गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में हर मां-बाप यही चाहते हैं कि उनका बच्चा सर्वश्रेष्ठ हो। वो हर विधा में निपुण हो। असफलता जैसा शब्द उसके दिल और दिमाग को छू भी नहीं पाए, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपका बच्चा धीरे-धीरे एक ऐसे एडिक्शन में फंसता जा रहा है, जो उसे उसके नैसर्गिक विकास से दूर कर रहा है और जहर की तरह उसके दिल और दिमाग में घुला जा रहा है।
Negative Effects of Cell Phones
हम यहां बात कर रहे हैं स्मार्ट फोन और टैबलेट्स की, जो आज लगभग हर बच्चे की दिनचर्या का हिस्सा बन गए हैं। आधुनिक मां-बाप सोच रहे हैं कम उम्र में मोबाइल के की-पेड पर अठखेलियां करता उनकी आंखों का तारा दूसरे बच्चों से जल्दी स्मार्ट बन रहा है, लेकिन हकीकत कुछ और है। धीरे-धीरे टेक्नोलाॅजी का यह एडिक्शन बच्चे का नैसर्गिक विकास रोक देता है और वह असामान्य होता चला जाता है।
इस विषय पर अनेक शोध किए गए हैं, जिनसे पता चला है कि टेक्नोलाॅजी का समय से पहले उपयोग हमारे बच्चों को फायदा पहुंचाने के बजाय बड़ा नुकसान पहुंचा रहा है। बावजूद इसके माता-पिता अपने बच्चों को स्मार्ट गैजेटस का बेरोकटोक उपयोग करने दे रहे हैं। एक शोध के अनुसार स्मार्ट फोन का प्रभाव बच्चों पर बड़ों की तुलना में चार से पांच गुना अधिक होता है। इससे उनके सीखने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। साथ ही उनके स्वाभाविक विकास में कई तरह के डिसआर्डर पैदा हो जाते हैं, जो उन्हें जीवनभर परेशान कर सकते हैं। मोबाइल का बेजा उपयोग किस तरह आपके बच्चे के जीवन को बदल रहा है।
शारीरिक विकास थमने की शुरूआत :
मोबाइल का उपयोग बच्चे के सीखने के तरीकों में बदलाव लाता है और उसकी एकाग्रता को प्रभावित करता है। धीरे-धीरे बच्चों की आंखें खराब होने लगती हैं और वे अनुशासन की प्रक्रिया से बाहर हो जाते हैं। ऐसे बच्चों की दिनचर्या असामान्य होने लगती है और वे हायपर एक्टीविटी के शिकार हो जाते हैं, क्योंकि दो साल का होने तक बच्चों का दिमाग आकार में लगभग तीन गुना तक हो जाता है और 21 साल का होने तक इसमें शारीरिक परिवर्तन होते हैं। तकनीक का अधिक उपयोग बच्चों के खेलने-कूदने की गतिविधियों को सीमित कर देता है। नतीजन उनका शारीरिक विकास थम जाता है या कम हो जाता है। एक अध्ययन के मुताबिक स्मार्ट फोन या अन्य तकनीक के ज्यादा इस्तेमाल के कारण स्कूल जाने वाले तीन बच्चों में से एक बच्चे का शारीरिक विकास कम पाया जा रहा है।
स्किल डवलपमेंट में बड़ी बाधा :
यह स्पष्ट धारणा है कि बच्चा जैसा देखेगा, वैसा ही सीखेगा और वैसा ही करेगा। यही उसके कौशल विकास की शुरूआत होती है। वह अपने आस-पास जिस तरह के वातावरण में रहता है, वैसे ही चीजें सीखता है, लेकिन मोबाइल का उपयोग उसके कौशल विकास को रोक देता है, क्योंकि जब बच्चा फिजिकल एक्टीविटी करता है तो वह सीखने के दौर से गुजरता है और उसमें नई स्किल्स डवलप होती हैं। 12 साल से कम उम्र के बच्चों में मोबाइल का एडिक्शन उनके कौशल विकास पर विपरीत असर डालता है।
लाइफ स्टाइल से जुड़ी बीमारियों का खतरा :
जो बच्चे स्मार्ट फोन, टैबलेट्स और कम्प्यूटर का ज्यादा उपयोग करते हैं, उनका वजन बढ़ने का खतरा 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है और धीरे-धीरे ये बच्चे लाइफ स्टाइल से जुड़ी बीमारियों जैसे डायबिटीज, हायपरटेंशन आदि से ग्रसित हो जाते हैं। बडे़ होने पर उन्हें लकवे और दिल के दौरे जैसी जानलेवा बीमारियों से भी गुजरना पड़ सकता है। एक शोध के मुताबिक 21वीं सदी में पैदा हुए बच्चों की उम्र उनके माता-पिता से कम हो जाएगी।
नींद में दखल :
मोबाइल का उपयोग बच्चों की नींद छीन रहा है। उनके सोने के घंटे लगातार कम होते जा रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक करीब 60 फीसदी माता-पिता अपने बच्चों द्वारा स्मार्ट फोन के उपयोग पर कोई निगरानी नहीं रखते और बच्चे देर रात तक अपने बैडरूम में मोबाइल पर समय बिताते हैं। नतीजन वे शरीर के लिए आवश्यक नींद भी नहीं ले पाते हैं।
बढ़ रहे मानसिक विकार :
टैक्निकल गैजेट्स का उपयोग बच्चों में मानसिक विकार का बड़ा कारण है। इसके अनियंत्रित उपयोग से बच्चों में डिप्रेशन, बैचेनी, उन्माद, व्यवहार परिवर्तन, साइक्लाॅजिकल डिसआॅर्डर, एकाग्रता में कमी जैसी मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं।
हिंसक हो रहे नन्हे-मुन्ने :
फिजिकल डिसआॅर्डर ही नहीं मोबाइल का उपयोग बच्चों को हिंसक भी बना रहा है। वे विभिन्न वेबसाइट्स के माध्यम से ऐसे वीडियोज देख रहे हैं, जिनमें लैंगिक हिंसा, बलात्कार सहित कई अवांछित गतिविधियां दिखाई जाती हैं। बच्चे भी इन गतिविधियों को दोहराने का प्रयास करते हैं। उल्लेखनीय है कि मीडिया में दिखाई जाने वाली हिंसा को अमेरिका सार्वजनिक स्वास्थ्य की दृष्टि से जोखिम की श्रेणी में रखता है, लेकिन अनेक देशों में ऐसी कोई व्यवस्था फिलहाल नहीं है।
मेमोरी हो सकती है वीक :
मोबाइलों पर चलने वाले हाई स्पीड मीडिया कंटेंट से बच्चों की याद रखने की क्षमता पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ता है। ना तो वे किसी एक चीज पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं और न ही इतने फैक्ट्स को याद रख पाते हैं। धीरे-धीरे वे कन्फ्यूजन की समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं, जो उनकी याददाश्त पर बुरा असर डालती है।
पारिवारिक लगाव होता है कम :
बच्चे मोबाइल और अन्य तकनीकी गैजेटस के उपयोग में इस कदर खो जाते हैं कि धीरे-धीरे उनको इनकी लत लग जाती है। ऐसे में वे माता-पिता, दादा-दादी और अन्य रिश्तेदारों के साथ वक्त बिताना बंद कर देते हैं। ऐसा करने से उनमें एकाकी प्रवृति जन्म ले लेती है और वे किसी भी निर्णय के बारे में घर वालों से बात करते हुए हिचकते हैं।
सबसे ज्यादा आंखों को खतरा :
पलक झपकाए बिना घंटों मोबाइल से चिपके रहने वाले बच्चों की आंखों पर सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ता है। इससे उनका विजन खराब होने लगता है। इतना ही नहीं इससे निकलने वाला रेडिएशन कैंसर का भी कारण होता है।
ऐसे बचाएं मोबाइल के खतरों से :
- बच्चों को कम उम्र में ही मोबाइल देने से बचें। माता-पिता रोते बच्चे को चुप करने या उन्हें बहलाने के लिए प्रायः मोबाइल हाथ में थमा देते हैं और यहीं से बच्चे को मोबाइल देखने की आदत की शुरूआत होती है। अभिभावक पहला प्रयास यही करें कि बच्चे को एक उम्र तक मोबाइल ही ना दें।
- बच्चों को खेल-कूद और फिजिकल एक्टीविटी की तरफ मोडें़। इन गतिविधियों से बच्चों को नए दोस्त मिलेंगे और धीरे-धीरे वे मोबाइल से दूर हो जाएंगे। इससे उनका शारीरिक विकास भी बेहतर होगा।
- आमतौर पर हम देखते हैं कि पेरेन्ट्स बच्चों से ऐसे वादे करते हैं कि वे ऐसा करेंगे तो उन्हें वे स्मार्ट फोन पर गेम खेलने देंगे या पाॅइम देखने देंगे। बच्चों से ऐसे वादे करने से बचें।
- बच्चे मोबाइल की जिद करें तो उन्हें मारे-पीटे नहीं बल्कि उनके साथ समय बिताएं। उन्हें पार्क या अन्य किसी स्थान पर ले जाकर उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ने का प्रयास करें।
- बच्चों को मनोरंजन के ऐसे दूसरे विकल्प उपलब्ध करवाएं, जो उनकी मानसिक योग्यता बढाएं, उनकी स्किल डवलप करें।