भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को देश भर में गोवत्स द्वादशी (Govats Dwadashi Vrat Katha) के रूप में मनाया जाता है. इसे बछ बारस के नाम से भी जाना जाता है. इसी दिन पहली बार कान्हा वन में गाय-बछड़े चराने गए थे. गोवत्स द्वादशी का दिन गौ माता और बछड़े को समर्पित है.
इस दिन पूरे विधि विधान से गाय और गाय के बछड़े की पूजा करने की परंपरा है. मान्यता है कि सभी देवी देवताओं का गाय में वास होता है और गाय और बछड़े की पूजा से भगवान प्रसन्न होते हैं. इस दौरान व्रत रखने की भी परंपरा है. इस व्रत से पुत्र का मंगल होता है.
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ऐसी मान्यता है.हिन्दू धर्म में गाय को बहुत पवित्र माना जाता है. लोगों का मानना है कि सिर्फ गौ माता के दर्शन से ही बड़े बड़े दान और यज्ञ का पुण्य मिल जाता है. कहते हैं जो पूरे मन से गोवत्स द्वादशी की पूजा करते हैं उन्हें मनोवांछित फल मिलता है. इस बार गोवत्स द्वादशी पूरे देश में 1 नवंबर को मनाई जाएगी, इसे बछबारस भी कहते हैं. अगर आप गोवत्स द्वादशी का व्रत पूरे विधि विधान से करना चाहती हैं और उसकी विधि नहीं पता तो आज हम आपको पूजा की पूरी विधि बताएंगे.
विषयसूची :
गोवत्स द्वादशी का शुभ मुहूर्त (Govats Dwadashi Shubh Muhurt) :
इस साल गोवत्स द्वादशी 11 सितंबर 2023, सोमवार को मनाई जाएगी. इस दिन महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु एवं हर विपत्ति से उनकी रक्षा और खुशहाली के लिए यह व्रत रखती हैं. इस दिन अजा एकादशी व्रत का पारण भी किया जाता है.
पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि 10 सितंबर 2023 को रात 09 बजकर 28 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 11 सितंबर 2023 को रात 11 बजकर 52 मिनट पर इसका समापन होगा.
गाय-बछड़े की पूजा समय – सुबह 04:32 – सुबह 06.03

गोवत्स द्वादशी पूजन विधि
Govats Dwadashi Poojan Vidhi
- गौ द्वादशी की विधि विधान से पूजा करने के लिए सबसे पहले आप नहाने के बाद साफ और स्वच्छ कपड़े पहन कर तैयार हो जाएं
- अब दूध देने वाली गाय और बछड़े के पास जाकर उन्हें पानी से नहला दें. फिर उन पर फूल माला चढ़ा दें और उनकी सींग को भी फूलों से सजा दें.
- अब पूजा को आगे बढ़ाते हुए गाय और बछड़े को टीका लगाएं, चावल की बजाए इस पूजा में आपको बाजरे का टीका लगाना है.
- टीका के बाद आप गाय को बाजरा, या मक्के के आटे से बनी हुई रोटी खिलाएं साथ ही बेसन से बनी चीजों का भोग लगाएं. बछड़े को भी खाने में अंकुरित अनाज खिलाएं.
- इस बात का खास ख्याल रखें कि गोवत्स द्वादशी के दिन गाय के दूध से बनी चीजों से परहेज़ करें, सिर्फ भैंस के दूध से बनी चीजों का ही पूजा में उपयोग करें.
- इस दिन गेहूं और चावल से बनी चीजों को खिलाना वर्जित है.
- गाय और बछड़े को भोजन कराने के बाद उनके चरणों की धूल से तिलक करें.
- ये सब विधि पूरी करने के बाद कथा सुनें, और गोवत्स द्वादशी की कथा सुनते वक़्त बाजरा हाथ में रखें.
- इसके बाद आने पुत्र को प्रसाद में चढ़ाया हुआ लड्डू देकर तिलक लगाएं.
- शाम को एक बार फिर गाय की पूजा करें.
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गोवत्स द्वादशी कथा
Govats Dwadashi Vrat Katha
प्राचीन काल में भारत के सुवर्णपुर नामक नगर में एक राजा था, उसका नाम था देवदानी। देवदानी की दो पत्नियां थीं, सीता और गीता। सीता की एक भैंस थी, जिसे वो अत्यंत प्रेम देती थी। इसी प्रकार गीता ने एक गाय पाली थी और वह भी उस से बड़ा प्रेम करती थी। एक दिन गाय को बछड़ा हुआ, वो बछड़ा अत्यंत सुन्दर था। धीरे धीरे सभी उस बछड़े से अत्यंत प्रेम करने लगे और सदैव गाय और उसके बछड़े के लिए लोग कुछ न कुछ खाने के लिए लाने लगे। यह देख सीता उस बछड़े से ईर्ष्या करने लगी और एक दिन मौका पा कर उसने उस बछड़े को काट दिया और अनाज के बीच छुपा दिया।
इस से उसे गौहत्या का पाप लग गया, अगले दिन राजा जब भोजन करने बैठे तब अचानक आसमान से रक्त और मांस की वर्षा होने लगी। राजा की भोजन की थाली भी रक्त से सन गयी यह देख राजा समझ गया की उसके राज्य में किसी ने बहुत बड़ा पाप किया है। तभी एक आकाशवाणी हुई की, ‘हे राजन! तेरी पत्नी ने एक बछड़े की हत्या की है। इसी कारण तेरे राज्य में संकट आया है, यदि इसका पश्चाताप नहीं किया गया तो तुम्हारा राज्य समाप्त हो जायगा।’ जब सीता से पुछा गया तो उसने अपना दोष स्वीकार कर लिया और उसे अपने किये पर बहुत दुःख हुआ।

ऐसे किया पश्चाताप
राजा ने फिर राज पुरोहित को बुलाकर इसका उपाय पूछा तो पुरोहित ने बताया की गोवत्स द्वादशी के दिन व्रत कर के इसका पश्चाताप किया जा सकता है। अगले दिन गोवत्स द्वादशी थी, राज्य में सभी लोगो ने व्रत किया और गौ माता का पूजन किया। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से वह बछड़ा जीवित हो गया और अनाज के ढेर से निकल आया। इस से रानी का गोहत्या का पाप भी धुल गया।
गोवत्स द्वादशी का महत्व
Govats Dwadashi Mahatv
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। गोवत्स द्वादशी में गौ माता की पूजा करने का विधान है इसलिए इस दिन गाय और उसके बछड़े की सेवा की जाती है। इस वर्ष यह तिथि 01 नवंबर 2021 को है इसलिए इस दिन गोवत्स द्वादशी मनाई जायगी। यदि घर में गाय नहीं है तब आस पास की ही किसी गाय की पूजा करनी चाहिए। किन्तु यदि घर के आस पास भी गाय नहीं तब आप मिट्टी से गाय और बछड़ा निर्मित कर उसकी पूजा कर सकते हैं। इस दिन गाय के दूध से निर्मित किसी भी वस्तु का सेवन नहीं करना चाहिए। यह व्रत पुत्र की रक्षा और पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होने के लिए भी रखा जाता है।
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