हेल्लो दोस्तों मैं हूँ आकांक्षा और स्वागत करती हूँ आप सभी का आपकी अपनी वेबसाइट aakrati.in पर ! आज एस्ट्रोलॉजी सेक्शन में मैं बताने वाली हूँ शादी से पहले आखिर क्यों मिलाई जाती है कुंडली. भारत ही नहीं दुनियाभर में लोग भविष्य को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। दुनियाभर में इसके लिए कई विधाएं चलन में हैं। मगर भारत की बात हो तो अधिकांश लोग कुंडली पर विश्वास करते हैं। Shadi Ke Pehle Aakhir Kyon Milaate Hain Kundli
भविष्य की बात जाननी हो, विद्या का पता करना हो, जातक के व्यक्तित्व का पता करना हो, या शादी के लिए पति-पत्नी के भविष्य में संबंध की जानकारी करनी हो, लोग कुंडली पर विश्वास करते हैं। दरअसल, किसी जातक की कुंडली उसके जन्म के समय आकाश में ग्रह एवं नक्षत्रों का नक्शा होता है। इसके आधार पर ही किसी व्यक्ति का स्वभाव, शिक्षा और वैवाहिक जीवन का पता चलता है।
भारत में शादी सिर्फ इस जन्म तक का बंधन नहीं होती है। इसे सात जन्मों का संबंध माना जाता है। लिहाजा दो लोगों के संबंध भविष्य में कैसे रहेंगे, इसे जांचने के लिए कुंडली मिलान किया जाता है। यह पूरी तरह से विज्ञान और गणनाओं पर आधारित शास्त्र है।
दुल्हन और दुल्हन के जन्म कुंडली के मिलान में गुण और भकुट मिलान किया जाता है। कुंडली में ग्रहों की स्थिति के आधार पर यह भी बता सकती है कि क्या शादी के बाद जातक और उसकी पत्नी के रिश्ते में भविष्य में समस्याएं होंगी या वह अच्छा चलेगा।
कुंडली के सही अध्ययन से किसी भी व्यक्ति के सभी गुण-दोष जाने जा सकते हैं। कुंडली में स्थित ग्रहों के आधार पर ही हमारा व्यवहार, आचार-विचार आदि निर्मित होते हैं। उनके भविष्य से जुड़ी बातों की जानकारी प्राप्त की जाती है।
कुंडली से ही पता लगाया जाता है कि वर-वधू दोनों भविष्य में एक-दूसरे की सफलता के लिए सहयोगी सिद्ध या नहीं। वर-वधू की कुंडली मिलाने से दोनों के एक साथ भविष्य की संभावित जानकारी प्राप्त हो जाती है इसलिए विवाह से पहले कुंडली मिलान किया जाता है।
क्या आपको भी “कुंडली” मिलाने में विश्वास है? क्या आपको भी लगता है कि यदि कुंडली नहीं मिली तो संबंधित पति-पत्नी का दाम्पत्य जीवन सुखी और स्थायी नहीं रहेगा? तो आइए, हम थोड़ा इस कुंडली मिलान पर चर्चा करते है।
इतिहास :
पहले के जमाने में शादी के वक्त कुंडली नहीं मिलाई जाती थी। पहले के जमाने में स्वयंवर रचे जाते थे। क्या तब लोगों के दाम्पत्य जीवन पर ग्रहों का असर नहीं होता था? हर बात में इतिहास की दुहाई देने वाले हम, अब कुंडली क्यों मिलाने लगे है?
प्रेमविवाह :
प्रेमविवाह में कोई कुंडली मिलान नहीं होता। तो क्या उनका विवाह स्थायी और सुखी नहीं होता? वास्तव में प्रेमविवाह करनेवालों की कुंडली या ग्रह तो स्वयं ईश्वर ही मिला देते है, तभी तो उनका विवाह होता है। जब प्रेमविवाह करनेवालों की कुंडली ईश्वर बनाते है, तो अरैंज मॅरेज वालों की कुंडली ईश्वर क्यों नहीं बनायेंगे?
जाति आधारित कुंडली मिलान
मैने कहीं पढ़ा था कि वैश्य जाति वालों का कुंडली मिलान और ब्राम्हण जाति वालों का कुंडली मिलान अलग-अलग तरोकों से किया जाता है। क्या दो अलग-अलग जाति के लोगों पर ग्रहों का असर भी अलग-अलग हो सकता है? वास्तव में सभी ग्रह एवं नक्षत्र सभी मनुष्यों पर एक सा प्रभाव डालते है। जैसे सुर्य का तेज और रोशनी सभी मनुष्यों को एक समान मिलती है। फिर चाहे वह किसी भी जाति का हो! ऐसे में कुंडली मिलान जाति आधारित कैसे हो सकता है?
ग्रहों की संख्या
2006 में अंतरराष्ट्रीय खगोलसंघ ने प्लुटो को ग्रह का दर्जा देने से इंकार कर दिया। क्योंकि हमारे सौरमंडल में कुल 44 क्षुद्र ग्रह खोजे जा चुके है, जिनमें से कूछ तो प्लुटो से भी विशाल है। इस तरह सौरमंडल में ग्रहों की संख्या 8 हो गई। ऐसे में हमारा ज्योतिष विज्ञान जो नव ग्रहों की मान्यता पर आधारित है, कैसे काम करेगा? अब नासा ने एक नए ग्रह की खोज की है, जिसे नाम दिया है “टेकी”। टेकी बृहस्पती से चार गुना बड़ा है! अब आप ही सोचिए, जब निरंतर खोजो से ग्रहों की असली संख्या ही बदलती रहती है तब ऐसे ग्रहों पर आधारित ज्योतिष विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान पर आधारित कुंडली मिलान कितना प्रभावशाली और सच्चा हो सकता है?
सही कुंडली कौनसी?
बच्चे के पैदा होने पर यदि हम अलग-अलग दस पंडितों को बुलाकर कुंडली बनायेंगे, तो एक ही बच्चे की दस अलग-अलग कुंडलियां बनेंगी! ऐसे में हम कौनसी कुंडली को सही मानेंगे?
जन्मसमय
आज विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि हम हमारे हिसाब से शुभ मुहर्त देख कर (ऑपरेशन से) बच्चे का जन्मसमय तय कर सकते है। जब जन्मसमय हम खूद ही तय कर रहे है तो ऐसे में कुंडली भी तो उसी अनुसार बनेंगी। लेकिन क्या वह विश्वसनीय होगी?
मांगलिक मतलब मंगल दोष
मंगल शुभ कार्य का प्रतिक है। बड़े-बुजुर्ग हमें आशिर्वाद देते है कि “तुम्हारा जीवन मंगलमय हो।“ शादी को हम “मंगलकार्य” कहते है। जहां शादी होती है उसे “मंगल-कार्यालय” कहा जाता है। हर शुभ कार्य की शुरवात गणेश जी से की जाती है। गणेश जी को हम “मंगलमुर्ती” कहते है। अब आप ही सोचिए, साक्षात मंगल “मांगलिक” के रुप में अशुभ कैसे हो सकता है? अत: “मंगल” कभी भी “अमंगल” नहीं हो सकता, यदि हम वास्तव में सचेत है!
एक ही राशी वालों के साथ भिन्न घटनाएं
एक ही राशी के करोड़ों लोग इस दुनिया में है। और एक ही समय में एक ही राशी के लोगों के साथ अलग-अलग घटनाएं होती है। राम-रावण, कृष्ण-कंस, गांधी-गोडसे इन सभी की राशी एक ही थी। लेकिन इन सभी के साथ, एक ही समय में दो सर्वथा विपरित क्रियाए हुई! एक ने मारा तो दूसरा मरा! फिर भी हम राशी भविष्य पर, इन पर आधारित कुंडलियों पर विश्वास क्यों करते है?
हमें इस ओर भी ध्यान देना चहिए कि कुंडली मिलाकर शादी करने पर भी कई तलाक क्यों होते है? और कई स्त्रियां विधवा और पुरुष विधुर क्यों होते है? आजकल पाश्चात्य देशों की तरह हमारे देश में भी तलाक का प्रतिशत बढ़ रहा है। ऐसे में पढ़े-लिखें लोगों को भी लगता है कि शायद “कुंडली मिलान” कर शादी करने से शादी टिकेगी। लेकिन हमें इस बात को समझना होगा कि “कुंडली मिलान” शादी टिकने की ग्यारंटी कदापि नहीं है! शादी यदि टिकाना है तो वो सिर्फ आपसी प्यार एवं सामंजस्य से ही टीक सकती है, न की सिर्फ कुंडली मिलान करने से!!!