भगवान गणेश को क्यों अर्पित की जाती है दूर्वा, क्या हैं इसे चढ़ाने के नियम !

हेल्लो दोस्तों गणेश जी को प्रथम पूज्य कहा गया है. सनातन धर्म में मान्यता है कि आपकी कोई भी पूजा या अनुष्ठान तभी सफल होता है, जब आप उस पूजा की शुरुआत गणेश जी के नाम से करते हैं. हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश भगवान की विशेष पूजा अर्चना और उनके लिए व्रत रखा जाता है.

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मान्यता है कि इसी चतुर्थी के दिन (Ganesh Chaturthi) गणपति भगवान का जन्म हुआ था. इस दौरान भगवान की मूर्ति को घर में लाकर स्थापित करने की भी परंपरा है. भगवान गणेश को दूर्वा (ganeshji ko durva kyu chadhate hain) बहुत पसंद है. इसके बिना गणेश पूजन अधूरी ही रहती है.

बप्पा के भक्त उनकी प्रतिमा को घर में इस विश्वास के साथ लाते हैं कि गणपति उनके सारे संकट हर लेंगे. इस दौरान गणपति को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बप्पा के भक्त उनकी विशेष पूजा अर्चना करते हैं. कहा जाता है कि गणपति की पूजा में दूर्वा यानी दूब (durva ya doob ka mahatva) का बड़ा महत्व है, इसलिए जब तक गणपति आपके घर में विराजमान रहें, उन्हें दूर्वा जरूर अर्पि​त करें. जानें दूर्वा चढ़ाने के नियम और ये गणपति को क्यों प्रिय है !

ganeshji ko durva kyu chadhate hain
ganeshji ko durva kyu chadhate hain

ये हैं दूर्वा चढ़ाने के नियम

(durva chadhane ke niyam)

1- मान्यता है कि गणपति को 21 दूर्वा लेकर चढ़ानी चाहिए और इन्हें दो दो के जोड़े में चढ़ाना चाहिए.

2- जब तक गणपति आपके घर पर विराजमान रहें, नियमित रूप से उन्हें दूर्वा जरूर अर्पित करें.

3- दूर्वा घास को चढ़ाने के लिए किसी साफ जगह से ही तोड़े और चढ़ाने से पहले भी इसे पानी से अच्छी तरह से धो लें.

4- दूर्वा के जोड़े चढ़ाते समय गणपति के 10 मंत्रों को जरूर बोलना चाहिए.

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दूर्वा चढ़ाते समय बोलें ये मंत्र

(Ganesh Mantra)

1. ॐ गणाधिपाय नमः

2. ॐ उमापुत्राय नमः

3. ॐ विघ्ननाशनाय नमः

4. ॐ विनायकाय नमः

5. ॐ ईशपुत्राय नमः

6. ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः

7. ॐ एकदंताय नमः

8. ॐ इभवक्त्राय नमः

9. ॐ मूषकवाहनाय नमः

10. ॐ कुमारगुरवे नमः

ganeshji ko durva kyu chadhate hain
ganeshji ko durva kyu chadhate hain

इसलिए गणेश जी को प्रिय है दूर्वा

(Isliye chadhate hain durva)

पौराणिक कथा के अनुसार अनलासुर नामक एक दैत्य था, जिसने सब जगह पर हाहाकार मचा रखा था. वो इंसानों, दैत्यों और ऋषि मुनियों को जिंदा ही निगल लेता था. उसके आतंक से सारे देवी-देवता भी बहुत परेशान हो गए थे. वो इतना ताकतवर था कि देवताओं की शक्ति भी उस दैत्य के सामने कम पड़ने लगी थी. तब सभी देवता अनलासुर (anlasur) से बचाने की प्रार्थना करने भगवान गणेश की शरण में गए.

भगवान गणेश ने भी अनलासुर का अंत करने के लिए उसे जिंदा ही निगल लिया. अनलासुर को निगलने से भगवान गणेश के पेट में बहुत जलन होने लगी. तब उस जलन को शांत करने के लिए उन्हें कश्यप ऋषि ने 21 दूर्वा एकत्र कर समूह बनाकर खाने के लिए दी. इसे खाने के बाद उनके पेट की जलन शांत हो गई. तब से गणपति को दूर्वा अत्यंत प्रिय हो गई और उनकी पूजा के दौरान 21 दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई.

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इन मंत्रों से करें गणपति की पूजा

गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की आशीर्वाद मुद्रा वाली प्रतिमा या फोटो के सामने बैठकर उनका विधि-विधान से पूजा करें और पूजा में नीचे दिये गये पत्तों को मंत्रों के साथ चढ़ाएं. गणपति के 21 नाम वालें मंत्रों और 21 पेड़ों के पत्तों को अर्पित करने पर निश्चित रूप से उनकी कृपा प्राप्त होती है और साधक का कल्याण होता है.

श्री गणेश नामवृक्षों के नाम

1. ॐ सुमुखाय नमः – शमी पत्र

2. ॐ गणाधीशाय नमः – भृंगराज पत्र

3. ॐ उमापुत्राय नमः – बेल पत्र

ganeshji ko durva kyu chadhate hain
ganeshji ko durva kyu chadhate hain

4. ॐ गजामुखाय नमः – दूर्वापत्र

5. ॐ लम्बोदराय नमः – बेर का पत्र

6. ॐ हर पुत्राय नमः – धतूरे का पत्र

7. ॐ शूर्पकर्णाय नमः – तुलसी के पत्र

8. ॐ वक्रतुण्डाय नमः – सेम का पत्र

9. ॐ गुहाग्रजाय नमः – अपामार्ग पत्र

10. ॐ एकदंताय नमः – भटकटैया पत्र

11. ॐ हेरम्बाय नमः – सिंदूर पत्र

12. ॐ चतुर्होंत्रे नमः – तेज पत्र

13. ॐ सर्वेश्वराय नमः – अगस्त पत्र

14. ॐ विकटाय नमः – कनेर पत्र

15. ॐ हेमतुण्डाय नमः – केला पत्र

16. ॐ विनायकायनमः – आक पत्र

17. ॐ कपिलाय नमः – अर्जन पत्र

18. ॐ वटवे नमः – देवरारू पत्र

19. ॐ भालचंद्रय नमः – महुये के पत्र

20. ॐ सुराग्रजाय नमः – गांधारी पत्र

21. ॐ सिद्धि विनायक नमः – केतकी पत्र

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