अजा एकादशी व्रत करने से मिलता है अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य, जानें शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, व्रत कथा और महत्व

एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में काफी उत्तम माना जाता है. अगर आप साल भर कोई भी व्रत ना रखकर सिर्फ एकादशी का व्रत रखते हैं तो भी इससे पुण्य की प्राप्ति होती है. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि के दिन अजा एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस साल अजा एकादशी का व्रत 10 सितंबर को रखा जाएगा. अजा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. आइए जानते हैं एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि. Aja Ekadashi Vrat

अजा एकादशी का व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. ये व्रत रखने से भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी जी का आर्शीवाद भी प्राप्त होता है. एकादशी के दिन व्रत रखकर रात को जागरण कर श्रीहरि विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए. भगवान विष्णु को यह तिथि अत्यंत प्रिय है। आइए जानते हैं अजा एकादशी का शुभ मुहुर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।

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अजा एकादशी शुभ मुहूर्त

Aja Ekadashi Shubh Muhurt

भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष एकादशी अजा एकादशी – 10 सितंबर, रविवार

शुभ मुहूर्त-

  • एकादशी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 09, 2023 को 07:17 PM
  • एकादशी तिथि समाप्त – सितम्बर 10, 2023 को 09:28 PM

व्रत पारणा टाइम-

  • पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 11 सितंबर को 06:04 AM से 08:33 AM तक
  • पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 11:52 PM
Aja Ekadashi Vrat
Aja Ekadashi Vrat

अजा एकादशी पूजन विधि

Aja Ekadashi Poojan Vidhi

  • इस दिन सुबह स्नान आदि कर निवृत हो जाएं। स्नान करने के बाद साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद मंदिर की साफ सफाई कर पूर्व दिशा की तरफ एक चौकी रखें।
  • उस पर पीला या लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें तथा भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
  • पुष्प और तुलसी अर्पित करने के बाद भगवान विष्णु की आरती करें।
  • ॐ अच्युताय नमः मन्त्र का 108 बार जाप करें।
  • भगवान को सात्विक चीजों का भोग लगाएं।
  • पूरा दिन निराहार रहकर शाम के समय अजा एकादशी व्रत कथा सुनें और फलाहार करें।
  • शाम के समय भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने एक गाय के घी का दीपक जलाएं।
  • दूसरे दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन कराकर तथा दक्षिणा देकर उसके बाद स्वयं खाना खाना चाहिये।

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अजा एकादशी व्रत कथा

Aja Ekadashi Vrat Katha

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी व्रत कथा सुनाते हुए बताया था कि, सत्युग में एक अत्यंत वीर प्रतापी तथा सत्यवादी हरीशचंद्र नामक राजा राज करता था। उसने स्वप्न में ऋषि विश्वामित्र को दक्षिणा चुकाने के लिए अपना सारा राज्य व धन दान कर दिया। साथ ही उसे अपनी पत्नी, पुत्र और स्वयं को भी बेचना पड़ा।

इसके बाद वह स्वयं एक चाण्डाल के दास बन गए। वह चाण्डाल के यहां मृतकों का वस्त्र ग्रहंण करता रहा, लेकिन इस कार्य में भी वह किसी प्रकार से भी सत्य से विचलित नहीं हुए। जब इस कार्य को करते हुए कई वर्ष बीत गए तो उन्हें अपने इस कृत्य पर बड़ा दुख हुआ और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगे।

वह सदैव इसी चिंता में रहने लगे कि मैं इस नीच कर्म से मुक्ति पाने के लिए क्या करू? इस चिंता में राजा को कई वर्ष बीत गए। एक दिन वह इसी चिंता में बैठे हुए थे, तभी वहां पर गौतम ऋषि आ पहुंचे। राजा गौतम ऋषि को देखकर काफी प्रसन्न हुए। हरीशचंद्र ने उन्हें दण्डवत प्रणाम किया और अपनी दुखभरी कथा सुनाई।

Aja Ekadashi Vrat
Aja Ekadashi Vrat

महर्षि गौतम ने बताया व्रत 

राजा हरीशचंद्र की दुखभरी कहानी सुन महर्षि गौतम भी अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने राजा से कहा हे राजन आज से सात दिन बाद भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की एकादशी आएगी, इस एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। तुम इस एकादशी पर विधि पूर्वक व्रत करो और रात में यज्ञ और जागरण करो। इससे व्रत के पुण्य प्रताप से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे और वैकुंण्ठ लोक की प्राप्ति होगी। यह कहकर गौतम ऋषि अतंरध्यान हो गए। राजा हरीशचंद्र ने उनके कहे अनुसार अजा एकादशी पर व्रत कर रात में जागरण किया।

इस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हो गए। उन्होंने ब्रम्हा, विष्णु महेश के अपने समक्ष पाया। तथा अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी पत्नी को राजसी वस्त्र और आभूषणों से परिपूर्ण देखा। व्रत के प्रभाव से राजा को पुन: अपने राज्य की प्राप्ति हुई। अजा एकादशी के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए। ऐसे में इस दिन विधि पूर्वक व्रत करने और रात में जागरण करने से आपके सभी पापों का नष्ट होता है और विशेष फल की प्राप्ति होती है।

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अजा एकादशी उद्यापन विधि

Aja Ekadashi Udyapan Vidhi

  1. अजा एकादशी व्रत के उद्यापन में साफ -सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसलिए पूरे घर की सफाई करें और स्वंय भी नहाधोकर साफ वस्त्र धारण करें।
  2. इस एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को 12 ब्राहमणों को उनकी पत्नीयों सहित आमन्त्रित करना चाहिए। जाना चाहिए ।
  3. उसके बाद आचार्य जी को उत्तम रंगों से चक्र-कमल से संयुक्त सर्वतोभद्रमण्डल बनाकर श्वेत वस्त्र से आवेष्टित करे ।
  4. इसके बाद पञ्चपल्लव एवं यथासंभव पञ्चरत्न से युक्त कपूर और अगरु की सुगन्ध से वासित जलपूर्ण कलश को लाल कपड़े से वेष्टित करके उसके ऊपर ताँबे का पूर्णपात्र रखे। उस बाद कलश को पुष्प मालाओँ से भी वेष्टित करे।
  5. कलश को सर्वतोभद्रमण्डल के ऊपर स्थापित करके कलश पर भगवान श्री लक्ष्मीनारायण मूर्ति या तस्वीर को स्थापना करें।
  6. इसके बाद सर्वतोभद्रमण्डल मेँ बारह महीनों के अधिपतियों की स्थापना करके उनका पूजन करें ।
  7. मण्डल के पूर्वभाग में शुभ शङ्ख की स्थापना करे और कहे- ‘हे पाञ्चजन्य! आप पहले समुद्र से उत्पन्न हुए, फिर भगवान विष्णु ने अपने हाथों मेँ आपको धारण किया, सम्पूर्ण देवताओं ने आपके रूप को सँवारा है।
  8. इन सभी कार्येों को संपन्न करने के बाद सभी ब्राह्मण और उनकी पत्नियों को भोजन करांए।
  9. इसके बाद सभी को कपड़े और दक्षिणा देकर विदा करें।
  10. अजा एकादशी के दिन गौ -दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन गौ दान अवश्य करें।
Aja Ekadashi Vrat
Aja Ekadashi Vrat

अजा एकादशी का महत्व

Aja Ekadashi Vrat Mahatv

अजा एकादशी का व्रत करने से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से हरिद्वार आदि तीर्थ स्थानों में स्नान, दान आदि का फल प्राप्त होता है। व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के ग्रहों की पीड़ाएं दूर हो जाती है। व्यक्ति समस्त सुखों का भोग करते हुए अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है। भगवान विष्णु की कृपा से व्रती की आने वाली कई पीढ़ियों को दुख नहीं भोगना पड़ते हैं।

शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल खाने को वर्जित बताया गया है। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाने से व्यक्ति अगले जन्म में रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म लेता है। इसलिए अजा एकादशी के दिन भी भूलकर भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। सभी तिथियों में एकादशी की तिथि को श्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए एकादशी का लाभ पाने के लिए लड़ाई-झगड़े से बचना चाहिए।

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