हेल्लो दोस्तों दीपावली के अगले दिन यानि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है| लोग इस पर्व को अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं| इस त्यौहार का पौराणिक महत्व है| यह प्रकृति की पूजा है जिसका आरम्भ श्री कृष्ण ने किया था. इस दिन प्रकृति के आधार, पर्वत के रूप में गोवर्धन की पूजा की जाती है और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है. यह पूजा ब्रज से आरम्भ हुई थी और धीरे-धीरे पूरे भारत वर्ष में प्रचलित हुई. Govardhan Pooja 2020
शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उतनी ही पवित्र हैं जितना माँ गंगा का निर्मल जल. आमतौर पर यह पर्व अक्सर दीपावली के अगले दिन ही पड़ता है किन्तु यदा कदा दीपावली और गोवर्धन पूजा के पर्वों के बीच एक दिन का अंतर आ जाता है! दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट या गोवर्धन पूजा की जाती है. इस बार यह पूजा 15 नवम्बर को की जाएगी. इस दिन फसलों की कटाई-छंटाई पूर्ण कर उनसे पकवान बनाए जाते हैं.
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वैसे तो यह त्यौहार सम्पूर्ण उत्तर भारत में मनाया जाता है, लेकिन ब्रजमंडल (मथुरा, वृंदावन, नंदगाँव, गोकुल, और बरसाना) में इस विशेष रूप से मनाया जाता है। जिसके लिए गिरिराज गोवर्धन को भोग लगाने के लिए 56 भोग का प्रसाद तैयार किया जाता है। इस अवसर पर मंदिरों में अन्न कूट के भंडारे का आयोजन किया जाता है।
अन्न कूट का शाब्दिक अर्थ है कई प्रकार के अन्न के मिश्रण तैयार किया गया भोग। इस दिन भगवान कृष्ण को बाजरे की खिचड़ी, पूड़ी, मिष्ठान और कई मेल की सब़्जियों को भोग लगाने का विधान है। भोग लगाने के बाद इस प्रसाद को भंडारे के द्वारा लोगों में बांट दिया जाता है।

इसलिए की जाती है गोवर्धन पूजा :
पौराणिक मान्यताओं ये माना जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने वृंदावन के पूरे क्षेत्र को भारी बारिश से बचाया था। जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।
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गोवर्द्धन पूजा का शुभ मुहूर्त :
- गोवर्धन पूजा पर्व तिथि – रविवार, 15 नवंबर 2020
- गोवर्धन पूजा सायं काल मुहूर्त – दोपहर 03:17 बजे से सायं 05:24 बजे तक
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – प्रातः 10:36 बजे से (15 नवंबर 2020) से
- प्रतिपदा तिथि समाप्त – प्रातः 07:05 बजे (16 नवंबर 2020) तक
गोवर्धन पूजन की विधि और नियम :
इस दिन भगवान कृष्ण एवम गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती हैं. खासतौर पर किसान इस पूजा को करते हैं। इसके लिए घरों में खेत की शुद्ध मिट्टी अथवा गाय के गोबर से घर के द्वार पर,घर के आँगन अथवा खेत में गोवर्धन पर्वत बनायें जाते हैं. और उन्हें 56 भोग का नैवेद्य चढ़ाया जाता हैं।

- इस दिन प्रात: गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। अनेक स्थानों पर इसके मनुष्याकार बनाकर पुष्पों, लताओं आदि से सजाया जाता है। शाम को गोवर्धन की पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया जाता है।
- पूजा के बाद गोवर्धनजी के सात परिक्रमाएं उनकी जय बोलते हुए लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।
- गोवर्धनजी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांट देते हैं।
- अन्नकूट में चंद्र-दर्शन अशुभ माना जाता है। यदि प्रतिपदा में द्वितीया हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाया जाता है।
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- इस दिन प्रात: तेल मलकर स्नान करना चाहिए। इस दिन पूजा का समय कहीं प्रात:काल है तो कहीं दोपहर और कहीं पर सन्ध्या समय गोवर्धन पूजा की जाती है। सन्ध्या के समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है।
- गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और उनकी पूजा अपने घर में करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की वृद्धि होती है।
- इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो पूर्णत: बंद रहते ही हैं, घर पर कुटीर उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों का दोपहर के समय पूजन किया जाता है।

गोवर्धन पूजन का मंत्र –
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव
गोवर्धन पूजा व्रत कथा :
यह घटना द्वापर युग की है, ब्रज में इंद्र की पूजा की जा रही थी, वहां भगवान कृष्ण पहुंचे और उनसे पूछा की यहाँ किसकी पूजा की जा रही है! सभी गोकुल वासियों ने कहा देवराज इंद्र की, तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों से कहा कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं होता| वर्षा करना उनका दायित्व है और वे सिर्फ अपने दायित्व का निर्वाह करते हैं.
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जबकि गोवर्धन पर्वत हमारे गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करते हैं. जिससे पर्यावरण शुद्ध होता है, इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए. सभी लोग श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पूजा करने लगे, जिससे इंद्र क्रोधित हो उठे, उन्होंने मेघों को आदेश दिया कि जाओं गोकुल का विनाश कर दो.
भारी वर्षा से सभी भयभीत हो गए| तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका ऊँगली पर उठाकर सभी गोकुल वासियों को इंद्र के कोप से बचाया| जब इंद्र को ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं तो इन्द्रदेव अपनी मुर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की| तबसे आज तक गोवर्धन पूजा बड़े श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ की जाती है|

गोवर्धन पूजा के दो विशेष प्रयोग :
1- संतान प्राप्ति के लिए उपाय –
दूध, दही, शहद, शक्कर और घी से पंचामृत बनाएं इसमें गंगाजल और तुलसी दल मिलाएं. भगवान कृष्ण को शंख में भरकर पंचामृत अर्पित करें और इसके बाद “क्लीं कृष्ण क्लीं” का 11 माला जाप करें. पंचामृत ग्रहण करें. आपकी मनोकामना पूरी होगी
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2- आर्थिक सम्पन्नता और समृद्धि के लिए उपाय –
गाय को स्नान कराकर उसका तिलक करें और उसे फल और चारा खिलाएं. फिर गाय की सात बार परिक्रमा करें. गाय के खुर के पास की मिटटी ले लें और इसे कांच की शीशी में अपने पास सुरक्षित रख लें.