Narmada Jayanti date katha mahatva : हिंदू धर्म में नदियों को मां का दर्जा दिया गया है. गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी आदि की पूजा की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती मनाई जाती है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन मां नर्मदा का अवतर हुआ था.
मां नर्मदा को रेवा के नाम से भी जाना जाता है. सनातन धर्म में जितना महत्व गंगा स्नान का है उतना ही पुण्य नर्मदा नदी में स्नान करने से भी प्राप्त होता है. नर्मदा नदी म.प्र, गुजरात और महाराष्ट्र में बहती है. नर्मदा जंयती मध्यप्रदेश में धूमधाम से मनाई जाती है. आइए जानते हैं नर्मदा जयंती इस साल कब है, पूजा का मुहूर्त और महत्व.
इस साल नर्मदा जयंती 28 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली सप्तमी तिथि 27 जनवरी को प्रात: 09 बजकर 10 मिनट पर आरंभ होगा और 28 जनवरी को प्रात: 08 बजकर 43 मिनट पर सप्तमी तिथि का समापन होगा। उदयातिथि 28 जनवरी को है, इसलिए नर्मदा जयंती भी 28 जनवरी को ही मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, 28 जनवरी को नर्मदा स्नान के दो शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। पहला शुभ मुहूर्त प्रात: 05.29 से 7.14 बजे तक और दुसरा शुभ मुहूर्त – दोपहर 12.18 से 01.02 बजे तक का है।
नर्मदा स्नान शुभ मुहूर्त – सुबह 05.29 – सुबह 7.14 (28 जनवरी 2023) दोपहर का मुहूर्त – दोपहर 12.18 – दोपहर 01.02 (28 जनवरी 2023)
Narmada Jayanti date katha mahatva
मां नर्मदा की जन्म कथा | Maa Narmada Ki Katha
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव तपस्या में लीन थे, तब उनके पसीने से नर्मदा का जन्म हुआ। उस समय भगवान शिव मैखल पर्वत पर थे। उन्होंने उस कन्या का नाम नर्मदा रखा। जिसका अर्थ होता है सुख प्रदान करने वाली। भगवान शिव ने उस कन्या को आशीष दिया कि जो कोई तुम्हारा दर्शन करेगा, उसका कल्याण होगा। वह मैखल पर्वत पर उत्पन्न हुई थीं, इसलिए वह मैखल राज की पुत्री भी कहलाती हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार, मैखल पर्वत पर भगवान शिव से दिव्य कन्या नर्मदा प्रकट हुई थीं। देवताओं ने उनका नाम नर्मदा रखा। उन्होंने हजारों वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या की, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हुए। फिर उन्होंने नर्मदा को पापनाशिनी का आशीष दिया। साथ ही उनको यह भी वरदान मिला कि उनके तट पर सभी देवी देवताओं का वास होगा और नदी के सभी पत्थर शिवलिंग स्वरूप में पूजे जाएंगे।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जब नर्मदा जी बड़ी हुईं तो उनके पिता मैखलराज ने उनका विवाह राजकुमार सोनभद्र से तय कर दिया। एक बाद उनको राजकुमार से मिलने की इच्छा हुई तो उन्होंने एक दासी को उनसे मिलने के लिए भेजा। वह दासी राजसी आभूषणों से अलंकृत थी, जिसे राजकुमार सोनभद्र नर्मदा समझ लिए। दोनों का विवाह हो गया।
काफी समय बीतने के बाद भी दासी के वापस न लौटने पर नर्मदा जी स्वयं राजकुमार सोनभद्र से मिलने पहुंचीं। उन्होंने राजकुमार सोनभद्र को दासी के साथ पाया। तब वे काफी दुखी हुईं और कभी विवाह न करने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि उसके बाद से ही मां नर्मदा पश्चिम की ओर चल दीं। उसके बाद से वे कभी वापस नहीं लौटीं, इसलिए मां नर्मदा आज भी पश्चिम दिशा में बहती हैं।
Narmada Jayanti date katha mahatva
नर्मदा जयंती महत्व | Narmada Jayanti Mahatva
(Narmada Jayanti Significance)
नर्मदा को भारत की सात पवित्र नदियों में से एक माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा में स्नान कर इनकी पूजा करने पर भक्तों के जीवन में आर्थिक समृद्धि के साथ सुख-शान्ति आती है। विष्णु पुराण में बताया गया है कि नाग राजाओं ने मिलकर नर्मदा मां को वरदान दिया था कि, जो भक्त उनके सच्चिदानंदमयी और कल्याणमयी जल में स्नान कर उनका स्मरण करेगा उस व्यक्ति के तमाम पाप नष्ट हो जाएंगे। उसके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। इसलिए मां नर्मदा को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है।
रथ सप्तमी (Ratha Saptami muhurat puja vidhi mahatva) 28 जनवरी दिन शनिवार को पड़ रही है. इस दिन सुख समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए सूर्य देव की पूजा की जाती है. सप्तमी तिथि भगवान सूर्य को समर्पित होती है. माघ महीने में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ सप्तमी या माघ सप्तमी के नाम से जाना जाता है.
माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी (Ratha Saptami 2023) का त्योहार मनाया जाता है. रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. इसे माघ सप्तमी (Magh Saptami 2023) के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन को कश्यप ऋषि और अदिति के संयोग से भगवान सूर्य का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन को सूर्य जयंती (Surya Jayanti 2023) के नाम से भी जाना जाता है.
इस दिन भगवान सूर्य की पूजा और व्रत करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करने से जाने-अनजाने, वचन से, शरीर से, मन से, वर्तमान जन्म में और पिछले जन्मों में किए गए सात प्रकार के पाप धुल जाते हैं.
मान्यता है कि अचला सप्तमी (Achla Saptami 2023) का दिन वही दिन है जब सूर्य देव अपने रथ को सात घोड़ों द्वारा उत्तर पूर्व दिशा में उत्तरी गोलार्ध की ओर घुमाते हैं. इस दिन कुछ काम करने की मनाही हैं, जिन्हें करने से बचना चाहिए. आइये जानते हैं इस दिन कौन से काम नहीं करने हैं…
Ratha Saptami muhurat puja vidhi mahatva
विषयसूची :
रथ सप्तमी 2023 शुभ मुहूर्त
(Rath Saptami 2023 Shubh Muhurat)
रथ सप्तमी शनिवार, जनवरी 28, 2023 को
रथ सप्तमी के दिन स्नान मूहूर्त – सुबह 05 बजकर 25 मिनट से सुबह 07 बजकर 11 मिनट तक
सप्तमी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 27, 2023 को सुबह 09 बजकर 10 मिनट से शुरू
सप्तमी तिथि समाप्त – जनवरी 28, 2023 को सुबह 08 बजकर 43 मिनट पर खत्म
रथ सप्तमी के दिन अरुणोदय – सुबह 06 बजकर 46 मिनट पर
रथ सप्तमी के दिन अवलोकनीय सूर्योदय – सुबह 07 बजकर 11 मिनट पर
रथ सप्तमी पर सूर्य देव की पूजा के विधान है. ज्योतिष में सूर्य को प्रतिरक्षा का कारक माना गया है. ऐसे में इस दिन पवित्र नदी में स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित देने और पूजा करने से जातकों की स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं दूर होती हैं. जातक की प्रतिरक्षा में सुधार होता है और स्वस्थ शरीर का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
Ratha Saptami muhurat puja vidhi mahatva
रथ सप्तमी 2023 पूजा विधि
(Ratha Saptami 2023 Puja Vidhi)
इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें.
इसके बाद ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें.
इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए लोटे में जल लें और उसमें लाल चंदन, लाल पुष्प, अक्षत् और शक्कर मिलाएं.
इसके बाद धूप या अगरबत्ती और दीपक जलाकर सूर्य देव की पूजा करें.
इसके बाद सूर्य चालीसा का पाठ करें.
सूर्य देव को अनार और लाल रंग की मिठाईयां या फिर गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाएं.
इस दिन घर की पूर्व दिशा को साफ करके वहां पर एक दीपक जलाएं और गायत्री मंत्र का 27 बार जाप करें.
कुश के आसन पर बैठकर आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें और पाठ के बाद अपने पिता या पिता की उम्र के समान व्यक्ति के चरण स्पर्श करें.
रथ सप्तमी के दिन घर पर कुछ मीठा भोजदन बनाकर नेत्रहीन लोगों को खिलाएं.
इस दिन जरूरतमंद लोगों को गेहूं, गुड़, तांबे के बर्तन और लाल कपड़े दान करें.
Ratha Saptami muhurat puja vidhi mahatva
भूलकर भी न करें ये कार्य
शास्त्रों के अनुसार रथ सप्तमी के दिन नमक का सेवन नहीं करें. कहते हैं कि इस दिन नमक दान करना शुभ होता है.
ज्योतिष अनुसार अचला सप्तमी को गाय को गुड़ खिलाना भी शुभ माना गया है.
मान्यता है कि अगर आप इस दिन व्रत रख रहे हैं, तो अगर संभव हो तो किसी पवित्र नदी में स्नान अवश्य करें. लेकिन अगर नदीं में स्नान संभव न हो, तो पानी में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं.
ध्यान रखें कि इस दिन गजेंद्र मोक्ष और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ अवश्य करें.
संतान प्राप्ति की इच्छा वाले लोगों को इस दिन व्रत अवश्य रखना चाहिए.
इस दिन काले रंग के वस्त्र भूलकर भी न पहनें. इस दिन पीले रंग के वस्त्र शुभ माने गए हैं.
सूर्य जयंती के दिन मांस-मदिरा का सेवन भूलकर भी न करें.
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर ब्रह्मा मुहूर्त में गंगा नदी में स्नान करें.
यदि ये संभव नहीं है तो पानी में ही थोड़ा सा गंगाजल डालकर उससे स्नान करें. इस दिन सूर्य देव की पूजा करें और रथ सप्तमी व्रत कथा सुनें. सूर्यदेव के समक्ष दीपक जलाएं. ऐसा करने से आपका भाग्य जागेगा. सूर्योदय के समय तांबे के बर्तन में सूर्यदेव को अर्घ्य दें. ऐसा करने से आपकी कुंडली में सूर्य मजबूत होगा. इस दिन व्रत पूजन सामग्री, वस्त्र, भोजन आदि वस्तु का दान देने से शुभ फल मिलेगा. घर के मुख्य दरवाजे पर आम के पत्ते का बंदरवार लगायें.
बसंत पंचमी का पर्व सनातनी बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाते हैं. इस दिन शुभ मुहूर्त में मां सरस्वती की पूजा से विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है. इस बार ये पर्व 26 जनवरी 2023 को मनाया जाएगा. इस दिन कुछ कार्यों को विशेष तौर पर करने की मनाही है.
जैसे कि बसंत पंचमी का ये पर्व प्रकृति की सौंदर्यता के दर्शन कराता है. इस वजह से इस दिन भूल से भी पेड़ पौधों को काटना या नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए. साथ ही इस दिन स्नान करके मां सरस्वती की पूजा करें इसके बाद ही कुछ ग्रहण करें. आइये जानते हैं इस दिन क्या करें-क्या न करें (Basant Panchami Par Na Karen Ye Kam)
इस दिन काले रंग के वस्त्र न पहनें. बसंत पंचमी के दिन मांस-मंदिरा का सेवन ना करें.
बसंत पंचमी के दिन बिना स्नान किए कुछ भी ना खायें. इस दिन पेड़-पौधों की कटाई-छटाई भी न करें.
Basant Panchami Par Na Karen Ye Kam
बसंत पंचमी के दिन क्या करें
बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्तों में से एक माना गया है ऐसे में आप इस दिन कोई भी शुभ काम बिना मुहूर्त देखें कर सकते हैं.
बसंत पंचमी के दिन सुबह उठते ही अपनी हथेलियों को अवश्य देखें. कहा जाता है मां सरस्वती हमारी हथेलियों में वास करती हैं.
बसंत पंचमी के दिन शिक्षा से संबंधित चीजों का दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होगी.
इस दिन शिक्षा से संबंधित चीजों और अपनी पुस्तकों की पूजा करें. इससे पढ़ाई के प्रति आपका ध्यान और एकाग्रता बढ़ती है.
Basant Panchami Par Na Karen Ye Kam
बसंत पंचमी का महत्व
(Basant Panchami Mahatva)
बसंत पंचमी को श्रीपंचमी भी कहा जाता है. यह मां सरस्वती की पूजा का दिन है. शिक्षा प्रारंभ करने या किसी नई कला की शुरूआत करने के लिए आज का दिन शुभ माना जाता है. इस दिन कई लोग गृह प्रवेश भी करते हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन कामदेव अपनी पत्नी रति के साथ पृथ्वी पर आते हैं. इसलिए जो पति-पत्नी इस दिन भगवान कामदेव और देवी रति की पूजा करते हैं तो उनके वैवाहिक जीवन में कभी अड़चनें नहीं आती हैं.
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Varad Kund Chaturthi Vrat muhurat katha puja vidhi 2023
वरद कुंद चतुर्थी 2023 शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और व्रत कथा | Varad Kund Chaturthi Vrat muhurat katha puja vidhi 2023
माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को “वरद कुंद चतुर्थी” (Varad Kund Chaturthi Vrat muhurat katha puja vidhi 2023) के रुप में मनाया जाता है. वैसे यह चतुर्थी अन्य नामों से भी जानी जाती है. जिसमें इसे तिल, कुंद, विनायक आदि नाम भी दिए गए हैं. इस दिन भगवान श्री गणेश का पूजन होता है. वरद चतुर्थी जीवन में सभी सुखों का आशीर्वाद प्रदान करने वाली है. भगवन श्री गणेश द्वारा दिया गया आशीर्वाद ही “वरद” होता है.
भगवान श्री गणेश का एक नाम वरद भी है जो सदैव भक्तों को भय मुक्ति और सुख समृद्धि का आशीर्वाद होता है. इस गणेश चतुर्थी को वरद तिल कुंद चतुर्थी, माघ विनायक चतुर्थी, माघी गणेशोत्सव, वरद चतुर्थी और गणेश जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस माह की वरद चतुर्थी काफी खास है। क्योंकि भगवान गणेश को समर्पित बुधवार के दिन पड़ने के साथ-साथ कई शुभ योग बन रहे हैं।
विषयसूची :
वरद कुंद चतुर्थी 2023 शुभ मुहूर्त
Varad Kund Chaturthi 2023 Shubh Muhurat
हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 24 जनवरी को दोपहर 03 बजकर 22 मिनट पर आरंभ हो रही है, जो 25 जनवरी, बुधवार को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक है। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार गणेश जयंती 25 जनवरी, बुधवार को मनाई जाएगी।
Varad Kund Chaturthi Vrat muhurat katha puja vidhi
चतुर्थी तिथि आरंभ – 24 जनवरी को दोपहर 03 बजकर 22 मिनट पर चतुर्थी तिथि समाप्त – 25 जनवरी बुधवार को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त– 25 जनवरी सुबह 11 बजकर 29 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक रवि योग– सुबह 06 बजकर 44 मिनट से 08 बजकर 05 मिनट तक परिघ योग– 24 जनवरी को रात 9 बजकर 36 मिनट से 25 जनवरी शाम 6 बजकर 15 मिनट तक शिव योग– 25 जनवरी शाम 6 बजकर 15 मिनट से 26 जनवरी सुबह 10 बजकर 28 मिनट तक
वरद कुंद चतुर्थी चंद्रोदय का समय
शास्त्रों के अनुसार, गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करना चाहिए। क्योंकि गणपति जी के रूप का इंद्रदेव ने उपहास किया था। जिसके कारण गणेश जी ने उन्हें शाप दे दिया था। इसी कारण इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से कलंक लगता है। इसलिए 25 जनवरी को सुबह 09 बजकर 54 मिनट से रात 09 बजकर 55 मिनट तक चंद्रमा का दर्शन न करें।
पंचांग के अनुसार, जनवरी माह में पंचक 27 तारीख तक रहेंगे। इसलिए इस बार गणेश जयंती का व्रत पंचक में ही रहेगा। बता दें कि पंचक 23 जनवरी को दोपहर बाद 01 बजकर 51 से पंचक शुरू हो रहे है, जो 27 जनवरी शाम 6 बजकर 37 मिनट पर समाप्त होंगे।
वरद कुंद चतुर्थी पूजन विधि
Varad Kund Chaturthi 2023 Poojan Vidhi
वरद कुंद चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश जी का पूजन उल्लास और उत्साह के साथ होता है. चतुर्थी तिथि व्रत के नियमों का पालन चतुर्थी तिथि से पूर्व ही आरंभ कर देना चाहिए. पूजा वाले दिन प्रात:काल उठ कर श्री गणेश जी के नाम का स्मरण करना चाहिए. चतुर्थी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. चतुर्थी व्रत वाले दिन नाम स्मरण का विशेष महत्व रहा है. कुंद चतुर्थी पूजा स्थल पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए. अक्षत, रोली, फूल माला, गंध, धूप आदि से गणेश जी को अर्पित करने चाहिए. गणेश जी दुर्वा अर्पित और लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए. पूजा की विधि इस प्रकार है –
चतुर्थी के दिन व्रतधारी ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें, लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
पूजन के समय अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा सोने या चांदी से निर्मित शिव-गणेश प्रतिमा स्थापित करें।
संकल्प के बाद भगवान शिव और श्री गणेश का पूजन करके आरती करें।
तत्पश्चात अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र चावल आदि चढ़ाएं।
गणेश मंत्र- ‘ॐ गं गणपतयै नम:’ बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं।
अब बूंदी के 21 लड्डुओं और शिव जी को मालपुए का भोग लगाएं।
पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्त्रोत का पाठ करें।
ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें। अपनी शक्ति हो तो उपवास करें अथवा शाम के समय खुद भोजन ग्रहण करें।
शाम के समय गणेश चतुर्थी कथा, श्रद्धानुसार गणेश स्तुति, श्री गणेश सहस्रनामावली, गणेश शिव चालीसा, गणेश पुराण आदि का स्तवन करें। संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करके श्री गणेश की आरती करें।
Varad Kund Chaturthi Vrat muhurat katha puja vidhi 2023
वरद कुंद चतुर्थी व्रत कथा
Varad Kund Chaturthi 2023 Vrat Katha
चतुर्थी व्रत से सबंधित कथा भगवान श्री गणेश जी के जन्म से संबंधित है तो कुछ कथाएं भगगवान के भक्त पर की जाने वाली असीम कृपा को दर्शाती है. इसी में एक कथा इस प्रकार है. शिवपुराण में बताया गया है कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर गणेशजी का जन्म हुआ था. इस कारण चतुर्थी तिथि को जन्म तिथि के रुप में मनाया जाता है. इस दिन गणेशजी के लिए विशेष पूजा-पाठ का आयोजन होता है. मान्यता के अनुसार एक बार माता पार्वती स्नान के लिए जब जाने वाली होती हैं तो वह अपनी मैल से एक बच्चे का निर्माण करती हैं और उस बालक को द्वारा पर पहरा देने को कहती हैं.
उस समय भगवान शिव जब अंदर जाने लगते हैं तो द्वार पर खड़े बालक, शिवजी को पार्वती से मिलने से रोक देते है. बालक माता पार्वती की आज्ञा का पालन कर रहे होते हैं. जब शिवजी को बालक ने रोका तो शिवजी क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर देते हैं. जब पार्वती को ये बात मालूम हुई तो वह बहुत क्रोधित होती हैं. वह शिवजी से बालक को पुन: जीवित करने के लिए कहती हैं. तब भगवान शिव ने उस बालक के धड़ पर हाथी का सिर लगा कर उसे जीवित कर देते हैं. उस समय बालक को गणेश नाम प्राप्त होता है. वह बालक माता पार्वती और भगवन शिव का पुत्र कहलाते हैं.
वरद चतुर्थी तिथि शुरू होने से लेकर खत्म होने तक चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए. मान्यता है की चतुर्थी तिथि के दिन चंद्र देव को नहीं देखना चाहिए. पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रमा को भगवान श्री गणेश द्वारा श्राप दिया गया था की यदि कोई भी भाद्रपद माह चतुर्थी तिथि के दिन चंद्रमा का दर्शन करेगा तो उसे कलंक लगेगा. ऎसे में इस कारण से चतुर्थी तिथि के दिन चंद्रमा के दर्शन को मना किया जाता है. कहा जाता है कि इस दोष से मुक्ति के लिये वरद गणेश चतुर्थी के व्रत को किया और मिथ्या दोष से मुक्ति को प्राप्त होते हैं.
एक बार चंद्रमा, गणेशजी का ये स्वरूप देखकर उन पर हंस पड़ते हैं. जब गणेश जी ने चंद्र को ऎसा करते देखा तो उन्होंने कहा की “चंद्रदेव तुम्हें अपने रुप पर बहुत घमण्ड है अत: मै तुम्हें श्राप देता हूं की तुम्हारा रुप सदैव ऎसा नहीं रहेगा”. गणेश जी के चंद्र को दिए शाप के कारण ही वह सदैव धीरे-धीरे क्षीण होने लगते हैं और आकार में बदलाव रहता है.
श्राप को सुनकर चंद्रमा को अपने अपराध पर पश्चताप होता है और वे गणेश से क्षमा मांगते हैं. तब गणेश उन्हें कहते हैं कि श्राप निष्फल नहीं होगा. पर इस का असर कम हो सकता है. तुम चतुर्थी का व्रत करो तो इसके पुण्य से तुम फिर से बढ़ने लगोगे. चंद्रमा ने ये व्रत किया. इसी घटना के बाद से चंद्र कृष्ण पक्ष में घटता है और फिर शुक्ल पक्ष में बढ़ने लगता है. गणेशजी के वरदान से ही चतुर्थी तिथि पर चंद्र दर्शन करने का विशेष महत्व है. इस दिन व्रत करने वाले भक्त चंद्र पूजन के पश्चात ही भोजन ग्रहण करते हैं.
डिसक्लेमर– इस लेख में निहित किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
सोलह 16 सोमवार व्रत का उद्यापन करने की विधि | 16 somvar vrat udyapan vidhi
सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ को समर्पित है. इस दिन देवों के देव महादेव की विशेष पूजा करने और व्रत रखने का विधान है. आप अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए 16 सोमवार या मनोकामना पूरी होने तक का सोमवार व्रत रख सकते हैं. सोमवार व्रत रखने से पहले आप जितने व्रत करने का संकल्प लेते हैं. उतने ही सोमवार को व्रत करें और जब आपकी मनोकामनाएं पूरी हो जाए तब सोमवार के व्रत का उद्यापन कर दें. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि किसी भी व्रत का समय पूरा होने के बाद भगवान की जो अंतिम पूजा या व्रत होता है, उस व्रत को ही उद्यापन कहा जाता है.
उद्यापन 16 सोमवार व्रत की संख्या पूरी होने पर 17 वें सोमवार को किया जाता है। श्रावण मास के प्रथम या तृतीय सोमवार को करना सबसे अच्छा माना जाता है। वैसे तो सोमवार का व्रत आप कभी भी उठा सकती हैं, लेकिन सोमवार के उद्यापन के लिए सावन, कार्तिक, वैशाख, ज्येष्ठ या मार्गशीर्ष मास के सभी सोमवार श्रेष्ठ माने जाते हैं. व्रत उद्यापन में शिव-पार्वती जी की पूजा के साथ चंद्रमा की भी पूजा करने का विधान है. उद्यापन पूरे विधि विधान से किया जाना जरूरी है. तो चलिए बताते हैं उद्यापन की विधि और सामग्री. 17th monday of solah somvar vrat udyapan in hindi
व्रत उद्यापन में शिव-पार्वती जी की पूजा के साथ चंद्रमा की भी पूजा करने का विधान है. उद्यापन पूरे विधि विधान से किया जाना जरूरी है. तो चलिए बताते हैं उद्यापन की विधि और सामग्री.
हिन्दू धर्म साल में 4 बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, दो बार गुप्त नवरात्रि और दो बार सामान्य नवरात्रि. जिसमें से माघ और आषाढ़ मास में पड़ने वाली दोनो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। मां दुर्गा की आराधना के लिए नवरात्रि के 9 दिन सबसे शुभ माने जाते हैं. इस बार माघ की गुप्त नवरात्रि 22 जनवरी 2023, रविवार से शुरू होगी और इसका समापन 30 जनवरी 2023 को होगा.
जानें क्यों मनाई जाती है गुप्त नवरात्रि | Gupt Navratri kyu manate hain
कहा जाता है कि इन देवियों की पूजा शारदीय और चैत्र नवरात्रों की तरह सार्वजनिक रूप से नहीं की जाती। बल्कि इन नौ दिनों तक गुप्त रूप से मां दुर्गा के 10 स्वरूपों की पूजा होती है। इसलिए इन नवरात्रों का नाम गुप्त नवरात्र पड़ा। ऐसी मान्यता है कि गुप्त नवरात्रों में देर रात में गुप्त रूप से पूजा करनी चाहिए। गुप्त नवरात्रि के दिनों में सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस नवरात्रि में गुप्त विद्या की सिद्धी हेतु साधना की जाती है। इस नवरात्रि में तंत्र साधना की जाती है। जो गुप्त रूप से होती है। इसी लिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।
Gupt Navratri Vrat Niyam
मां के दस महाविद्याओं के नाम | Ten Mahavidyas of Maa Bhagwati
पहली माघ गुप्त नवरात्रि पर मां काली की पूजा होती है।
दूसरी माघ गुप्त नवरात्रि पर मां तारा की पूजा होती है।
तीसरी माघ गुप्त नवरात्रि पर मां षोडशी की पूजा होती है।
चौथी माघ गुप्त नवरात्रि पर मां भुवनेश्वरी की पूजा होती है।
पांचवीं माघ गुप्त नवरात्रि पर मां भैरवी की पूजा होती है।
छठी माघ गुप्त नवरात्रि पर मां छिन्नमस्ता की पूजा होती है।
सातवीं माघ गुप्त नवरात्रि मां धूमावती की पूजा होती है।
आठवीं माघ गुप्त नवरात्रि पर मां बगलामुखी की पूजा होती है
नौ वे दिन माघ गुप्त नवरात्रि पर मां मांतगी और मां कमला की पूजा होती है।
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गुप्त नवरात्रि 2023 के व्रत नियम | Gupt Navratri Vrat Niyam
गुप्त नवरात्रि के दौरान मांस-मदिरा, लहसुन और प्याज का बिल्कुल सेवन नहीं करना चाहिए.
मां दर्गा स्वयं एक नारी हैं, इसलिए नारी का सदैव सम्मान करना चाहिए. जो नारी का सम्मान करते हैं, मां दुर्गा उन पर अपनी कृपा बरसाती हैं.
नवरात्रि के दिनों में घर में कलेश, द्वेष या अपमान नहीं करना चाहिए. कहते हैं कि ऐसा करने से बरकत नहीं होती है.
इन दिनों स्वच्छता का विशेष ख्याल रखना चाहिए. नौ दिनों तक सूर्योदय से साथ ही स्नान कर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए.
नवरात्रि के दौरान काले रंग के वस्त्र नहीं धारण करने चाहिए और ना ही चमड़े के बेल्ट या जूते पहनने चाहिए.
मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान बाल, दाढ़ी और नाखून नहीं काटने चाहिए. नवरात्रि के दौरान बिस्तर पर नहीं बल्कि जमीन पर सोना चाहिए.
घर पर आए किसी मेहमान या भिखारी का अपमान नहीं करना चाहिए.
गुप्त नवरात्रि 2023, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, कथा और महत्त्व | Gupt Navratri date time puja vidhi
हिन्दू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व माना गया है, साल में 4 बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, दो बार गुप्त नवरात्रि और दो बार सामान्य नवरात्रि. जिसमें से माघ और आषाढ़ मास में पड़ने वाली दोनो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। मां दुर्गा की आराधना के लिए नवरात्रि के 9 दिन सबसे शुभ माने जाते हैं. इस बार माघ की गुप्त नवरात्रि 22 जनवरी 2023, रविवार से शुरू होगी और इसका समापन 30 जनवरी 2023 को होगा.
गुप्त नवरात्रि माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को रखी जाती है. गुप्त नवरात्रि की पूजा के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है. माना जाता है कि नवरात्रि के इन दिनों में, देवी दुर्गा अपने भक्तों की हर मुराद पूरी कर उन्हें हर प्रकार के दुःख और दर्द से निजात दिलाती है. यही मुख्य कारण है कि इस दौरान दुनियाभर में देवी दुर्गा के मंदिरों में, मां के भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है.
क्या होती है गुप्त नवरात्रि | Gupt Navratri Kya Hai
गुप्त नवरात्रि में आमतौर पर साधक-सन्यासी, सिध्दि प्राप्त करने की इच्छा करने वाले लोग, तांत्रिक आदि देवी मां की उपासना करते हैं। हालांकि साल की चारों नवरात्रि सिध्दि प्रदान करने वाली होती हैं लेकिन गुप्तनवरात्रि के दिनों में देवी मां की दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है। इन विद्याओं का तंत्र शक्तिओं और सिध्दियों में विशेष महत्व होता है। गुप्त नवरात्रि के नौ दिनों तक सन्यासी और अघोरी लगातार मां की पूजा अर्चना में लगे रहते हैं एवं अपनी शक्तियों को और अधिक अर्जित करते हैं। इसके अलावा गुप्त नवरात्र में सामान्य लोग भी किसी विशेष इच्छा की पूर्ति या सिध्दि के लिए गुप्त नवरात्र में साधना करते हैं।
Gupt Navratri date time puja vidhi
गुप्त नवरात्रि पूजन विधि | Gupt Navratri 2023 Pujan Vidhi
गुप्त नवरात्रि में नौ दिन के लिए कलश स्थापना की जा सकती है. अगर कलश की स्थापना की है तो दोनों सुबह-शाम मंत्र जाप, चालीसा या सप्तशती का पाठ करें. दोनों ही समय आरती करना भी अच्छा होगा. मां को दोनों समय भोग भी लगाएं. सबसे सरल और उत्तम भोग है लौंग और बताशा. मां के लिए लाल फूल सर्वोत्तम होता है. हालांकि इस दौरान मां को आक, मदार, दूब और तुलसी बिल्कुल न चढ़ाएं. पूरे नौ दिन अपना खान-पान और आहार सात्विक रखें.
गुप्त नवरात्रि का महत्व | Gupt Navratri 2023 Importance
नवरात्रि में देवी शक्ति मां दुर्गा के भक्त उनके नौ रूपों की बड़े विधि-विधान के साथ पूजा करते हैं. नवरात्र के समय घरों में कलश स्थापित कर दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू किया जाता है. इसके दौरान मंदिरों में जागरण किए जाते हैं. नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा करने से लोगों को हर मुश्किल परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है. इन नौ दिनों को बहुत पवित्र माना जाता है और भक्त नवरात्रि के दौरान उपवास रखते हैं.
बसंत पंचमी का त्योहार माँ सरस्वतीजी को समर्पित है. इस दिन देवी सरस्वती जी की विशेष पूजा की जाती है. हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी (Basant Panchami 2023) का त्योहार मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन संगीत और ज्ञान की देवी सरस्वती का उद्भव हुआ था. इसलिए यह दिन माँ सरस्वती की आराधना के लिए विशेष दिन माना जाता है. Basant panchami muhurat puja vidhi katha
कला, वाणी, संगीत और ज्ञान में रुचि वालों के लिए ये दिन बहुत खास होता है. यह माना जाता है कि जब किसी छोटे बच्चे को शिक्षा प्रारंभ करानी हो, तो इस दिन से शुरु कराएं, इससे बच्चे को देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वो बच्चा बुद्धिमान और ज्ञानवान बनता है. इस बार बसंत पंचमी का त्योहार 26 जनवरी को गुरुवार के दिन मनाया जाएगा. आइये जानते हैं, बसंत पंचमी के शुभ मुहूर्त, महत्त्व, पूजा विधि और कथा के बारे में.
विषयसूची :
बसंत पंचमी 2023 शुभ मुहूर्त
Basant Panchami 2023 Muhurat
हिन्दू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 25 जनवरी 2023 की दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से प्रारंभ होगी और 26 जनवरी 2023 को सुबह 10 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए उदया तिथि के अनुसार वसंत पंचमी 26 जनवरी 2023 को ही मनाई जाएगी।
इस दिन सरस्वती पूजन के लिए 05 घंटे से अधिक का समय है. वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का शुभ मुहूर्त प्रात: 07 बजकर 12 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक है.
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बसंत पंचमी 2023 पूजा विधि
Basant Panchami 2023 Puja Vidhi
बसंत पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर और स्नानादि से निवृत्त होकर माँ सरस्वती का पूजन-अर्चन करें।
देवी सरस्वती की मूर्ति या चित्र को पीले रंग के वस्त्रों से सजाकर उन्हें पीले फूल अर्पित करें।
माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन से बसंत ऋतु का आरंभ होता है इसलिए चारों तरफ का वातावरण पीले फूलों से सुसज्जित दिखाई देता है।
माँ सरस्वती को चंदन, हल्दी, केसर, रोली, अक्षत, पीले या सफेद रंग के पुष्प और पीली मिठाई अर्पित करें।
पूजा स्थल पर किताबें और वाद्य यंत्र रखकर श्रद्धा भाव से पूजा करें।
देवी सरस्वती की आरती वंदना करें और प्रसाद चढ़ाएं।
पूजा होने के बाद प्रसाद सभी में वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
पौराणिक कथानुसार जब ब्रह्म देव ने सृष्टि की रचना की, तब उन्होंने महसूस किया कि जीवों की सृजन के बाद भी चारों ओर मौन व्याप्त है. इसके बाद उन्होंने विष्णुजी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे पृथ्वी पर एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुईं. अति तेजवान देवी शक्ति का यह स्वरुप हाथों में पुस्तक, माला और वीणा धारण किये हुए था. जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, सृष्टि में चारों दिशाओं में ज्ञान और उत्सव का वातावरण बन गया. वेदमंत्र गूंजने लगे. यह घटना जिस दिन घटी, उस दिन माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी. तभी से इस दिन को देवी सरस्वती के जन्मदिवस के तौर पर मनाया जाने लगा.
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पीले रंग का महत्व
बसंत पंचमी के दिन पीले रंग को विशेष महत्व दिया जाता है। ऐसा मानते है कि इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए, पीले पुष्प माँ सरस्वती को अर्पित करना चाहिए और पीला भोजन बनाना चाहिए। ऐसा करना विशेष रूप से लाभकारी है। दरअसल इसके पीछे का मुख्य कारण है कि बसंत पंचमी के दिन से कड़ाके की ठंड खत्म होकर मौसम सुहावना होने लगता है और हर तरफ पेड़-पौधों पर नई पत्तियां, फूल-कलियां खिलने लग जाती हैं।
इस मौसम में सरसों की फसल के पीले पुष्पों की वजह से धरती पीली दिखने लगती है. इस पीली धरती को ध्यान में रख लोग बसंत पंचमी का स्वागत पीले रंग के कपड़े पहनकर करते हैं। इसके साथ यह मान्यता भी है कि बसंत पंचमी के दिन सूर्य उत्तरायण में होता है जिसकी पीली किरणें धरती को प्रकाशमय करती है। इसलिए इस दिन पीले वस्त्र धारण किये जाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का प्रकाट्य हुआ था और तब पूरे संसार को वाणी और ज्ञान प्राप्त हुआ था. वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की जयंती होती है. इस दिन सरस्वती माता की पूजन करके विद्यार्थी उनसे ज्ञान और कला का आशीर्वाद लेते हैं.
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मां सरस्वती मंत्र
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।। कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्। वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।। रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्। सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।वन्दे भक्तया वन्दिता च ।।
सरस्वती वंदना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना। या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
सोलह सोमवार व्रत विशेष रूप से विवाहित जीवन में होने वाली परेशानियों का सामना करने वाले लोगों के द्वारा किया जाता है। यह व्रत अच्छे एवं मनोवांछित जीवन साथी को पाने के लिए भी किया जाता है। सोलह सोमवार व्रत का प्रारम्भ करने वाली माँ पार्वती स्वयं हैं।
एक बार जब उन्होंने इस धरती पर अवतार लिया था तो वह भगवान शिव को एक बार पुनः प्राप्त करने के लिए सोमवार व्रत की कठिन तपस्या और शिव पूजन का किया था। वैसे तो सोलह सोमवार व्रत किसी भी मास में किया जा सकता है किन्तु श्रावण मास में यह व्रत शुरू करना अति उत्तम माना जाता है और इस व्रत को लगातार 16 सोमवार तक करते है। 16 सोमवार व्रत की संख्या पूरी होने पर 17 वें सोमवार को उद्यापन किया जाता है।जानिये कब है गुरु पूर्णिमा 2023
विषयसूची :
सोलह सोमवार व्रत पूजा सामग्री
Solah Somvar Poojan Saamagri
सोलह सोमवार व्रत पूजन में शिव जी की मूर्ति, भांग, बेलपत्र, जल, धूप, दीप, गंगाजल, धतूरा, इत्र, सफेद चंदन, रोली, अष्टगंध, सफेद वस्त्र, नैवेद्य जिसे आधा सेर गेहूं के आटे को घी में भूनकर गुड़ मिला कर बना लें। कब से शुरू होगा चातुर्मास 2023
सोलह सोमवार के दिन भक्तिपूर्वक व्रत करें। आधा सेर गेहूं का आटा को घी में भून कर गुड़ मिला कर अंगा बना लें । इसे तीन भाग में बाँट लें। अब दीप, नैवेद्य, पूंगीफ़ल, बेलपत्र, धतूरा, भांग, जनेउ का जोड़ा, चंदन, अक्षत, पुष्प, आदि से प्रदोष काल में भगवान शिव का पूजन करें। एक अंगा भगवान शिव को अर्पण करें। दो अंगाओं को प्रसाद स्वरूप बांटें, और स्वयं भी ग्रहण करें। सत्रहवें सोमवार के दिन पाव भर गेहूं के आटे की बाटी बनाकर, घी और गुड़ बनाकर चूरमा बनायें. भोग लगाकर उपस्थित लोगों में प्रसाद बांटें।
Solah Somvar Vrat
सोलह सोमवार व्रत कथा
Solah Somvar Vrat Katha
एक बार शिवजी और माता पार्वती मृत्यु लोक पर घूम रहे थे। घूमते घूमते वो विदर्भ देश के अमरावती नामक नगर में आये। उस नगर में एक सुंदर शिव मन्दिर था इसलिए महादेवजी पार्वतीजी के साथ वहा रहने लग गये। एक दिन बातों बातों में पार्वतीजी ने शिवजी को चौसर खेलने को कहा। शिवजी राजी हो गये और चौसर खेलने लग गये।
उसी समय मंदिर का पुजारी दैनिक आरती के लिए आया पार्वती ने पुजारी से पूछा “बताओ हम दोनों में चौसर में कौन जीतेगा ” वो पुजारी भगवान शिव का भक्त था और उसके मुह से तुरन्त निकल पड़ा “महादेव जी जीतेंगे”। चौसर का खेल खत्म होने पर पार्वती जी जीत गयी और शिवजी हार गये।
पार्वती जी ने क्रोधित होकर उस पुजारी को श्राप देना चाहा तभी शिवजी ने उन्हें रोक दिया और कहा कि ये तो भाग्य का खेल है उसकी कोई गलती नही है फिर भी माता पार्वती ने उस कोढ़ी होने का श्राप दे दिया और उसे कोढ़ हो गया। काफी समय तक वो कोढ़ से पीड़ित रहा। एक दिन एक अप्सरा उस मंदिर में शिवजी की आराधना के लिए आयी और उसने उस पुजारी के कोढ को देखा। अप्सरा ने उस पुजारी को कोढ़ का कारण पूछा तो उसने सारी घटना उसे सुना दी।
तब अप्सराओं ने उन्हें सोलह सोमवार के व्रत के बारे में बताते हुए और महादेव से अपने कष्ट हरने के लिए प्रार्थना करने के को कहा. तब उस पुजारी ने उत्सुकता से व्रत करने की विधि पूछी। अप्सरा ने बताया “सोमवार के दिन नहा धोकर साफ़ कपड़े पहन लेना और आधा किलो आटे से पंजीरी बना देना, उस पंजीरी के तीन भाग करना, प्रदोष काल में भगवान शिव की आराधना करना,
इस पंजीरी के एक तिहाई हिस्से को आरती में आने वाले लोगो को प्रसाद के रूप में देना, इस तरह सोलह सोमवार तक यही विधि अपनाना, 17 वे सोमवार को एक चौथाई गेहू के आटे से चूरमा बना देना और शिवजी को अर्पित कर लोगो में बाट देना, इससे तुम्हारा कोढ़ दूर हो जायेगा। इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने से उसका कोढ़ दूर हो गया और वो खुशी खुशी रहने लगा।
एक दिन शिवजी और पार्वती जी दुबारा उस मंदिर में लौटे और उस पुजारी को एकदम स्वस्थ देखा। पार्वती जी ने उस पुजारी से स्वास्थ्य लाभ होने का राज पूछा। उस पुजारी ने कहा उसने 16 सोमवार व्रत किये जिससे उसका कोढ़ दूर हो गया। पार्वती जी इस व्रत के बारे में सुनकर बहुत प्रसन्न हुई।
उन्होंने भी ये व्रत किया और इससे उनका पुत्र वापस घर लौट आया और आज्ञाकारी बन गया। कार्तिकेय ने अपनी माता से उनके मानसिक परविर्तन का कारण पूछा जिससे वो वापस घर लौट आये पार्वती ने उन्हें इन सब के पीछे सोलह सोमवार व्रत के बारे में बताया कार्तिकेय यह सुनकर बहुत खुश हुए।
कार्तिकेय का एक मित्र जो परदेस गया हुआ था उस ब्राह्मण मित्र से मिलने के लिए उन्होंने इस व्रत को किया और सोलह सोमवार होने पर उनका मित्र उनसे मिलने विदेश से वापस लौट आया। उनके मित्र ने इस राज का कारण पूछा तो कार्तिकेय ने सोलह सोमवार व्रत की महिमा बताई यह सुनकर उस ब्राह्मण मित्र ने भी विवाह के लिए सोलह सोमवार व्रत रखने के लिए विचार किया।
एक दिन राजा अपनी पुत्री के विवाह की तैयारियाँ कर रहा था। कई राजकुमार राजा की पुत्री से विवाह करने के लिए आये। राजा ने एक शर्त रखी कि जिस भी व्यक्ति के गले में हथिनी वरमाला डालेगी उसके साथ ही उसकी पुत्री का विवाह होगा। वो ब्राह्मण भी वही था और भाग्य से उस हथिनी ने उस ब्राह्मण के गले में वरमाला डाल दी और शर्त के अनुसार राजा ने उस ब्राह्मण से अपनी पुत्री का विवाह करा दिया।
एक दिन राजकुमारी ने ब्राह्मण से पूछा आपने ऐसा क्या पुण्य किया जो हथिनी ने दुसरे सभी राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में वरमाला डाली। उसने कहा “प्रिये मैंने अपने मित्र कार्तिकेय के कहने पर सोलह सोमवार व्रत किये थे उसी के परिणामस्वरुप तुम लक्ष्मी जैसी दुल्हन मुझे मिली ” राजकुमारी यह सुनकर बहुत प्रभावित हुई और उसने भी पुत्र प्राप्ति के लिए सोलह सोमवार व्रत रखा फलस्वरूप उसके एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और जब पुत्र बड़ा हुआ तो पुत्र ने पूछा “माँ आपने ऐसा क्या किया जो आपको मेरे जैसा पुत्र मिला ” उसने भी पुत्र को सोलह सोमवार व्रत की महिमा बतायी।
यह सुनकर उसने भी राजपाट की इच्छा के लिए ये व्रत रखा। उसी समय एक राजा अपनी पुत्री के विवाह के लिए वर तलाश कर रहा था तो लोगो ने उस बालक को विवाह के लिए उचित बताया। राजा को इसकी सूचना मिलते ही उसने अपनी पुत्री का विवाह उस बालक के साथ कर दिया। कुछ सालो बाद जब राजा की मृत्यु हुयी तो वो राजा बन गया क्योंकि उस राजा के कोई पुत्र नही था।
राजपाट मिलने के बाद भी वो सोमवार व्रत करता रहा। एक दिन 17 वे सोमवार व्रत पर उसकी पत्नी को भी पूजा के लिए शिव मंदिर आने को कहा लेकिन उसने खुद आने के बजाय दासी को भेज दिया। ब्राह्मण पुत्र के पूजा खत्म होने के बाद आकाशवाणी हुई “तुम अपनी पत्नी को अपने महल से दूर रखो, वरना तुम्हारा विनाश हो जाएगा ” ब्राह्मण पुत्र ये सुनकर बहुत आश्चर्यचकित हुआ।
Solah Somvar Vrat
महल वापस लौटने पर उसने अपने दरबारियों को भी ये बात बताई तो दरबारियों ने कहा कि जिसकी वजह से ही उसे राजपाट मिला है वो उसी को महल से बाहर निकालेगा। लेकिन उस ब्राह्मण पुत्र ने उसे महल से बाहर निकल दिया। वो राजकुमारी भूखी प्यासी एक अनजान नगर में आयी। वहा पर एक बुढी औरत धागा बेचने बाजार जा रही थी। जैसे ही उसने राजकुमारी को देखा तो उसने उसकी मदद करते हुए उसके साथ व्यापार में मदद करने को कहा।राजकुमारी ने भी एक टोकरी अपने सर पर रख ली। कुछ दूरी पर चलने के बाद एक तूफान आया और वो टोकरी उडकर चली गयी अब वो बुढी औरत रोने लग गयी और उसने राजकुमारी को मनहूस मानते हुए चले जाने को कहा।
उसके बाद वो एक तेली के घर पहुची उसके वहा पहुचते ही सारे तेल के घड़े फूट गये और तेल बहने लग गया। उस तेली ने भी उसे मनहूस मानकर उसको वहा से भगा दिया। उसके बाद वो एक सुंदर तालाब के पास पहुची और जैसे ही पानी पीने लगी उस पानी में कीड़े चलने लगे और सारा पानी धुंधला हो गया। अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए उसने गंदा पानी पी लिया और पेड़ के नीचे सो गयी जैसे ही वो पेड़ के नीचे सोयी उस पेड़ की सारी पत्तियाँ झड़ गयी। अब वो जिस पेड़ के पास जाती उसकी पत्तियाँँ गिर जाती थी।
ऐसा देखकर वहाँ के लोग मंदिर के पुजारी के पास गये। उस पुजारी ने उस राजकुमारी का दर्द समझते हुए उससे कहा – बेटी तुम मेरे परिवार के साथ रहो, मै तुम्हे अपनी बेटी की तरह रखूंगा, तुम्हे मेरे आश्रम में कोई तकलीफ नही होगी ।” इस तरह वह आश्रम में रहने लग गयी अब वो जो भी खाना बनाती या पानी लाती उसमे कीड़े पड़ जाते। ऐसा देखकर वो पुजारी आश्चर्यचकित होकर उससे बोला “बेटी तुम पर ये कैसा कोप है जो तुम्हारी ऐसी हालत है” उसने वही शिवपूजा में ना जाने वाली कहानी सुनाई। उस पुजारी ने शिवजी की आराधना की और उसको सोलह सोमवार व्रत करने को कहा जिससे उसे जरुर राहत मिलेगी।
उसने सोलह सोमवार व्रत किया और 17वे सोमवार पर ब्राह्मण पुत्र उसके बारे में सोचने लगा “वह कहाँ होगी, मुझे उसकी तलाश करनी चाहिये।” इसलिए उसने अपने आदमी भेजकर अपनी पत्नी को ढूंढने को कहा उसके आदमी ढूंढते ढूंढते उस पुजारी के घर पहुच गये और उन्हें वहा राजकुमारी का पता चल गया। उन्होंने पुजारी से राजकुमारी को घर ले जाने को कहा लेकिन पुजारी ने मना करते हुए कहा “अपने राजा को कहो कि खुद आकर इसे ले जाए।” राजा खुद वहाँ पर आया और राजकुमारी को वापस अपने महल लेकर आया। इस तरह जो भी यह सोलह सोमवार व्रत करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
Solah Somvar Vrat
सोलह सोमवार व्रत नियम
16 Somvar Vrat Niyam
सोलह सोमवार के व्रत पूरी श्रद्धा और साफ़ मन से करना चाहिए।
हर सोमवार को पूजा करने का समय एक जैसा ही रखें।
सोमवार व्रत करने के दौरान दिन में न सोएं
शिवजी को अर्पित किए जाने वाले प्रसाद में नमक नहीं होना चाहिए।
व्रत में नमक का सेवन न करें और केवल एक ही बार भोजन करें
सोलह सोमवार व्रत में आप जो खाएंगे उसे चलते फिरते न खाएं, एक जगह पर बैठकर भोजन ग्रहण करें.
mother kills 3 year old daughter with lover help in rajasthan
मां ने प्रेमी के साथ मिलकर की 3 साल के मासूम की हत्या, पहले बच्ची का गला दबाया, फिर शव को चद्दर में लपेटकर ट्रेन से फेंका | mother kills 3 year old daughter with lover help in rajasthan
श्रीगंगानगर जिले के हिंदुमलकोट थाना क्षेत्र में मंगलवार को करीब तीन साल की बच्ची का शव रेलवे ट्रैक के पास मिला जहाँ एक माँ ने अपनी तीन साल की बेटी की जान ले ली। प्रेमी के साथ मिलकर बेटी की हत्या करने के बाद निर्दयी मां ने उसका शव ट्रेन से फेंक दिया।
मामले में पुलिस ने गुरुवार को खुलासा किया। बच्ची की हत्या उसकी मां ने ही की और फिर प्रेमी के साथ मिलकर उसका शव चादर में बांधकर ट्रेन से फेंक दिया। आरोपियों का इरादा शव नहर में फेंकने का था, लेकिन शव नहर में नहीं गिरकर पुल के पास गिर गया। पुलिस ने आरोपी मां और उसके प्रेमी को गिरफ्तार कर लिया है।
17 जनवरी को हिंदुमलकोट पुलिस को लक्ष्मीनारायण वितरिका के रेलवे ट्रैक के पास एक बच्ची का शव मिला था। आशंका थी की इस शव को ट्रेन से फेंका गया होगा। इस आधार पर पुलिस ने तलाश शुरू की। एसएचओ संजीव कुमार ने बताया कि उन्हें एक दो दिन पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो नजर आया था। इसमें एक बच्ची नजर आ रही थी।
इस बच्ची का चेहरा बिल्कुल मृतक बच्ची जैसा ही होने पर इसी को ध्यान में रखकर तलाश शुरू की गई। वीडियो डालने वाले का पता लगाकर संबंधित बच्ची के रहने की जगह का पता किया तो यह रेलवे स्टेशन के पास शास्त्री बस्ती में मिला। उसकी मां के बारे में पता किया तो वह घर से गायब मिली। इस पर उसकी तलाश कर सख्ती से पूछताछ की तो उसने सच्चाई बता दी।
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प्रेमी के साथ किया मर्डर
पुलिस ने बताया कि यूपी के प्रतापगढ़ की रहने वाली सुनीता (21) अपने प्रेमी सन्नी के साथ शास्त्री बस्ती में रहती थी। पांच बच्चों की मां सुनीता कुछ समय से अपने पति से अलग प्रेमी सन्नी (22) के साथ रह रही थी। उसके तीन बच्चे पति के साथ व दो बेटियां उसके साथ रहते थे। सुनीता और उसका प्रेमी सन्नी कुछ दिनों से दोनों बेटियों को मारने का प्लान कर रहे थे।
पुलिस के अनुसार आरोपी महिला ने 16 जनवरी को एक बच्ची किरण (3) का गला घोंटकर मार दिया। इसके बाद सुनीता और सन्नी उसका शव एक चादर में बांधकर पास ही रेलवे स्टेशन चले गए। वहां रात भर बैठे रहे। सुबह 6:10 बजे दिल्ली जाने वाली ट्रेन में रवाना हुए।
रास्ते में फतूही स्टेशन के पास दोनों ने बच्ची को ट्रेन से फेंका। शव नहर में गिरने के बजाय पुल के पास गिर गया। इसके बाद दोनों अबोहर स्टेशन पर उतरे और वहां से वापस श्रीगंगानगर लौट आए। पुलिस के अनुसार सुनीता और सन्नी की मुलाकात यूपी में हुई थी। वहां सुनीता प्रतापगढ़ जिले के बरगदेई निवासी अपने पति बिंदेश्वरी के साथ रहती थी। इसी दौरान सुनीता और सन्नी की मुलाकात हुई। दोनों में जान पहचान बढ़ी तो सुनीता उसके साथ श्रीगंगानगर आ गई।
शुक्रवार के दिन करें ये 9 आसान उपाय, सुख-समृद्धि से भर जाएगा घर | Shukrawar ke din karen ye upay
दोस्तों शुक्रवार का दिन (Shukrawar ke upay) धन की देवी माता लक्ष्मी जी को समर्पित होता है. शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी के साथ-साथ उनके सभी अवतारों की पूरे विधि-विधान से पूजा होती है. ऐसा करने से माता की खास कृपा प्राप्त होती है और जीवन में कभी भी धन और वैभव की कमी नहीं रहती.
शुक्रवार का दिन शुक्र ग्रह या शुक्रदेव से भी संबंधित माना जाता है. शुक्र गृह का हमारे जीवन में बहुत ही ज्यादा महत्व रहता है. शुक्र ग्रह को भौतिक सुख, सौंदर्य, कला और प्रतिभा का कारक बताया गया है. कहते हैं कि शुक्रवार को विशेष उपाय करने से सरलता से धन लाभ होता है. विशेष स्थितियों में नियमित दान करने से भी रुपए-पैसे की कमी नहीं रहती है. आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में.
शुक्रवार के दिन करें ये उपाय | Shukrawar ke din karen ye upay
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कर्ज से छुटकारा
कर्ज से छुटकारा पाने के लिए शुक्रवार के दिन नीम की एक लकड़ी घर ले आएं. उसे पानी से धोकर साफ कर लें. इसके बाद शीशे के बर्तन में नमक मिला पानी में रख दें. कर्ज से जुड़ी समस्या अपने आप दूर हो जाएगी.
घर में सुख-समृद्धि
मां लक्ष्मी और शुक्र ग्रह कृपा प्राप्त करने के लिए शुक्रवार का व्रत रखना बेहद कारगर उपाय है. इस दिन शुक्र देव का खास मंत्र “ॐ शुं शुक्राय नम:” या “ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहं” का 108 बार जाप करना चाहिए. इससे घर में सुख-समृद्धि आती है.
Shukrawar ke din karen ye upay
घर में साफ-सफाई
माता लक्ष्मी और शुक्रदेव कभी भी गंदगी में वास नहीं करते हैं. इसलिए इनकी कृपा चाहते हैं तो अपना वातावरण शुद्ध रखें और घर में साफ-सफाई पर भी विशेष रूप से ध्यान दें.
नौकरी में पैसा बढ़ाना
शुक्रवार के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे मिठाई और पानी रख दें. इसके बाद वृक्ष की तीन बार परिक्रमा करें. फिर नौकरी में उन्नति की प्रार्थना करें. ये उपाय करने से नौकरी में आ रही धन से जुड़ी समस्या दूर हो जाएगी.
शुक्रवार का दिन सफेद रंग से संबंधित होता है इसलिए इस दिन सफेद रंग का इस्तेमाल करना चाहिए. शुक्रवार के दिन सफेद रंग के वस्त्र पहन कर ही पूजा पाठ करना चाहिए.
इन चीजों का दान
शुक्रवार के दिन सफेद रंग की चीजों का दान जैसे कि चावल, दूध, दही, आटा और मिश्री दान में दे सकते हैं. इसके अलावा शुक्रवार के दिन चींटियों और गाय को आटा खिलाने शुक्र देव की कृपा होती है.
लक्ष्मी जी के साथ विष्णु जी
भगवान विष्णु के बिना मां लक्ष्मी की पूजा अधूरी मानी जाती है.इसलिए शुक्रवार के दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी का साथ में पूजन करना चाहिए. इससे धन-धान्य और वैभव की प्राप्ति होती है.
संपत्ति के लिए उपाय
शुक्रवार को लक्ष्मी मां को गुलाबी फूल की माला अर्पित करें. इसके बाद घी का दीपक जलाकर लक्ष्मी जी की आरती करें. इस दिन बालिकाओं को सफेद मिठाई का दान करें. शुक्रवार के दिन ईशान कोण में गाय के घी का दीया जलाएं. पर बत्ती के रूप में लाल रंग के सूती धागे का दीपक जलाएं. इसका प्रभाव तुरंत दिखने लगेगा.
शुक्रवार के दिन गुलाबी फूल पर बैठी हुई लक्ष्मी जी का चित्र स्थापित करें. इसके बाद मां लक्ष्मी को गुलाब का इत्र अर्पित करें. उसी इत्र को नित्य प्रातः प्रयोग करें और फिर काम पर जाएं. ये उपाय कारोबार से जुड़ी समस्याओं को दूर करेगा. व्यापारिक वर्ग से जुड़े लोगों को भी गुलाब के फूल पर बैठी लक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति अपने कार्य स्थल पर रखनी चाहिए.
रुका हुआ पैसा
शुक्रवार के दिन मिठाई और कपड़ों का दान करना चाहिए. इस दिन जल में थोड़ा सा दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य दें.
पढिये मौनी अमावस्या व्रत की पौराणिक कथा | Mauni Amavasya Vrat Katha
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मौनी अमावस्या के दिन मौन रखकर संयमपूर्वक व्रत किया जाता है, जिससे मुनि पद प्राप्त होता है. इस दिन देवतागण पवित्र संगम में निवास करते हैं, इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है. बता दें कि माह की आखिरी तिथि को अमावस्या पड़ती है. माघ माह में पड़ने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या या फिर माघ अमावस्या के नाम से जाना जाता है.
माना जाता है कि मौनी अमावस्या के दिन दान-पुण्य करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु और पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है. मौनी अमावस्या की कथा में इस पूजा का जवाब छिपा है. आइए जानते हैं मौनी अमावस्या की कथा (Mauni Amavasya Vrat Katha)
एक प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार कांचीपुरी में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी धनवती और सात पुत्रों-एक पुत्री के साथ रहता था. पुत्री का नाम गुणवती था. ब्राह्मण ने अपने सभी पुत्रो की शादी के बाद अपनी पुत्री का वर ढूंढना चाहा. ब्राह्मण ने पुत्री की कुंडली पंडित को दिखाई. कुंडली देख पंडित बोला कि पुत्री के जीवन में बैधव्य दोष है. यानी वो विधवा हो जाएगी. पंडित ने इस दोष के निवारण के लिए एक उपाय बताया.
उन्होंने बताया कि कन्या अलग सोमा (धोबिन) का पूजन करेगी तो यह दोष दूर हो जाएगा. गुणवती को सोमा को अपनी सेवा से खुश करना होगा. ये उपाय जान ब्राह्मण ने अपने छोटे पुत्र और पुत्री को सोमा को लेने भेजा. सोमा सागर पार सिंहल द्वीप पर रहती थी. छोटा पुत्र सागर पार करने की चिंता में एक पेड़ की छाया के नीचे बैठ गया. उस पेड़ पर गिद्ध का परिवार रहता था. शाम होते ही गिद्ध के बच्चों की मां अपने घोसले में वापस आई तो उसे पता चला कि उसके गिद्ध बच्चों ने भोजन नहीं किया.
Mauni Amavasya Vrat Katha
गिद्ध के बच्चे अपनी मां से बोले की पेड़ के नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं. जब तक वो कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे. ये बात सुन गिद्धों की मां उस दो प्राणियों के पास गई और बोली – मैं आपकी इच्छा को जान गई हूं. मैं आपको सुबह सागर पार करा दूंगी. लेकिन उससे पहले कुछ खा लीजिए, मैं आपके लिए भोजन लाती हूं.
दोनों भाई-बहन को अगले दिन सुबह गिद्ध ने सागर पार कराया. दोनों सोमा के घर पहुंचे और बिना कुछ बताए उसकी सेवा करने लगे. उसका घर लीपने लगे. सोमा ने एक दिन अपनी बहुओं से पूछा, कि हमारे घर को रोज़ाना सुबह कौन लीपता है? सबने कहा कि कोई नहीं हम ही घर लीपते-पोतते हैं. लेकिन सोमा को अपने परिवार वालों की बातों का भरोसा नही हुआ.
एक रात को इस रहस्य को जानने के लिए सुबह तक जागी और उसने पता लगा लिया कि ये भाई-बहन उसके घर को लीपते हैं. सोमा ने दोनों से बात की और दोनों ने सोमा को बहन के दोष और निवारण की बात बताई. सोमा ने गुणवती को उस दोष से निवारण का वचन दे दिया, लेकिन गुणवती के भाई ने उन्हें घर आने का आग्रह किया. सोमा ने ना नहीं किया वो दोनों के साथ ब्राह्मण के घर पहुंची.
सोमा ने अपनी बहुओं से कहा कि उसकी अनुपस्थिति में यदि किसी देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट ना करें, मेरा इंतज़ार करें. ये बोलकर वो गुणवती के साथ उसके घर चई गई. गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हुआ. लेकिन सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया. सोमा ने तुरंत अपने पुण्यों का फल गुणवती को दिया. उसका पति तुरंत जीवित हो गया. सोमा ने दोनों को आशार्वाद देकर चली गई. गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जमाता और पति की मृत्यु हो गई.
सोमा ने पुण्य फल को संचित करने के लिए रास्ते में पीपल की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं की और व्रत रखा. परिक्रमा पूर्ण होते ही उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे. निष्काम भाव से सेवा का फल उसे मिला.
कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन अमावस्या के रूप में मनाया जाता है. हर साल माघ मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को मौनी अमावस्या मनाई जाती है. मौनी अमावस्या को स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है. कहते हैं कि मौनी अमावस्या पर पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाने से इंसान के सारे पाप मिट जाते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. mauni amavasya date time muhurat puja vidhi
इस साल मौनी अमावस्या 21 जनवरी दिन शनिवार को मनाई जाएगी. इस बार मौनी अमावस्या बेहद खास रहने वाली है. मौनी अमावस्या पर पूरे 30 साल बाद एक विशिष्ट योग बन रहा है.
इस वर्ष मौनी अमावस्या की तिथि को लेकर लोगों में बहुत कन्फ्यूजन है. कुछ लोग 21 जनवरी तो कुछ 22 जनवरी को मौनी अमावस्या बता रहे हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, मौनी अमावस्या शनिवार, 21 जनवरी को सुबह 06 बजकर 16 मिनट से लेकर अगले दिन रविवार, 22 जनवरी को रात 02 बजकर 22 मिनट तक रहेगी. लेकिन उदया तिथि के कारण मौनी अमावस्या 21 जनवरी को ही मनाई जाएगी.
दान-स्नान का शुभ मुहूर्त
(Mauni Amavasya 2023 Shubh Muhurt)
ज्योतिषविदों की मानें तो 21 जनवरी को सुबह 8 बजकर 33 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 52 मिनट के बीच स्नान और दान-धर्म से जुड़े कार्य करने का शुभ मुहूर्त रहेगा. इस दौरान पवित्र नदी या कुंड में स्नान करने के बाद गरीब और जरूरतमंद लोगों को ठंड से बचने के लिए कम्बल, गुड़ और तिल का दान कर सकते हैं. पवित्र नदी में आस्था की डुबकी लेते समय ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:’ और ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का जाप जरूर करें.
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30 साल बाद खप्पर योग
ज्योतिषविदों का कहना है कि मौनी अमावस्या पर 30 साल बाद खप्पर योग बन रहा है. यह योग धार्मिक कार्यों को संपन्न करने और कुंडली में शनि के शुभ प्रभाव के लिए किए जाने वाले उपायों के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जाता है. शनि हर ढाई साल में राशि परिवर्तन करता है. इस ढाई वर्ष की अवधि में शनि कभी मार्गी तो कभी वक्री अवस्था में चलता है. इस बार शनि ने मौनी अमावस्या से ठीक चार दिन पहले राशि परिवर्तन किया है.
इस वक्त शनि कुंभ राशि में विराजमान हैं और इसी वजह से मौनी अमावस्या एक अद्भुत और दुर्लभ संयोग में पड़ रही है. ज्योतिष गणना के अनुसार, इस वक्त मकर राशि में सूर्य और शुक्र की युति है. साथ ही त्रिकोण की स्थिति खप्पर योग का निर्माण कर रही है. जब भी इस प्रकार की युति बनती है तो अलग-अलग तरह के योग-संयोग बनते हैं. शनि की 30 साल बाद घर वापसी हुई है. इस लिहाज से शनि के मूल त्रिकोण राशि में रहते हुए मौनी अमावस्या का महापर्व पूरे 30 साल बाद मनाया जा रहा है.
मौनी अमावस्या के दिन सवेरे-सवेरे ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें. इसके बाद पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लें. अगर आपके लिए ऐसा करना संभव न हो तो पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें. स्नान करते हुए ‘गंगा च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन संनिधिम कुरु’ मंत्र का जाप करें. इसके बाद श्रीहरि भगवान विष्णु का ध्यान करें और मौन व्रत का संकल्प लें.
मौनी अमावस्या पर व्रत के नियम
Mauni Amavasya 2023 Vrat Niyam
मौनी अमवस्या का व्रत रखने वाले साधक जहां तक संभव हो मौन रहें. मौन व्रत के दौरान मन में उपरोक्त मंत्र का जप करते रहें. इस दिन तुलसी के पौधे की 108 बार परिक्रमा करें. पूजा-पाठ के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को धन, भोजन और वस्त्रों का दान करें. इस दिन गरीब और भूखे लोगों को भोजन अवश्य कराएं. आप अनाज, वस्त्र, तिल, कंबल और घी का दान कर सकते हैं. मौनी अमावस्या के व्रत में गौ दान, स्वर्ण दान या भूमि दान बहुत उत्तम माना जाता है. कहते हैं कि माघ अमावस्या पर पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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दोस्तों शिवरात्रि भगवान शिव और शक्ति के संगम का एक पर्व है. हिन्दू पंचांग के अनुसार हर महीने कृष्ण पक्ष के 14वें दिन यानी चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि (जिसे शिव चतुर्दशी भी कहा जाता है) मनाई जाती है ऐसा माना जाता है की इस दिन भगवान् शिव की उपासना करने से सुख-समृद्धि बनी रहती है.
मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri) कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को तिथि को मनाई जाएगी. इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. ताकि जीवन से कष्टों का अंत और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त हो सके. इस दिन लोग काफी शुभ मानते हैं. इस तरह हर माह आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि या शिव चतुर्दशी (Shiv Chaturdashi Vrat) के नाम से जाना जाता है. इस साल की पहली मासिक शिवरात्रि 20 जनवरी 2023 शुक्रवारको पड़ रही है.
मान्यता है कि इस दिन यदि भगवान शिव और माता पार्वती की विधि विधान से पूजा की जाए तो असंभव कार्य भी कुछ दिनों में संभव हो जाते हैं. साथ ही उनके सभी संकटों को दूर करते हुए मनोकामनाएं पूरी करती है.
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि प्रत्येक माह में पड़ने वाली शिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने से दुख, दरिद्रता और दोष से छुटकारा मिल जाता है और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं मासिक शिवरात्रि के तिथि, पूजन विधि और महत्व के बारे में.
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव को विनाशक भी कहा जाता है इन्हें त्रिदेवों में इन्हें सर्वोच्च स्थान है। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था। और उन्होंने अपनी सभी मनो कामना पूर्ण की थी । इसी प्रचलन के कारण मासिक शिव रात्रि का प्रचलन प्रारम्भ हुआ।
Masik Shivratri Vrat Katha
विषयसूची :
मासिक शिवरात्रि शुभ मुहूर्त | Masik Shivratri Muhurat
मासिक शिवरात्रि पर रात्रि में पूजा करने का विशेष महत्व होता है। इस साल की पहली मासिक शिवरात्रि 20 जनवरी 2023 शुक्रवार को पड़ रही है. मासिक शिवरात्रि का शुभ मुहूर्त 20 जनवरी को रात 11.53 बजे शुरू हो कर 21 जनवरी को 12.47 तक रहेगा .
मासिक शिवरात्रि पूजन विधि | Masik Shivratri Poojan Vidhi
इस दिन सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश, कार्तिकेय और नंदी की पूजा करें।
इस दिन भोलेनाथ का अभिषेक करने से विशेष फल मिलता है अभिषेक के दौरान भगवान शिव की प्रिय चीज़ों का भोग लगाएं और शिव मन्त्रों का जाप करें
भक्त शिवरात्रि की पूरी रात जागकर भगवान शिव की पूजा करते हैं।
इसके बाद शिवजी पर बेलपत्र, धतूरा और श्रीफल चढ़ाएं। और अगरबत्ती, दीपक, फूल और फल के माध्यम से इसकी पूजा करें।
सुनिश्चित करें कि आप शिव पुराण, शिव स्तोय, शिव अष्टक, शिव चालीसा और शिव श्लोक पढ़ें।
इसके बाद शाम को फल खा सकते हैं लेकिन व्रत रखने वालों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
इस व्रत को महिला और पुरुष दोनों कर सकते हैं
अगर विवाह में कोई अड़चन आ रही है तो शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाते वक्त नम शिवाय का जाप करें.
संतान संबंधी कोई भी परेशानी है तो आप शिवरात्रि के दिन आटे से 11 शिवलिंग बनाएं और 11 बार इनका जल अभिषेक करें.
भगवान शिव की पूजा के बाद अगले दिन उपवास समाप्त किया जा सकता है। कहा जाता है कि मासिक शिवरात्रि पर शिव पार्वती की पूजा करने से व्यक्ति सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त हो जाता है।
Masik Shivratri Vrat Katha
मासिक शिवरात्रि की कथा | Masik Shivratri Vrat Katha
जिस तरह से हर व्रत आदि के पीछे कोई न कोई कथा होती है वैसे ही मासिक शिवरात्रि करने के पीछे भी एक कथा है आइये जानते हैं कथा
पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव महा शिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि के समय लिंगम के रूप में स्वयं प्रकट हुए थे। जिसके बाद से सबसे पहले भगवान् ब्रह्मा विष्णु ने उनकी पूजा की थी उस दिन से लेकर आज तक इस दिन को भगवान शिव जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच विवाद हो गया कि उनमें से कौन श्रेष्ठ है।
उस दौरान उनके सामने आग का एक खंभा दिखाई दिया। खंभे की उत्पत्ति और अंत नहीं मिला है, वे दोनों परस्पर सहमत थे कि जो कोई भी खंभे के एक छोर की खोज करता है वह दोनों के बीच सबसे बेहतर होगा। ब्रह्मा ने ऊपर देखने के लिए हंस के रूप में उड़ान भरी, जबकि नीचे देखने के लिए विष्णु ने जमीन के माध्यम से खुदाई करने के लिए एक सूअर का रूप धारण किया।
कई युगों तक प्रयास करने के बावजूद उनमें से कोई भी सफल नहीं हो सका। हालांकि, जब ब्रह्मा ने झूठ बोला कि उन्होंने सबसे ऊपर देखा है, भगवान शिव ने दृश्य में दिखाई दिया और खुलासा किया कि यह वह था जो स्तंभ के रूप में प्रकट हुआ था। अपनी असत्य की सजा के रूप में, भगवान शिव ने कहा कि ब्रह्मा के पास पृथ्वी पर उनके लिए समर्पित मंदिर कभी नहीं होगा। यह शिवरात्रि का दिन था जब भगवान शिव लिंगम के रूप में प्रकट हुए।
11 दिसंबर 2023, सोमवार – मार्गशीर्ष मासिक शिवरात्रि
Masik Shivratri Vrat Katha
मासिक शिवरात्रि का महत्व | Masik Shivratri Mahatva
धार्मिक ग्रंथों में मासिक शिवरात्रि व्रत के महत्व के बारे में बताया गया है. मान्यता है कि इस दिन पूजा, व्रत करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और सारी इच्छाएं पूर्ण होती है. इतना ही नहीं, मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि के दिन पूजा-पाठ करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. शास्त्रों के अनुसार मासिक शिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक भी करने की भी मान्यता है. भगवान को मासिक शविरात्रि का दिन अत्यंत प्रिय होने के कारण भी इसका महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. इस दिन रुद्राभिषेक से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस दिन व्रत करने से वैवाहिक जीवन की समस्याओं से निजात पाया जा सकता है.
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हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है और उनकी कृपा से तमाम मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. गुरुवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष कहा जाता है. इस माह का प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) आज 19 जनवरी 2023 दिन गुरुवार को है. माघ मास के गुरु प्रदोष व्रत की महिमा और महत्व बहुत खास होता है. प्रदोष व्रत रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, दुख, कष्ट, पाप, दारिद्रय आदि दूर होता है, सुख, संतान, आरोग्य, धन, संपत्ति आदि की प्राप्ति होती है.
त्रयोदशी तिथि 19 जनवरी को दोपहर करीब 1 बजकर 18 मिनट से शुरू होकर 20 जनवरी को सुबह करीब 9 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी. गुरु प्रदोष व्रत 19 जनवरी दिन गुरुवार को मनाया जाएगा.
गुरु प्रदोष 2023 पूजा मुहूर्त (Guru Pradosh Vrat Muhurat)
19 जनवरी के गुरु प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 49 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 30 मिनट तक रहेगा.
प्रदोष व्रत एवं पूजा विधि (Guru Pradosh Pooja Vidhi)
प्रदोष व्रत से पूर्व तामसिक वस्तुओं का सेवन बंद कर दें. द्वादशी को शाकाहारी भोजन करें.
त्रयोदशी यानी प्रदोष व्रत के प्रात: स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनें. फिर हाथ में जल, अक्षत् एवं फूल लेकर व्रत एवं पूजा का संकल्प करें.
दिन में आप दैनिक पूजन कर लें और फलाहार करते हुए व्रत रखें.
शाम के समय में प्रदोष मुहूर्त में किसी शिव मंदिर में जाएं या फिर घर पर ही शिवलिंग की पूजा करें.
सबसे पहले गंगाजल से भगवान शिव का जलाभिषेक करें. उसके बाद शिव जी का श्रृंगार करें. महादेव को सफेद चंदन, शहद, फूल, अक्षत्, धूप, दीप, गंध, बेलपत्र, भांग, मदार पुष्प, धतूरा आदि चढ़ाएं.
पूजा की सामग्री चढ़ाते समय ओम नम: शिवाय का जाप करते रहें. इसके पश्चात शिव चालीसा, शिव मंत्र का जाप करें. फिर गुरु प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें.
पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती करके क्षमा प्रार्थना करें और मनोकामना व्यक्त कर दें.
उसके बाद प्रसाद वितरण करें. किसी ब्राह्मण को अन्न, फल, मिठाई दानकर कुछ दक्षिणा देकर विदा करें. उसके पश्चात पारण करके व्रत को पूरा करें.
Guru Pradosh Vrat Muhurat Katha Poojan Vidhi
गुरु प्रदोष व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat katha)
स्कंद पुराण के एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी रोज अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती। ऐसे ही एक दिन वह जब भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे एक अत्यंत सुन्दर बालक दिखा। वह बालक उदास था और अकेला बैठा हुआ था। वह विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। हालांकि, ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है। एक युद्ध में शत्रुओं ने धर्मगुप्त के पिता को मार दिया था और उसका राज्य हड़प लिया था। इसके बाद उसकी माता की भी मृत्यु हो गई।
ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और अच्छे से उसका पालन-पोषण किया। कुछ समय बाद ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देव मंदिर गई। यहीं उनकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई। ऋषि ने बताया कि जो बालक मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है। यह सुनकर महिला उदास हो गई। महिला की उदासी को देखकर ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि की आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।
दोनों बालक कुछ दिनों बाद जब बड़े हुए तो वन में घूमने निकले गये। वहां उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त ‘अंशुमती’ नाम की गंधर्व कन्या पर मोहित हो गया। कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता को पता चला कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। इसके बाद भगवान शिव की आज्ञा और आशीर्वाद से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से करा दिया। राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर फिर से अपना शासन स्थापित किया।
मान्यता है कि ऐसा ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंद पुराण के अनुसार जो कोई प्रदोष व्रत करता है और इसकी कथा सुनता या पढ़ता है उसकी तमाम समस्याएं दूर होती हैं।
षटतिला एकादशी 2023 पर बन रहे हैं शुभ योग, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और तिल का महत्व
Shattila Ekadashi muhurat puja vidhi katha mahatva : हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत ही महत्व है. माघ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है. इसे माघ एकादशी भी कहा जाता है. इस साल 18 जनवरी, बुधवार को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा. इस दिन भगवान विष्णु की कथा सुनने का विधान भी बताया गया है.
इस एकादशी का व्रत करने से मानसिक और शारीरिक हर तरह के पाप से मुक्ति मिलती है. इसके अलावा जो कोई भी इंसान षटतिला एकादशी का व्रत करता है उनके घर में सुख शांति का वास होता है और ऐसे इंसान को भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है.
माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी आरंभ– 17 जनवरी 2023, मंगलवार शाम 6 बजकर 5 मिनट पर एकादशी तिथि समाप्त– 18 जनवरी 2023, बुधवार शाम 4 बजकर 3 मिनट पर उदया तिथि के हिसाब से 18 जनवरी 2023 को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा वृद्धि योग– 18 जनवरी को सुबह 5 बजकर 58 मिनट से 19 जनवरी सुबह 2 बजकर 47 मिनट तक अमृतसिद्धि योग– 18 जनवरी को सुबह 07:02 से 18 जनवरी शाम 05:22 तक सर्वार्थ सिद्धि योग – 18 जनवरी सुबह 07:02 से 18 जनवरी शाम 05:22 तक षटतिला एकादशी व्रत का पारण – 19 जनवरी को सूर्योदय के बाद किसी भी समय किया जा सकता है
षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि मकर संक्रांति की तरह षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करना शुभ माना जाता है। इस दिन तिल का दान देने से मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही व्यक्ति को हर कष्ट से छुटकारा मिल जाता है और मां लक्ष्मी की कृपा से कभी भी धन की कमी नहीं होती है।
इस दिन तिल का 6 तरीके से प्रयोग किए जाने पर ही इस दिन को षटतिला एकादशी कहा जाता है. जैसे तिल से स्नान करना, इसका उबटन लगाना, तिल से हवन और तर्पण करना, भोजन में तिल का इस्तेमाल करना और तिल दान करना.
षटतिला एकादशी के दिन दान करना बहुत शुभ माना जाता है. दान करने से भगवान विष्णु की कृपा होती हैं. भगवान विष्णु को पीला रंग बहुत पसंद है. इसलिए इस दिन भगवान विष्णु को पीले रंग का फूल चढ़ाना चाहिए. उन्हें पीले रंग के ही कपड़े अर्पित करें और पीली मिठाई का भोग लगाएं. पूजा के बाद इन चीजों को किसी ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान कर दें.
षटतिला एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद भगवान विष्णु का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु की पूजा आरंभ करें। जल अर्पित करने के बाद पीले फूल, माला, पीला चंदन, अक्षत आदि चढ़ाएं। इसके साथ ही भोग में मिठाई के साथ तिल, उड़द की दाल के साथ बनी खिचड़ी चढ़ाएं। इसके बाद जल अर्पित करें। अब घी का दीपक और धूप जलाकर विधिवत आरती के साथ मंत्र, चालीसा और एकादशी की कथा का पाठ करें। अंत में विधिवत आरती करके भूल चूक के लिए माफी मांग लें। दिनभर व्रत रहने साथ रातभर भजन कीर्तन करें। रात के समय तिल से 108 बार ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा’ मंत्र का जाप करते हुए हवन करें। दूसरे दिन नियमित स्नान आदि के बाद पूजा करें और इसके बाद ही व्रत का पारण करें।
षटतिला एकादशी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें पुष्प, धूप अर्पित कर व्रत का संकल्प लें. इस दिन भगवान विष्णु की पुजा करनी चाहिए. अगले दिन द्वादशी पर सुबह उठकर स्नान करें और भगवान विष्णु को भोग लगाएं. इसके बाद पंडितों को भोजन कराएं और पारण करें. धर्म शास्त्रों के अनुसार षटतिला एकादशी व्रत रखने से व्यक्ति को धन और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.
इस दिन पुष्य नक्षत्र में गोबर,कपास, तिल मिलाकर उपले बनाएं और इससे 108 बार हवन करें. एकादशी के दिन उपवास और हवन करें. रात्रि जागरण कर भगवान का भजन और ध्यान करें. एकादशी के दिन भगवान विष्णु को मिठाई, नारियल, और सुपारी सहित अर्घ्य देकर स्तुति करें. अगले दिन धूप, दीप नैवेद्य से भगवान विष्णु की पूजा कर खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मौनी अमावस्या के दिन स्नान, दान, जप और तप करने से सभी दु:ख-तकलीफें दूर हो जाती हैं। क्योंकि यह माघ मास का पवित्र दिन है। माघ मास पर सभी देवी-देवताओं की कृपा रहती है और अपने भक्तों की हर समस्या का समाधान करते हैं। तंत्रशास्त्र में मौनी अमावस्या के दिन कुछ टोटके (Mauni Amavasya Totke) बताए गए हैं।
इन टोटकों के करने से ना केवल धन संबंधित समस्याएं खत्म होती हैं बल्कि जीवन में प्रगति की एक नई दिशा मिलती है। ये टोटके बहुत सरल हैं और इनसे किसी को कोई परेशानी भी नहीं होती, हालांकि कुछ जरूरी चीजों का ध्यान रखना होता है। तंत्रशास्त्र के ये टोटके आपकी सभी समस्या से मुक्ति दिला सकते हैं। आइए जानते हैं मौनी अमावस्या पर किए जाने वाले कुछ टोटके के बारे में…
तंत्रशास्त्र के अनुसार, मौनी अमावस्या की रात 5 लाल फूल और 5 ही दीये को बहती नदी में अपनी मनोकामना बताते हुए प्रवाहित कर दें। ध्यान रहे कि ऐसा करते समय कोई आपको देखे ना। इसके अलावा रात के समय रोटी पर सरसों का तेल लगाकर काले कुत्ते को रोटी खिला दें। इस टोटके से धन लाभ के योग बनना शुरू हो जाते हैं और करियर में आने वाली बाधा दूर हो जाती हैं।
पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए
पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए इस दिन पितरों का ध्यान करते हुए सूर्य देव को जल अर्पित करें. पितृ दोष निवारण के लिए लोटे में जल लें और इसमें लाल फूल और सा काले तिल डालें. इसके बाद अपने पितरों की शांति की प्रार्थना करते हुए सूर्य देव को ये जल अर्पित करें. पीपल के पेड़ पर सफेद रंग की कोई मिठाई चढ़ाएं और उस पेड़ की 108 बार परिक्रमा करें. मौनी अमावस्या के दिन किसी जरूरतमंद व्यक्ति को तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, कंबल और वस्त्र जैसी चीजें जरूर दान करें. ऐसा करने से आपको पुण्य मिलेगा.
Mauni Amavasya Totke
रोजगार प्राप्ति के लिए
रोजगार प्राप्ति के लिए मौनी अमावस्या के दिन एक साफ नींबू को सुबह से ही घर के मंदिर में रख दें। फिर रात के समय नींबू को सात बार बेरोजगार व्यक्ति के ऊपर से वार लें। इसके बाद नींबू के चार बराबर हिस्सों में काट लें और फिर चौराहे पर जाकर चारों दिशाओं में फेंक दें। ऐसा करने से रोजगार मिलने की प्रबल संभावनाएं बन रही हैं।
समस्याओं से मुक्ति के लिए
अगर आपके जीवन में कोई न कोई परेशानी बनी रहती है तो तंत्रशास्त्र का यह टोटका आपको सभी समस्याओं से मुक्ति दिला सकता है। इसके लिए आप मौनी अमावस्या के दिन एक तांबे के पात्र में साफ जल भकर लाल चंदन मिला लें। फिर इसको रात को सिरहाने रखकर सो जाएं। इसके बाद जल को सुबह स्नान-ध्यान करने के बाद तुलसी के पौधे में डाल दें, ऐसा करने से धीरे-धीरे परेशानियां दूर होने लगेंगी। ऐसा लगातार आप 21 दिन तक करते रहें।
समाज में मान-सम्मान और धन प्राप्ति के लिए आप इस पवित्र दिन पर आप उस पेड़ की टहनी तोड़कर लाएं, जिस पर चमगादड़ बैठता हो। इसके टहनी को ड्रॉइंग रूम में रख दें। ऐसा करने से कार्यों में सफलता मिलेगी और आपका सामाजिक दायरा भी बढ़ेगा।
सफलता के लिए
मौनी अमावस्या के दिन जरूरी कार्य से आप बाहर जा रहे हों तो एक नींबू लें और उस पर चार लौंग गाड़ दें। फिर ओम श्री हनुमते नम: का 21 बार जप करें और ईश्वर से सफलता के लिए आशीर्वाद मांगे। इसके बाद लौंगे लगे नींबू को अपने साथ ले जाएं। आपका काम निश्चित ही बन जाएगा और उसमें सफलता भी मिलेगी। वहीं आप साथ में मोर पंख भी रख सकते हैं।
Mauni Amavasya Totke
पारिवारिक शांति के लिए
पारिवारिक सुख-शांति के लिए इस पवित्र दिन पर पीपल के वृक्ष के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए कामना करें। इसके बाद कौए को भोजन का थोड़ा सा अंश खिलाएं, इसे आप हर रोज भी कर सकते हैं। ऐसा करने से पारिवारिक सुखों में वृद्धि होती है और आपसी प्रेम बना रहता है। साथ ही हफ्ते में कम से कम एक दिन नमक मिश्रित जल से घर में पोंछा लगाएं।
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साल का पहला बड़ा त्यौहार मकर संक्रांति को माना जाता है। इस साल 2023 में मकर संक्रांति का पर्व 14 नहीं बल्कि 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। इस दिन स्नान दान के साथ सूर्यदेव की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि अगर किसी जातक की कुंडली में सूर्य की स्थिति कमजोर है, तो वह मकर संक्रांति के दिन कुछ खास उपाय अपना सकता है। आइए जानते हैं कि मकर संक्रांति के दिन किन उपायों को करना शुभ होगा-
मकर संक्रांति के दिन करें ये खास उपाय | Makar Sankranti Upay
मकर संक्रांति के दिन स्नान करने के पानी में काले तिल डालें. तिल के पानी से स्नान करना बेहद ही शुभ माना जाता है. साथ ही ऐसा करने वाले व्यक्ति को रोग से मुक्ति मिलती है.
मकर संक्रांति के दिन स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें और सूर्य देव को चढ़ाए जाने वाले जल में तिल अवश्य डालें. ऐसा करने से इंसान की बंद किस्मत के दरवाज़े खुलते हैं.
इस दिन कंबल, गर्म कपड़े, घी, दाल चावल की खिचड़ी और तिल का दान करने से गलती से भी हुए पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख समृद्धि आती है.
मकर संक्रांति के दिन विधिवत पूजा करने के साथ हवन जरूर करें। इसके साथ ही हवन में तिल से आहुति जरूर दें। ऐसा करने से दुर्भाग्य से छुटकारा मिल जाएगा।
मकर संक्रांति के दिन तिल के उबटन को लगाकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने रोग, दोष और भय से छुटकारा मिल जाता है और सूर्यदेव की कृपा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इस दिन पितरों की शांति के लिए जल देते समय उसमें तिल अवश्य डालें. ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
अगर आर्थिक रूप से कोई समस्या आ रही है तो इस दिन घर में सूर्य यंत्र की स्थापना करें और सूर्य मंत्र का 501 बार जाप करें.
कुंडली में मौजूद किसी भी तरह का सूर्य दोष को कम करने के लिए तांबे का सिक्का या तांबे का चौकोर टुकड़ा बहते जल में प्रवाहित करें.
Makar Sankranti Snan Daan Shubh Muhurat : हर बार की तरह इस बार भी मकर संक्रांति की तारीख को लेकर लोगों में भ्रम है। ज्योतिषविदों के अनुसार 14 जनवरी, शनिवार को सूर्य, मकर राशि में रात 8.45 बजे प्रवेश करेंगे। और सूर्यास्त का समय शाम को 5.41 बजे होगा। ऐसी स्थिति को लेकर लोग भ्रमित हैं। सूर्यास्त के बाद सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहा है तो क्या अगले दिन मकर सक्रांति मनाई जाएगी धर्म शास्त्रों के अनुसार अगर सूर्य मकर राशि में प्रदोष काल के समय अथवा मध्य रात्रि के समय प्रवेश करता है तो अगले दिन मकर सक्रांति मनानी चाहिए।
यह पर्व हिन्दू धर्म के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं. इस दिन मकर राशि में सूर्य प्रवेश कर जाते हैं और इसलिए ही इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. बहुत सी जगहों पर इसे खिचड़ी और उत्तरायण भी कहते हैं. मकर संक्रांति पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं का मेला विभिन्न नदियों के घाटों पर लगता है. इस शुभ दिन तिल खिचड़ी का दान करते हैं.
उदयातिथि के अनुसार, मकर संक्रांति इस बार 15 जनवरी 2023 दिन रविवार को मनाई जाएगी. मकर संक्रांति की शुरुआत 14 जनवरी 2023 को रात 08 बजकर 43 मिनट पर होगी. मकर संक्रांति का पुण्य काल मुहूर्त 15 जनवरी को सुबह 06 बजकर 47 मिनट पर शुरू होगा और इसका समापन शाम 05 बजकर 40 मिनट पर होगा. वहीं, महापुण्य काल सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 06 मिनट तक रहेगा. मकर संक्रांति के दिन पुण्य और महापुण्य काल में स्नान और दान करना चाहिए.
Makar Sankranti Snan Daan Shubh Muhurat
मकर संक्रांति स्नान के लिए शुभ समय
Makar Sankranti Snan Daan Shubh Muhurat
14 जनवरी की रात सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं. उसके बाद 15 जनवरी को सुबह से स्नान दान प्रारंभ हो जाएगा. मकर संक्रांति के दिन स्नान के लिए महा पुण्यकाल सुबह 07 बजकर 17 मिनट से सुबह 09 बजकर 04 मिनट तक है. इस महा पुण्यकाल में सभी को स्नान कर लेना चाहिए.
मकर संक्रांति पर महा पुण्यकाल के समय नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल और काला तिल मिला लें। फिर स्नान करते हुए इन दो मंत्रों में से किसी भी एक का उच्चारण करके स्नान प्रारंभ करें। गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति।नर्मदे सिन्धु कावेरी जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।। ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि:।।
लोहड़ी का त्योहार, मकर संक्रांति से ठीक पहले आता है और पंजाब और हरियाणा के लोग इसे बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं. त्योहार पर हर जगह रौनक देखने को मिलती है. लोहड़ी के दिन अग्नि में तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाने का रिवाज होता है. देशभर में 13 जनवरी को लोहड़ी का त्योहार मनाया जाएगा. Lohri Festival 2023
लोहड़ी का त्यौहार, मकर संक्रांति से पहले वाली रात को सूर्यास्त के बाद मनाया जाता है यह पर्व दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में लोहड़ी की अग्नि जलाई जाती है लोहड़ी के दिन गाये जाने वाले गीत सुन्दरी-मुन्दरी होए, दुल्ला भट्टी वाला होए लोकगीत को इसकी कहानी के साथ जोड़ा गया है
लोहड़ी को सांस्कृतिक रूप से मनाया जाता है जैसा कि लोहड़ी शब्द ल (लकड़ी), ओह (सूखे उपले) और ड़ी (रेवड़ी) से लिया गया है लोहड़ी के अवसर पर विवाहित पुत्रियों को मां के घर से वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी भेजा जाता है त्यौहार के 20 दिन पहले ही बालक-बालिकाएं, लोकगीत गाकर लकड़ी व उपले इकट्ठे करने शुरू कर देती है इकट्ठी सामग्री को खुले स्थान पर दहन यानी आग लगाईं जाती है फिर मुहल्ले के सभी लोग अग्नि के चारों तरफ परिक्रमा करते हैं और मूंगफली, रेवड़ियां अग्नि में डालते हैं
Lohri Festival
लोहड़ी को मोहमाया या महामाई के नाम से भी पुकारा जाता है इस त्यौहार की एक रीति है कि बच्चे लोहड़ी के दिन या उससे दो दिन पहले, घरों में जाकर या आते-जाते पथिकों से पैसे मांगते हैं हालांकि ये सभी शहरों में देखा नहीं जाता है इस तरह से लोहड़ी की त्यौहार को मिठास और शांति के साथ प्रत्येक जनवरी माह की 13 तारीख को पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है
कैसे मनाते हैं लोहड़ी
पारंपरिक तौर पर लोहड़ी फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा एक विशेष त्यौहार है.
इस दिन चौराहों पर लोहड़ी जलाई जाती है और पुरुष आग के पास भांगड़ा करते हैं, वहीं महिलाएं गिद्दा करती हैं.
शाम के वक्त लोग एक जगह पर इकट्ठे होकर लकड़ियों व उपलों को इकट्ठा कर छोटा सा ढेर बनाकर आग जलाते हैं।
इसके चारों ओर चक्कर काटते हुए लोग नाचते-गाते हैं
रेवड़ी, गजक, मूंगफली, खील, मक्के के दानों की आहुति देते हैं।
उसके बाद गले मिलकर एक दूसरे को बधाई दी जाती है और ढोल की थाप पर सब मिलकर भांगड़ा करते हैं।
सभी लोगों में लोहड़ी यानि मक्का,गजक तिल गुड़ के पकवान बांटे और खाएं जाते हैं।
कई जगहों पर लोहड़ी को तिलोड़ी भी कहा जाता है.
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दुल्ला भट्टी की कहानी
लोहड़ी के दिन अलाव जलाकर उसके इर्द-गिर्द डांस किया जाता है. इसके साथ ही इस दिन आग के पास घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनी जाती है. लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने का खास महत्व होता है. मान्यता है कि मुगल काल में अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स पंजाब में रहता था. उस समय कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचा करते थे, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी. कहते हैं तभी से हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनाने की पंरापरा चली आ रही है.
Lohri Festival 2022
न्यूली वेड कपल के लिए खास
लोहड़ी का पर्व न्यूली वेड कपल यानी नवविवाहित जोड़े के लिए तो और भी ज्यादा खास होता है. जिन महिलाओं की हाल-फिलहाल शादी हुई है, लोहड़ी की रात वह एक बार फिर दुल्हन की तरह सजती-संवरती हैं. इसके बाद परिवार सहित लोहड़ी के पर्व में शामिल होती हैं और लोहड़ी की परिक्रमा करती हैं. अंतत: खुशहाल जीवन के लिए बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं.
रेवड़ी और मूंगफली जलाने का महत्व
बुरी नजर से बचते है बच्चे –
लोहड़ी की आग में गजक और रेवड़ी को अर्पित करना बहुत ही शुभ माना जाता है। होलिका दहन की तरह उपलों और लकड़ियों के ढेर बना कर उसका दहन किया जाता है। माना जाता है इसके आस-पास बच्चों को लेकर चक्कर लगाने से वह स्वस्थ रहते है और बुरी नजर से बचे रहते है।
Lohri Festival 2022
घर में न हो अन्न और धन की कमी –
हिंदू शास्त्रों के अनुसार अग्नि में समर्पित की जाने वाली चीजें सीधे भगवान तक पहुंचती है। इसलिए इस पवित्र अग्नि में लोहड़ी के दिन रेवड़ी, तिल, मूंगफली,गुड़, गजक डाली जाती है ताकि वह सूर्य और अग्नि देव के प्रति आभार प्रकट सके। उनसे प्रार्थना की जाती है सारा साल कृषि में उन्नति हो और उनके घर में धन और अन्न की कभी कमी न हो।