गुरु प्रदोष व्रत का मुहूर्त, प्रदोष व्रत पूजन की विधि, प्रदोष व्रत कथा, गुरु प्रदोष व्रत का महत्व, Guru Pradosh Vrat Muhurat Katha Poojan Vidhi, Pradosh Vrat Muhurat, Pradosh Vrat Pujan vidhi, Pradosh Vrat katha, Pradosh Vrat Mahatva
वैशाख माह के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) आज 28 अप्रैल दिन गुरुवार को है. यह अप्रैल का अंतिम प्रदोष व्रत है. गुरु प्रदोष व्रत के दिन शिव जी की पूजा करने से विरोधियों और शत्रुओं के बीच वर्चस्व स्थापित होता है, उनके विरुद्ध जीत हासिल होती है. प्रदोष व्रत रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, दुख, कष्ट, पाप, दारिद्रय आदि दूर होता है, सुख, संतान, आरोग्य, धन, संपत्ति आदि की प्राप्ति होती है. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से जानते हैं गुरु प्रदोष व्रत के मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में.
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विषयसूची :
प्रदोष व्रत 2022 तिथि (Guru Pradosh Vrat Tithi)
वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का शुभारंभ: 28 अप्रैल, गुरुवार, 12:23 एएम पर
वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का समापन: 29 अप्रैल, शुक्रवार, 12:26 एएम पर
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गुरु प्रदोष 2022 पूजा मुहूर्त (Guru Pradosh Vrat Muhurat)
28 अप्रैल, शाम 06:54 बजे से रात 09:04 बजे तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: शाम 05:40 बजे से 29 अप्रैल, सुबह 05:42 बजे तक
नक्षत्र: उत्तर भाद्रपद, शाम 05:40 बजे तक, फिर रेवती नक्षत्र
अभिजित मुहूर्त: 11:52 एएम से दोपहर 12:45 पीएम तक
राहुकाल: दोपहर 01:58 पीएम से 03:37 पीएम तक
प्रदोष व्रत एवं पूजा विधि (Guru Pradosh Pooja Vidhi)
- प्रदोष व्रत से पूर्व तामसिक वस्तुओं का सेवन बंद कर दें. द्वादशी को शाकाहारी भोजन करें.
- त्रयोदशी यानी प्रदोष व्रत के प्रात: स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनें. फिर हाथ में जल, अक्षत् एवं फूल लेकर व्रत एवं पूजा का संकल्प करें.
- दिन में आप दैनिक पूजन कर लें और फलाहार करते हुए व्रत रखें.
- शाम के समय में प्रदोष मुहूर्त में किसी शिव मंदिर में जाएं या फिर घर पर ही शिवलिंग की पूजा करें.
- सबसे पहले गंगाजल से भगवान शिव का जलाभिषेक करें. उसके बाद शिव जी का श्रृंगार करें. महादेव को सफेद चंदन, शहद, फूल, अक्षत्, धूप, दीप, गंध, बेलपत्र, भांग, मदार पुष्प, धतूरा आदि चढ़ाएं.
- पूजा की सामग्री चढ़ाते समय ओम नम: शिवाय का जाप करते रहें. इसके पश्चात शिव चालीसा, शिव मंत्र का जाप करें. फिर गुरु प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें.
- पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती करके क्षमा प्रार्थना करें और मनोकामना व्यक्त कर दें.
- उसके बाद प्रसाद वितरण करें. किसी ब्राह्मण को अन्न, फल, मिठाई दानकर कुछ दक्षिणा देकर विदा करें. उसके पश्चात पारण करके व्रत को पूरा करें.

गुरु प्रदोष व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat katha)
स्कंद पुराण के एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी रोज अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती। ऐसे ही एक दिन वह जब भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे एक अत्यंत सुन्दर बालक दिखा। वह बालक उदास था और अकेला बैठा हुआ था। वह विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। हालांकि, ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है। एक युद्ध में शत्रुओं ने धर्मगुप्त के पिता को मार दिया था और उसका राज्य हड़प लिया था। इसके बाद उसकी माता की भी मृत्यु हो गई।
ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और अच्छे से उसका पालन-पोषण किया। कुछ समय बाद ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देव मंदिर गई। यहीं उनकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई। ऋषि ने बताया कि जो बालक मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है। यह सुनकर महिला उदास हो गई। महिला की उदासी को देखकर ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि की आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।
दोनों बालक कुछ दिनों बाद जब बड़े हुए तो वन में घूमने निकले गये। वहां उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त ‘अंशुमती’ नाम की गंधर्व कन्या पर मोहित हो गया। कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता को पता चला कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। इसके बाद भगवान शिव की आज्ञा और आशीर्वाद से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से करा दिया। राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर फिर से अपना शासन स्थापित किया।
मान्यता है कि ऐसा ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंद पुराण के अनुसार जो कोई प्रदोष व्रत करता है और इसकी कथा सुनता या पढ़ता है उसकी तमाम समस्याएं दूर होती हैं।
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