Gangaur Vrat 2023 : कब है गणगौर पूजा, जानें शुभ मुहूर्त व पूजा विधि एवं कथा | Gangaur teej vrat pooja Katha

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भारत विविधताओं का देश है और यहां कई ऐसे अनोखे त्यौहार और पर्व मनाए जाते हैं जो अपने आप में ही बहुत विशेष होते हैं। ऐसा ही एक पर्व है जो महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है जिसे भारत के उत्तरी प्रांतों में ज्यादातर मनाया जाता है।

यह पर्व है गणगौर व्रत, ‌जिस दिन महिलाएं अपने पति से छुपकर व्रत करती हैं और गणगौर माता यानी माता पार्वती की पूजा करके अपने पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं। हर वर्ष यह तिथि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर पड़ती है।

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गणगौर पूजा भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यदि गणगौर का संधि विच्छेद करें तो गण शब्द का अर्थ भगवान शिव जी से है और गौर शब्द का अर्थ माता पार्वती से है। गणगौर पूजा राजस्थान के अन्य पर्वों में सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। गणगौर पर्व को न केवल राजस्थानी बल्कि भारत के अन्य राज्यों में भी मनाया जाता है।

गणगौर व्रत के दिन महिलाएँ भगवान शंकर जी और पार्वती जी का पूजन करते हैं। इस दिन भगवान शिव ने पार्वती जी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं। महिलाओं नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर त्योहार मनाती हैं।

गणगौर पूजा शुभ मुहूर्त

(Gangaur Puja Shubh Muhurat)

  • गणगौर 2023 की तिथि – 24 मार्च 2023, शुक्रवार
  • तृतीया तिथि प्रारंभ- 23 मार्च 2023 को शाम 6 बजकर 20 मिनट पर
  • तृतीया तिथि समापन- 24 मार्च 2023 को शाम 4 बजकर 59 मिनट
Gangaur Vrat Katha
Gangaur Vrat Katha

गणगौर क्यों मनाई जाती है

(Gangaur kyu manayi jati hai)

गणगौर पूजन के पीछे मान्यता है कि इस दिन लड़कियां और शादीशुदा महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के समृद्ध रूप को गणगौर कहते हैं, उनका पूजन करती हैं। गणगौर का त्योहार कुंवारी लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उन्हें उनका मनचाहा वर प्राप्त हो सके और इस त्यौहार को विवाहित लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उनके पति को लंबी उम्र की प्राप्ति हो सके और उन्हें सदैव उनके पति का प्रेम मिलता रहे।

गणगौर पूजा को लेकर के राजस्थान में प्रसिद्ध कहावत है “तीज तिवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर।” इसका अर्थ है कि सावन की तीज से त्यौहार का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही इस त्यौहार का समापन होता है।

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गणगौर कब मनाया जाता है

(Gangaur Vrat Kab hota hai)

भारत के अन्य राज्यों में तो यह त्यौहार केवल 1 दिन के लिए मनाया जाता है, परंतु राजस्थान राज्य में इस त्यौहार को महिलाएं सामूहिक रूप से 16 दिनों तक मनाती है। यह पर्व होली के दूसरे दिन से शुरु होता है और पूरे 16 दिनों तक चलता है। अर्थात गणगौण पर्व चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तीज को समाप्त हो जाता है इसीलिए इसे गणगौर तीज भी कहा जाता है।

गणगौर पूजा, प्रेम एवं पारिवारिक सौहार्द का एक बहुत ही पावन पर्व माना जाता है। पुराणों के अनुसार गणगौर पूजन का आरंभ पौराणिक काल से ही चलता आ रहा है, उसी समय से इस पर्व को प्रत्येक वर्ष बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।

Gangaur teej vrat pooja Katha
Gangaur teej vrat pooja Katha

गणगौर व्रत पूजन विधि

(Gangaur vrat poojan vidhi)

  • चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में रहकर घर के किसी मंदिर में लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोएं।
  • इस दिन से विसर्जन तक एक समय भोजन किया जाता है ।
  • इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव का रूप माना जाता है।
  • जब तक विसर्जन नहीं होता तब तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधि-विधान से पूजा करके उन्हें भोग लगाना चाहिए।
  • गौरीजी की इस स्थापना पर सुहाग के सामान जैसे काँच की चूड़ियाँ, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाई जाती हैं।
  • पूजन की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण किया जाता है।
  • इसके पश्चात माँ गौरी को भोग लगाकर माता की कथा सुनी जाती है।
  • कथा सुनकर गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी मांग में लगाना चाहिए।
  • कुँआरी कन्याओं को भी गौरीजी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
  • चैत्र शुक्ल द्वितीया को गौरीजी को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएं।
  • चैत्र शुक्ल की तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर पालने में बिठाना चाहिए।
  • इसी दिन शाम को गाजे-बाजे से नाचते-गाते हुए महिलाएं और पुरुष भी एक समारोह या एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें।
  • शाम को उपवास तोड़कर भोजन किया जाता है।

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गणगौर व्रत की कथा

(Gangaur vrat katha)

एक बार भगवान शिव, माता पार्वती और नारद जी तीनों साथ में भ्रमण के लिए निकलें और घूमते हुए एक गांव में पहुंच गये। इस दिन चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। गांव वासियों को जैसे ही इनके आने की खबर मिली तो सभी लोग भगवान के स्वागत की तैयारियां करने लगे। सबसे पहले उस गांव की गरीब महिलाएं थाल में हल्दी और अक्षत लेकर उनके स्वागत के लिए पहुंचीं। मां पार्वती ने प्रसन्न होकर उन पर सुहाग रस का आशीर्वाद बरसा दिया।

कुछ ही समय बाद धनी महिलाएं सोने चांदी की थाली में तरह-तरह के पकवान लेकर और सोलह श्रृंगार कर भगवान शिव और माता पार्वती के पास पहुंची। इन स्त्रियों को देखने के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से पूछा कि तुमने तो सारा सुहाग रस निर्धन महिलाओं को दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी? मां पार्वती बोलीं कि मैंने उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया है। मैं अब इन महिलाओं को अपनी उंगली चीरकर रक्त छिड़क कर सुहाग का वरदान दूंगी।

माता पार्वती ने महिलाओं को आशीर्वाद दिया कि वो वस्त्र, आभूषण और बाहरी मोह-माया को छोड़ कर अपने पति की सेवा तन, मन और धन से करें। उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। इस घटना के बाद पार्वती मां भगवान भोलेनाथ से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गईं। माता ने स्नान के बाद बालू से भगवान शिव की मूर्ति बनाई और पूजा की। भोग लगाकर और प्रदक्षिणा करके दो कण का प्रसाद ग्रहण किया और माथे पर टीका लगाया। इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया। जब वे लौटकर आईं तो महादेवजी ने उनसे देरी का कारण पूछा।

पार्वतीजी ने झूठ ही कह दिया कि वहाँ मुझे मेरे मायके वाले मिल गए थे। उन्हीं से बातें करने में इतनी देर हो गई। परंतु महादेव तो महादेव ही थे। वे सब समझ रहे थे। अतः उन्होंने पूछा- ‘पार्वती! तुमने नदी के तट पर पूजन करके किस चीज का भोग लगाया था और स्वयं कौन-सा प्रसाद खाया था?’

पार्वतीजी ने पुनः झूठ बोल दिया- ‘मेरी भावज ने मुझे दूध-भात खिलाया। यह सुनकर शिवजी ने भी दूध-भात खाने की इच्छा जताई और वे नदी की तरफ चल दिए। पार्वती जी दुविधा में पड़ गईं। तब उन्होंने मौन भाव से भगवान भोले शंकर का ही ध्यान किया और प्रार्थना की – हे भगवन! यदि मैं आपकी अनन्य दासी हूँ तो आप मेरी लाज रखिए।

Gangaur teej vrat pooja Katha
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यह प्रार्थना करती हुई पार्वतीजी भगवान शिव के पीछे-पीछे चलती रहीं। उन्हें नदी के तट पर माया का महल दिखाई दिया। उस महल के अंदर पहुँचकर वे देखती हैं कि वहाँ पार्वती जी के भाई तथा सलहज आदि सपरिवार उपस्थित हैं। उन्होंने गौरी तथा शंकर का स्वागत किया। वे दो दिनों तक वहाँ रहे।

तीसरे दिन पार्वतीजी ने शिव से चलने का आग्रह किया, पर शिवजी तैयार न हुए। वे अभी और रुकना चाहते थे। तब पार्वतीजी रूठकर अकेले ही चल दीं। ऐसी देख भगवान शिवजी को पार्वती के साथ चलना पड़ा। नारदजी भी इस समय साथ थे। चलते-चलते वे बहुत दूर निकल आए। अचानक भगवान शंकर को याद आया कि वो अपनी माला भूल आये हैं।

माता पार्वती ने कहा कि मैं माला ले आती हूँ। परंतु भगवान ने उन्हें जाने की आज्ञा न दी और इस कार्य के लिए ब्रह्मपुत्र नारदजी को भेज दिया। नारदजी को वहां जाकर कोई महल नजर नहीं आया। नारदजी वहाँ भटकने लगे और सोचने लगे कि कहीं वे किसी गलत स्थान पर तो नहीं आ गए? अचानक से नारदजी को शिवजी की माला एक पेड़ पर टँगी हुई दिखाई दी। नारदजी ने माला उतार ली और शिवजी के पास पहुँचकर वहाँ का हाल बताया।

शिवजी ने हँसकर कहा- ‘नारद! यह सब माता पार्वती की लीला है।’ तब नारदजी ने सिर झुकाकर कहा- ‘माता! आप पतिव्रताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। यह सब आपके पतिव्रत का ही प्रभाव है। संसार की स्त्रियाँ आपके नाम-स्मरण मात्र से ही अटल सौभाग्य प्राप्त कर सकती हैं और समस्त सिद्धियों को बना तथा मिटा सकती हैं।

आपकी भावना तथा चमत्कारपूर्ण शक्ति को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं आशीर्वाद रूप में कहता हूँ कि जो स्त्रियाँ इसी तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करके मंगलकामना करेंगी, उन्हें महादेवजी की कृपा से दीर्घायु वाले पति का संसर्ग मिलेगा।

गणगौर व्रत का महत्व

(Gangaur vrat mahatav)

गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे हर स्त्री मनाती है. इसमें कुवारी कन्या से लेकर, विवाहित स्त्री दोनों ही, पूरी विधि-विधान से गणगौर का पूजन करती है. इस पूजन का महत्व कुवारी कन्या के लिये अच्छे वर की कामना को लेकर किया जाता है, जबकि विवाहित स्त्री के लिए अपने पति की लंबी आयु के लिये होता है. जिसमें कुवारी कन्या पूरी तरह से तैयार होकर और, विवाहित स्त्री सोलह श्रंगार करके पूरे, सोलह दिन तक विधि-विधान से पूजन करती है.

गणगौर पूजन का गीत

(Gangaur Poojan Geet)

गौर-गौर गणपति ईसर पूजे, पार्वती
पार्वती का आला टीला, गोर का सोना का टीला
टीला दे, टमका दे, राजा रानी बरत करे
करता करता, आस आयो मास आयो, खेरे खांडे लाडू लायो,
लाडू ले बीरा ने दियो, बीरों ले गटकायों
साडी मे सिंगोड़ा, बाड़ी मे बिजोरा,
सान मान सोला, ईसर गोरजा
दोनों को जोड़ा ,रानी पूजे राज मे,
दोनों का सुहाग मे
रानी को राज घटतो जाय, म्हारों सुहाग बढ़तों जाय
किडी किडी किडो दे, किडी थारी जात दे,
जात पड़ी गुजरात दे, गुजरात थारो पानी आयो,
दे दे खंबा पानी आयो, आखा फूल कमल की डाली,
मालीजी दुब दो, दुब की डाल दो
डाल की किरण, दो किरण मन्जे।

पाटा धोने का गीत

पाटो धोय पाटो धोय, बीरा की बहन पाटो धो
पाटो ऊपर पीलो पान, म्हे जास्या बीरा की जान
जान जास्या, पान जास्या, बीरा ने परवान जास्या
अली गली मे, साप जाये, भाभी तेरो बाप जाये
अली गली गाय जाये, भाभी तेरी माय जाये
दूध मे डोरों, म्हारों भाई गोरो
खाट पे खाजा, म्हारों भाई राजा
थाली मे जीरा म्हारों भाई हीरा
थाली मे है, पताशा बीरा करे तमाशा
ओखली मे धानी छोरिया की सासु कानी।

गणगौर का अरग के गीत

अलखल-अलखल नदिया बहे छे
यो पानी कहा जायेगो
आधा ईसर न्हायेगो
सात की सुई पचास का धागा
सीदे रे दरजी का बेटा
ईसरजी का बागा
सिमता सिमता दस दिन लग्या
ईसरजी थे घरा पधारों गोरा जायो,
बेटो अरदा तानु परदा
हरिया गोबर की गोली देसु
मोतिया चौक पुरासू
एक, दो, तीन, चार, पांच, छ:, सात,
आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह,
तेरह, चौदह, पंद्रह, सोलह।

पानी पिलाने का गीत

म्हारी गोर तिसाई ओ राज घाटारी मुकुट करो
बिरमादासजी राइसरदास ओ राज घाटारी मुकुट करो
म्हारी गोर तिसाई ओर राज
बिरमादासजी रा कानीरामजी ओ राज घाटारी
मुकुट करो म्हारी गोर तिसाई ओ राज
म्हारी गोर ने ठंडो सो पानी तो प्यावो ओ राज घाटारी मुकुट करो।
(इसमें परिवार के पुरुषो के क्रमशः नाम लिए जाते है।)

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