कब है कुंवारी कन्याओं द्वारा रखा जाने वाला गौरी व्रत? जानिए शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और महत्त्व

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हिंदू धर्म में गौरी व्रत अविवाहित (कुंवारी) कन्याओं के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत में कुंवारी कन्याएं मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। गौरी व्रत मुख्य रूप से गुजरात में मनाया जाता है। गौरी पूजा का व्रत मुख्य रूप से अविवाहित लड़कियां अच्छे पति की इच्छा में रखती हैं। यह व्रत हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से शुरू किया जाता है और पूर्णिमा को संपन्न होता है।

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गौरी व्रत आषाढ़ महीने में 5 दिनों तक मनाया जाता है। यह शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होती है और पांच दिनों के बाद पूर्णिमा के दिन, गुरु पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। गौरी व्रत को मोरकत व्रत के नाम से भी जाना जाता है। पंचांग के अनुसार इस बार गौरी व्रत 09 जुलाई 2022, दिन शनिवार को प्रारंभ होगी और 13 जुलाई 2022, दिन बुधवार को समाप्त होगी।

साल 2022 में कब है गौरी व्रत?

Gauri Vrat 2022 Date

  • गौरी व्रत 2022 तिथि – शनिवार, 9 जुलाई 2022
  • आषाढ़ माह शुक्ल एकादशी तिथि प्रारंभ – 09 जुलाई 2022, शनिवार शाम 4 बजकर 39 मिनट से शुरू
  • आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि समाप्त – 10 जुलाई 2022, रविवार दोपहर 2 बजकर 13 मिनट पर
  • आषाढ़ माह गुरु पूर्णिमा – 13 जुलाई 2022, बुधवार
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कैसे किया जाता है गौरी व्रत

Kaise Kiya Jata Hai Gauri Vrat

गौरी व्रत में सात अलग-अलग प्रकार के अनाज के बीज घर पर बोए जाते हैं, इन बोए गए बीजों को चार दिनों तक सुरक्षित रखा जाता है। चौथे दिन जागने के बाद पांचवें दिन इसे नदी, वाव (बावड़ी) या सरोवर में बहा दिया जाता है। इन दिनों व्रत करने वाला रोज सुबह भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करता है। गेहूं या गेहूं से बनी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करना चाहिए। मसाले, सादा नमक और कुछ सब्जियां जैसे टमाटर का भी सेवन 5 दिन की अवधि के दौरान नहीं करना चाहिए।

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गौरी व्रत पूजन विधि

Gauri Vrat Puja Vidhi

  • गौरी व्रत (Gauri Vrat) के दिन कुंवारी कन्याएं सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत होकर स्नान करती हैं।
  • इसके पश्चात भगवान शिव मां गौरी के समाने व्रत का संकल्प लेती हैं. उसके बाद पूजन आरंभ करती हैं।
  • अब एक चौकी पर आसन बिछाकर भगवान महादेव शिव और माता पार्वती (गौरी) की प्रतिमा स्थापित करें।
  • उसके बाद उन्हें अक्षत, फूल, धूप-दीप इत्यादि समर्पित करें और व्रत कथा का पाठ करें।
  • पूजन के अंत में भगवान शिव और मां पार्वती की आरती करें और उसके बाद मां पार्वती और भगवान शिव के संमुख अपनी मनोकामना रखें।
  • यह व्रत पांच दिनों तक चलता है. ऐसे में पांचों दिन सुबह-शाम पूजा और आरती की जाती है।
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गौरी व्रत का महत्व

Gauri Vrat Ka Mahatv

इस व्रत में कुंवारी कन्याएं या महिलाएं पांच दिनों तक फलहार खाकर और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करती हैं। व्रत के अंतिम दिन युवतियां पूरी रात जागती हैं और सुबह जल्दी उठकर ब्राह्मण या साधु के घर भोजन सामग्री के साथ दान देकर व्रत पूरा करती हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार बचपन से ही तरह-तरह के व्रत करने के संस्कार मिलते हैं।

जया पार्वती का पहला व्रत माता पार्वती ने शिवजी को पति के रूप में पाने के लिए किया था। माता पार्वती द्वारा किए गए व्रतों को महिलाएं और लड़कियां करती हैं। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक लड़कियों द्वारा किया जाने वाला व्रत गौरी व्रत या गोरियो कहलाता है, जबकि सौभाग्यशाली महिलाओं और वृद्ध महिलाओं द्वारा किए गए इस व्रत को जया पार्वती व्रत कहा जाता है।

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इस दिन युवतियां और महिलाएं जल्दी उठकर नहा कर शिलालय में जाकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। इन पांच दिनों में स्त्रियां सूखे मेवे या दूध के साथ बिना नामक का भोजन करती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत 30 वर्ष तक करना होता है। जिस घर में लड़कियां और महिलाएं यह व्रत करती हैं, वह घर खुशियों से भर जाता है। शास्त्रों के अनुसार जो कुंवारी युवतियां इस व्रत को बड़ी श्रद्धा से करती है तो उन्हें अत्यंत संस्कारी और अच्छा पति मिलता है और मां पार्वती हमेशा उन पर अपना आशीर्वाद सदा बनाए रखती हैं।

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