हेल्लो दोस्तों दत्तात्रेय जयंती पर लोगों के लिए बेहद खास दिन है। इस दिन भगवान दत्तात्रेय का स्मरण करते हैं उनकी पूजा अर्चना करते हैं। भगवान दत्तात्रेय को सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरुप माना जाता है। ऐसे में कहते हैं कि उनके स्मरण से वो अपने भक्तों के पास आते हैं। इसलिए उन्हें स्मृतिगामी भी कहा जाता है। इस बार दत्तात्रेय जयंती 29 दिसंबर दिन मंगलवार को है Dattatreya Jayanti 2020
ये भी पढ़िए : इन्दिरा एकादशी शुभ मुहूर्त, व्रत की विधि और कथा
ऐसा कहा जाता है कि अगर पूरे विधि विधान से भगवान दत्तात्रेय की पूजा की जाए तो वो अपने भक्तों की मनोकामना जरूर पूर्ण करते हैं किंतु जो लोग व्रत नहीं कर सकते वे इस दिन व्रत कथा जरूर पढ़े। इनके दक्षिण भारत में बहुत से प्रसिद्ध मंदिर भी स्थापित हैं। वहीं दत्तात्रेय भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेशा तीनों का अवतार हैं, इसलिए इनकी पूजा करने से तीनों देव खुश हो जाते हैं। कई लोग इस पूजा के लिए व्रत भी रखते हैं। इसके अलावा कई लोग इस दिन मंदिर में जाकर पूजा करते हैं। मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय जी ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी और भगवान दत्त के नाम पर ही दत्त संप्रदाय का उदय हुआ।
विषयसूची :
दत्तात्रेय जयंती 2020 शुभ मुहूर्त :
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – सुबह 07 बजकर 54 मिनट से (29 दिसम्बर 2020)
पूर्णिमा तिथि समाप्त – सुबह 8 बजकर 57 मिनट तक (30 दिसम्बर 2020)
दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि :
- दत्तात्रेय जयंती के दिन साधक को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
- इसके बाद साधक चाहें तो मंदिर में जाकर भगवान दत्तात्रेय की पूजा कर सकता है या फिर अपने घर पर ही भगवान दत्तात्रेय की पूजा कर सकता है।
- साधक को दत्तात्रेय की पूजा करने से पहले एक चौकी पर गंगाजल छिड़कर उस पर साफ वस्त्र बिछाना चाहिए और भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर स्थापित करनी चाहिए।
- इसके बाद भगवान दत्तात्रेय को फूल, माला आदि अर्पित करके उनकी धूप व दीप से विधिवत पूजा करनी चाहिए।
- साधक को इस दिन भगवान के प्रवचन वाली अवधूत गीता और जीवनमुक्ता गीता अवश्य पढ़नी चाहिए।
- इसके बाद मंत्रों का जाप करें।
ये भी पढ़िए : पुत्रदा एकादशी व्रत कथा, पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त, पुत्र प्राप्ति के लिए करें…
भगवान दत्तात्रेय जी का स्वरुप कैसा है?
श्री गुरू चरित्र में दत्तात्रेय जी के आविर्भाव (अवतार) के समय का स्वरूप-वर्णन करते हुए कहा गया है कि वे त्रिगुणात्मक त्रिमूर्ति, ब्रह्माा, विष्णु, महेश्वर-त्रिदेव का एकीभूत रूप थे। वे त्रिमुख, षडभुज, मस्तक पर जटा मुकुट से युक्त भस्म भूषित अंग वाले, ग्रीवा में रूदाक्ष-माला से शोभित दाहिने हाथ में अक्षमाला तथा अन्य हाथों में डमरू, शंख, त्रिशूल, कमण्डलु और चक्र धारण किये हुए हैं।
योग मार्ग के प्रवर्तक दत्तात्रेय शाम्भवी मुद्रा में शोभित हैं। अर्थात श्री दत्तात्रेय जी भक्तों पर नित्य अनुग्रह (कृपा) करने की प्रवृत्ति वाले, भक्त जनों के पाप एवं त्रिताप का निवारण करने वाले, अंदर से बालक के समान सरल एवं शुद्ध और बाहर से उन्मत्त तथा पिशाच (भूत)-से दिखायी पड़ने वाले हैं, सच्चे हृदय से उनका स्मरण करने पर वे तुरंत प्रकट हो जाने वाले और दया के सागर हैं।
दत्तात्रेय की कथा :
एक बार तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सावित्री को अपने पतिव्रत पर घमंड हो गया है। जिसे देखते हुए भगवान विष्णु ने एक लीला रची। उन्होंने तय किया कि वो देवियों के घमंड को दूर करेंगे, जिसके बाद उन्होंने नारद जी को इन तीन देवियों के पास भेजा। नारद जी ने इन देवियों के सामने देवी अनुसूया के पतिव्रत घर्म का गुणगान कर दिया। जिसे सुनने के बाद तीनों देवियों ईर्ष्या से भर उठीं और अपने पतियों को अत्रि ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया के सतीत्व को भंग करने के लिए भेजीं।
पत्नियों के जिद के आगे ब्रह्मा, विष्णु और महेश विवश होकर अनुसूया की कुटिया के सामने पहुंचे। वहां तीनों देवताओं ने भिखारी का रूप धारण किया और भिक्षा मांगने उनके द्वार पर पहुंचे। अनुसूया अपनी कुटिया से निकलकर तीनों देवताओं को भिक्षा प्रदान की, जिसके बाद देवताओं ने उनसे भोजन की इच्छा जताई। तब देवी अनुसूया ने आदर सम्मान के साथ उन्हें भोजन कराया। लेकिन देवताओं ने उनसे कहा कि जब तक वो नग्न होकर भोजन नहीं परोसेंगी तब तक वो भोजन नहीं करेंगे।
ये भी पढ़िए : जया एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्व
ऐसे बने त्रिदेव बालक :
भिखारी के रूप में देवताओं की ये बात सुन देवी अनुसूया गुस्सा से भर उठीं और उन्होंने अपने पतिव्रत धर्म के बल पर तीनों देवताओं की मंशा जान ली। उनकी मंशा जानने के बाद देवी अनुसूया ने ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवताओं पर छिड़का तब देवताओं ने बालरूप धारण कर लिया। जिसके बाद उन्होंने तीनों देवताओं को दूध पिलाया और उनका पालन पोषण करने लगी। जब बहुत दिनों तक तीनों देवता अपने घर नहीं पहुंचे तो देवियों को चिंता होने लगी।
तब वो देवी अनुसूया की शरण में जा पहुंची। उन्होंने माता अनुसूया से क्षमा मांगा। माता अनुसूया ने कहा कि इन्होंने मेरा दूध पीया है और ये लोग अब बाल रूप में रहेंगे। तब तीनों देवताओं ने अपने अंश को मिलाकर मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के दिन भगवान दत्तात्रेय की उत्पत्ति की। फिर माता अनुसूया ने तीनों देवताओं पर जल छिड़क कर उन्हें पूर्ण रुप प्रदान किया। इस उपलक्ष्य में हर वर्ष भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती हैं। इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान दत्तात्रेय की पूजा की जाती है।
दत्तात्रेय जयंती का महत्व :
मार्गशीष मासे के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। दत्तात्रेय जयंती को दत्त जयंती के नाम से भी जाना जाता है। यह जयंती मुख्य रूप से कर्नाटक, महराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात में मनाया जाता है। भगवान दत्तात्रेय ऋषि अत्रि और देवी अनुसूया के पुत्र हैं। जिन्हें भगवान शिव, भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी तीनों का अवतार माना जाता है।
पुराणों के अनुसार माना जाता है कि दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। भगवान दत्तात्रेय सिर्फ स्मरण करने मात्र से ही अपने भक्तों के पास पहुंच जाते हैं। इस कारण से इन्हें ”स्मृतिमात्रानुगन्ता” और ”स्मर्तृगामी” भी कहा जाता है। इनका जन्म मार्गशीष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था। इसी कारण से हर साल इस समय पर ही दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान दत्तात्रेय की मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
ये भी पढ़िए : जानिए क्या है खरमास और क्यों नहीं होते इस माह में मांगलिक कार्य
ये हैं दत्तात्रेय के 24 गुरू :
दत्तात्रेय ने कहा कि हर चीज आपको सीख देती है। उन्होंने चौबीस गुरु माने हैं। पृथ्वी, पर्वत, वृक्ष (सहिष्णुता, धैर्य और परोपकार), वायु, आकाश (अनासक्ति और अलिप्तता), पानी (माधुर्य, तरलता), अग्नि (तेज और गंदगी का नाश), सूर्य (दुर्गुणों का नाश और सद्गुणों का निर्माण), कबूतर, पतंग, हाथी और हिरण (स्त्रीसंग का त्याग), अजगर (संतोष), समुद्र (समदृष्टि), मक्खी, मधुमक्खी, टिटहरी, सांप (अपरिग्रह), वेश्या (स्वयं का उद्धार स्वयं करना), मछली (भोजन पर संयम), धनुर्धारी (एकाग्रता, लक्ष्य-संधान), मछुआरा, इल्ली (ईश्वर का ज्ञान), गृहिणि (एकांत-रूचि) और बालक (मान-अपमान से असंपृक्ति)।