12 अगस्त को है दूर्वा विनायक चतुर्थी व्रत? जानिए शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और महत्व

हेल्लो दोस्तों हिंदू धर्म में प्रत्येक पूजा और व्रत का विशेष महत्व होता है. सावन का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय होता है. इस मास में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा होती है. सावन में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी यानि विनायक दूर्वा चतुर्थी (Durva Vinayak Chaturthi 2021) 12 अगस्त गुरुवार को पड़ रही है।

इस महीने की चतुर्थी तिथि को विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा अर्चना होती है. मान्यता है कि विघ्नहर्ता आपके सभी दुखों को दूर करने का काम करते हैं. इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को धन लाभ मिलता है. आइए जानते हैं सावन में विनायक चतुर्थी की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में.

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सावन का पूरा महीना शिव परिवार की पूजा-अर्चना के लिए बेहद खास होता है। ऐसे में सोमवार के दिन भगवान शंकर, वहीं मंगलवार को माता पार्वती के मंगला गौरी स्वरूप और बुधवार को उनके पुत्र भगवान गणेश की पूजा का विधान है। सावन की विनायक चतुर्थी को 21 बार 21 दूर्वा की गाठें अर्पित करना चाहिए। इससे भगवान गणेश जी बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करते हैं।

बिना दूर्वा के भगवान गणेश की पूजा अधूरी मानी जाती है। दूर्वा एक प्रकार की घास का नाम है, जो श्री गणेश को अत्ति प्रिय है। कहा जाता है कि पार्वती पुत्र को हरी दूर्वा चढ़ाने से वह भक्तों पर सदैव अपनी कृपा बनाए रखते हैं साथ ही विघ्‍नहर्ता अपने भक्तों के सभी विघ्नों को दूर करते हैं।

Durva Vinayak Chaturthi 2021
Durva Vinayak Chaturthi 2021

विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त :

चतुर्थी तिथि का प्रारंभ – 11 अगस्त 2021 को शाम में 04 बजकर 53 मिनट से

चतुर्थी का समापना – 12 अगस्त 2021 को शाम में 03 बजकर 24 मिनट तक रहेगा.

विनायक चतुर्थी व्रत विधि :

विनायक चतुर्थी के दिन सुबह–सुबह उठकर स्नान करना चाहिए और विधि- विधान से व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए.

इसके बाद पूजा स्थल को अच्छे से साफ करके उस चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं.

इस पर भगवान गणेश की मूर्ति या फोटो स्थापित करें.

इसके बाद भगवान गणेश के सामने दीप जलाएं और फूल, दूर्वा, जनेऊ, पान, सुपारी, इलायची, नारियल, मिठाई अर्पित करें.

इसके बाद मंत्रों का जाप और पाठ करें. भगवान गणेश को मोदक का भोग लगाएं.

इस दिन ऊं गं गणपतयै नम: का जाप करना बेहद फलदायी होता है.

इसके अलावा गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए श्री गणेश स्तोत्र का पाठ करें.

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विनायक चतुर्थी का महत्व :

विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से आपकी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं. इस व्रत को करने से घर में सुख- समृद्धि आती है. भगवान गणेश को बल, बुद्धि और समृद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता हैं. हिंदू धर्म में सबसे प्रथम पूजा भगवान गणेश की होती है. मान्यता है कि गणेश जी किसी भी काम में आने वाले विघ्न को दूर देते हैं. इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता कहते हैं जो सभी विघ्न को दूर करते हैं.

सावन के बुधवार को गाय को हरी घास खिलाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से कुंडली में बुध दोष का प्रभाव कम हो जाता है और भगवान गणेश की कृपा बनी रहती है। ऐसा हर सावन बुधवार को करते रहें। हरी खास खिलाने के बाद गाय माता को धन्यवाद कहें। शास्त्रों के अनुसार गाय में सभी देवी-देवताओं का निवास होता है। इससे जीवन में खुशहाली आने के साथ ही कॅरियर में भी ग्रोथ मिलती है।

Durva Vinayak Chaturthi 2021
Durva Vinayak Chaturthi 2021

गणपति को क्यों भाती है दूर्वा? :

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है। अनलासुर नामक दैत्य के आतंक से सारा ब्रह्मांड थर्रा रहा था। वह अग्नि दैत्य था। उसके प्रचंड ताप से सारी धरती काली पड़ रही थी। स्वर्ग के समस्त देवगण उस असुर के अग्नि प्रहार से घबराकर इधर-उधर छिपते फिर रहे थे। जब अनलासुर के अत्याचार सारी सीमाएं लांघ गए, तब देवताओं ने ब्रह्मा जी की शरण ली। ब्रह्मा जी ने बताया कि शिव-पार्वती की संतान ही उस असुर का अंत करने में सक्षम है। सभी देवता शिव जी की शरण में पहुंचे। शिव जी ने तुरंत ही गणेश को बुलाया और अनलासुर का वध कर देवताओं का दुख दूर करने की आज्ञा दी।

अनलासुर और गणपति में भयानक युद्ध –

पिता जी की आज्ञा पाते ही गणपति अपने मूषक वाहन पर बैठकर चल दिए। इसके बाद अनलासुर और गणपति में भयानक युद्ध हुआ, पर गणपति जितनी बार उसका वध करते, वह वापस प्रज्वलित हो जाता। इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए गणपति जी को एक ही उपाय सूझा। उन्होंने सोचा कि मेरी भूख का अंत नहीं है। मैं हर चीज हजम कर जाता हूं, तो इस दैत्य को भी अपने पेट में ही पहुंचा देता हूं। ऐसा सोचकर गणपति ने अनलासुर को निगल लिया।

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अनलासुर को निगल लिया गणपति ने –

इस तरह अनलासुर का अंत तो हो गया, पर उसे खाकर गणपति जी के पेट में तीव्र ज्वाला होने लगी। गणपति इस दाह से तड़पने लगे। सभी ऋषि-मुनि उनकी ज्वाला शांत करने के लिए तरह-तरह के उपाय करने लगे। सभी औषधियां और आसव व्यर्थ गए और गणपति जी की तकलीफ बढ़ती चली गई।

दूर्वा से मिली राहत –

वे कष्ट में अपनी माता पार्वती को पुकारने लगे। उनकी पुकार हिमालय तक जा पहुंची और माता पार्वती अपने पुत्र की करूण पुकार सुनकर भागी चली आईं। उन्होंने सारा घटनाक्रम सुनकर तुरंत दूर्वा मंगवाई और उसकी 21 गांठ बनाकर गणेश जी को िखला दीं। दूर्वा खाते ही गणेश जी को शांति मिल गई और तब से उनके पूजन में दूर्वा अनिवार्य हो गईं।

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