में आपने मुझे छोटा भाई बनाया। अगर मैं बड़ा भाई होता तो कभी भी आपको वन जाने की आज्ञा नहीं देता है। हे प्रभु इस बार जब अवतार धारण करने जाएं तो मुझे बड़ा भाई बनाकर सेवा का अवसर प्रदान करें। देवकी के सप्तम गर्भ में जाने की आज्ञा दें। विष्णु शेषनाग को तथास्तु कह अंतर्ध्यान हो गए।
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